Tanmay J. Mishra   (©तन्मय जे मिश्रा)
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Joined 19 July 2017


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Joined 19 July 2017
18 JUN 2021 AT 22:54

बैकवर्ड

इस दुनिया में जिसको देखो
इक दूजे से ख़फ़ा ख़फ़ा है
हँस कर मिलना
हाथ मिलाना
गले लगाना
सब झूठा है
और इस मतलब की दुनिया में
जहाँ हर इक शख़्स इक दूजे से ख़फ़ा ख़फ़ा है
मैं ख़ुद से ही अफ़सुर्दा हूँ
हाय! मैं कितना पिछड़ा हूँ!

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14 JUN 2021 AT 20:55

اسیر عشق بنا ہی لیا مجھے اسنے
قبول ہو ہی گئیں عرضیاں رہائی کی

असीर-ए-इश्क़ बना ही लिया मुझे उस ने
क़ुबूल हो ही गयीं अर्ज़ियाँ रिहाई की

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9 MAR 2021 AT 22:07

तुम्हारे लौट जाने से मैं अफ़्सुर्दा नहीं हूं
ज़रा सा दुःख है जो कि लाज़मी है
ये सब शायद तुम्हारे लौट जाने का नतीजा है
कि अब मुझको किसी का लौट कर जाना नहीं खलता
ये दुनिया आरज़ी है
तुम्हारे लौट जाने से ये मुझ पर खुल सका है...

*आरज़ी- अस्थायी

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1 MAR 2021 AT 10:54

जमी हुई है गर्द-ए-वक़्त आँख पर
उदासियों का पीलापन उतर चुका है दाँत पर
उलझ गए हैं बाल और उन की ख़ून चूसती हुई जूएँ
लगी हुई हैं चेहरे तक
सियाह फ़ाम चमड़ियाँ
दबी हुई हैं मैल की परत तले
मवाद रिस रहा है घाव से
लिपट रही हैं इर्द गिर्द मक्खियाँ
ख़ुरच रहा हूँ मैं
बदन पर उग चुकी फफूँद को
अजीब बास आ रही है जिस्म से
पेशाब सी
मिचल रहा है जी ख़ुद ही को देख कर
हलक़ में उंगलियों को डाल कर के उल्टियाँ करी हैं
पै-ब-पै ,यहाँ वहाँ
थका हुआ,मैं ख़ुद पे थूकता हुआ
ज़मीन पर ही सो गया हूँ
ज़िन्दगी को 'हाऊ अग्ली' बोल कर

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28 DEC 2020 AT 13:50

रूह जैसे कि इक बदन की तरह
और बदन उस पे पैरहन की तरह

उसकी आँखोँ की याद आती है
मुझ को छूटे हुए वतन की तरह

हम हैं महरूम रंग ओ ख़ुशबू से
यानी तन्हा उजाड़ बन की तरह

हम ने दुनिया तमाम देखी है
कुछ नहीं उस के भोलपन की तरह

ज़िन्दगी हर कदम घना जंगल
हम हैं भटके हुए हिरन की तरह

हम हैं उस ठौर ज़िन्दगी में जहाँ
हर दुखन है हमें सुख़न की तरह

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27 DEC 2020 AT 22:28

रूह जैसे कि इक बदन की तरह
और बदन उस पे पैरहन की तरह

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24 MAY 2020 AT 10:38

ख़ुद को भुलाना होगा मुझे तेरे ध्यान में
तलवार कैसे दो हों भला इक मयान में

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5 MAY 2020 AT 21:52

अब तलक ख़ामोश दरिया में रवानी देख कर
रो पड़ा हूँ मैं तेरी आँखों में पानी देख कर

हो सके तो दे दे अपना सारा बार-ए-ग़म मुझे
ना-तवां होता हूँ तेरी ना-तवानी देख कर

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27 APR 2020 AT 10:41

यूँ नहीं था कि इस ज़िन्दगी में फ़क़त इक मुसलसल सी तन्हाई थी
मैं अकेला नहीं था तेरे बिन मेरे साथ में मेरी परछाई थी

मैंने तुझ पर लुटाई हैं बिन मोल अपनी सभी क़ीमती चाहतें
वो भी उस दौर में जब के दुनिया में हद से ज़ियादा ही मँहगाई थी!

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7 FEB 2019 AT 11:40

देखा जो इक किताब में रक्खा हुआ गुलाब,
दिल में तुम्हारी याद की ख़ुशबू बिखर गई...

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