Tanmay J. Mishra   (©तन्मय जे मिश्रा)
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Joined 19 July 2017


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4 DEC 2024 AT 11:31

एक मेरी तन्हाई
मुझ से उधड़ी उकताई
ख़ुद बहुत अकेली है
दुःख अजब पहेली है!

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7 NOV 2024 AT 21:07

पिघल रहा है मेरा मुंजमिद बदन
अजीब है तेरी छुअन
ये कैसा रब्त है हमारे दरमियाँ?

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7 NOV 2024 AT 12:28

शाम उतरी
नीलापन समेटे
किसने डसा?

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7 NOV 2024 AT 12:24

दो घटे एक
कुछ भी नहीं शेष
प्रेम गणित

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6 NOV 2024 AT 21:12

रात के उतरते ही इक मुहीब सन्नाटा
चीरता है कानों को सात आसमानों को
एक बला की बेचैनी फन उठाये सीने पर लोट-लोट जाती है
ये अजीब नागिन है रोज़ रोज़ आती है!

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6 NOV 2024 AT 19:55

शिद्दत-ए-शौक़-ए-सफ़र ख़त्म हुई
शाम लौट आए सुब्ह भूले हुए

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5 NOV 2024 AT 21:35

बदला जो वक़्त साथ में हर शय बदल गई
इक याद थी जो ज़ख़्म की सूरत में ढल गई

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4 NOV 2024 AT 23:52

मुंतज़िर तेरी निगाहों के मनाज़िर हैं सभी
और फूलों की फ़क़त एक तलब तेरे दो लब!

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4 MAY 2024 AT 21:26

लैंगस्टन ह्यूजेस की कविता "हार्लेम" का नज़्म रूपांतरण— % &एक अधूरे सपने का
आख़िरश क्या होता है?

क्या वो सूख जाता है
ठीक उसी तरह जैसे
धूप में रखी किशमिश?

या वो पकने लगता है
एक घाव की मानिंद?

क्या अधूरे ख़्वाबों से
सड़ते माँस जैसी ही
बास उठने लगती है?

या वो सूख कर यूँ ही
चाश्नी में रहता है
मीठी बिस्कुटों जैसे

एक भारी शय जैसा
धँस भी जाता हो शायद
या कि फट ही पड़ता हो?

©तन्मय जे मिश्रा— % &ایک ادھورے سپنے کا
آخرش کیا ہوتا ہے

کیا وہ سوکھ جاتا ہے
ٹھیک اُسی طرح جیسے
دھوپ میں رکھی کشمش

یا وہ پکنے لگتا ہے
ایک گھاؤ کی مانند

کیا ادھورے خوابوں سے
سڑتے مانس جیسی ہی
باس اُٹھنے لگتی ہے

یا وہ سوکھ کر یوں ہی
چاشنی میں رہتا ہے
میٹھی بسکٹوں جیسے

ایک بھاری شے جیسا
دھنس بھی جاتا ہو شاید

یا کِ پھٹ ہی پڑتا ہو

© تنمے جے مشرا — % &Original Poem By Langston Hughes

Harlem

What happens to a dream deferred?

      Does it dry up
      like a raisin in the sun?

      Or fester like a sore—
      And then run?

      Does it stink like rotten meat?

      Or crust and sugar over—
      like a syrupy sweet?

      Maybe it just sags
      like a heavy load.

      Or does it explode?

- Langston Hughes— % &

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18 JUN 2021 AT 22:54

बैकवर्ड

इस दुनिया में जिसको देखो
इक दूजे से ख़फ़ा ख़फ़ा है
हँस कर मिलना
हाथ मिलाना
गले लगाना
सब झूठा है
और इस मतलब की दुनिया में
जहाँ हर इक शख़्स इक दूजे से ख़फ़ा ख़फ़ा है
मैं ख़ुद से ही अफ़सुर्दा हूँ
हाय! मैं कितना पिछड़ा हूँ!

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