जब चांद को अपलक निहारने लगो तुम, चांद से जब बतियाने लगो तुम,
तारों में उस एक कोढूंढने लगो तुम, टूटे तारे से मन्नत मांगने लगो तुम,
उगते सूरज से जब मुस्कुराती तुम, डूबते सूरज से से उदास हो जाती तुम,
भोर के तारे से खिलने लगो तुम, सांझ का तारा जैसी लगने लगो तुम,
तब कोई पूछे तो कह देना....
नींद से दूर होने लगो तुम, सोने की नाकाम कोशिश करने लगो तुम
करवट बदलते रात गुजारो तुम, दो तकियों के सहारे होने लगो तुम,
बाजू में जगह छोड़ के सोने लगो तुम, उसको महसूस करने लगो तुम,
आंखों में ख्वाब सजाने लगो तुम, जेसे उनकी गोद में सोने लगो तुम,
तब कोई पूछे तो कह देना....
व्रत उपवास जब मन से रखने लगो तुम, सिर पर पल्लू रखने लगो तुम,
दुपट्टे में मनौती गांठ लगाने लगो तुम, मन्नत का धागा बांधने लगो तुम,
ओरों की नजरों से खुद बचने लगो तुम, नजर उतारने लगी जब तुम
रीत रिवाज में रुचि लेने लगो तुम, गृहस्थी की रस्में मानने लगो तुम,
तब कोई पूछे तो कह देना....
जब बैठी बैठी गुमसुम सी जाओ तुम, हर आहट पर लगो चौकने तुम,
सखियों को बैरन लगने लगे जब तुम, उनसे नज़रें चुराने लगो जब तुम,
प्यार के गानें गुनगुनाने ल्गो जब तुम, फिर खुद से ही शर्माने लगो तुम,
राज की पसंद अपनाने लगो तुम, प्रेयसी से अर्द्धांगिनी बनने लगो तुम।
तब कोई पूछे तो कह देना....
— राज सोनी-
माना मोहब्बत से दूरी बना रखी है हमने
पर मोहब्बत का ज़ाम तो चखा हमने भी है।
हां मेहबूब अब साथ है नहीं हमारे
पर एक उम्र दीवानगी में बिताई हमने भी है।-
वो कर गई उस को दीवाना आयी थी किसी महल से
वो उसे अपना बना ना स्का कुदरत ए नसीब से
उस के इश्क़ मैं बन गया वो एक दरवेश
देखने जाता उसको उसके दर
बदलकर अपना भेष-
दीवाना कब कौन कहा,
किसका हो जाये किसे पता,
बस किसी की दीवानगी,
पूरी ज़िन्दगी चल जाए तो मज़ा!-
दीवानगी मे कुछ एसा कर जाएंगे
महोब्बत की सारी हदे पार कर जाएंगे
वादा है तुमसे दिल बनकर तुम धड़कोगे
और सांस बनकर हम आएँगे-
अश्कों की दीवानगी जिसे समझ ना आई
वो मेरे लफ्ज़ों की कहानी क्या समझेगा ??-
दीवानगी तेरे प्यार की इस हद तक गुजर गई,
उलफत के जाल में इस कदर घिर गई,
तेरे नाम से शुरू तेरे नाम पर ही खत्म हो गई।
पूनम वशिष्ठ
🙏🏼🙏🏼-
मेरे जनाज़े में मेरे शिवा कुछ भी न था अनिल।
तेरे आने की उम्मीद ने हमें कितना तनहा कर दिया।-
हुस्न - ए - मुहब्बत... दीवानगी है 'शालीन'
कद्र कोई दिल की करे तब वफ़ा समझना!
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जब जलता है कोयला जन्मों तक,
तब हीरे से भेंट वो करता है।
आभास..तु धीरज क्यों खोता है?
कल क्या था..वो पल क्या थे
ये सब बस एक बानगी है..
आने वाले पल में बस अब
जीतने की एक दीवानगी है।
कल है तुझको जब काटना खुद
तो डर के वो बीज..तू क्यों बोता है?
आभास..तु धीरज क्यों खोता है?-