Poonam Vashisht   ('पुरवाई')
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Joined 5 February 2020


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Joined 5 February 2020
17 MAR AT 0:34

किसी की उम्मीदों को गले लगा कर,
इंसान कितना धोखा खा जाता है,
हमें मालूम नहीं कि उसकी हसी के पिछे,
कितनी चालों का पिटारा छुपा होता है,
जब पता चलता है उसके इरादों का,
तो मनुष्य अंदर से खोखला हो जाता है,
और वो पूरी तरह से टूट जाता है।
पूनम वशिष्ठ
🙏🏾🙏🏾

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3 MAR AT 1:29

आज कल तेरे बगैर जीना मुश्किल हो गया,
लोग कहते है कि किसी के चले जाने पर,
देश सूना नहीं होता मगर किसी को क्या पता,
कि तू ही तो मेरा देश था जो अब सब सूना हो गया,
जब उठेगी बेटी की डोली तो वो निगाहें तुझे ही ढूंढेगी,
आऊंगी उन निगाहों के आगे मैं ,
और फिर बाप का भी फर्ज निभा लूंगी,
बस आ कर हिम्मत बंधा देना चाहिए स्वपन में ही सही।
पूनम वशिष्ठ
🙏🏾🙏🏾

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8 FEB AT 23:22

कुछ सोच कर रह जाते हैं हम,
तेरी बातों को याद करके रह जाते हैं हम,
आने वाली हर खुशी भी सूनी-सूनी सी लगती है,
मगर उन खुशियों में तुझे दिल में शामिल कर लेते हैं,
हमें क्या मालूम था कि एक दिन तेरे बगैर,
ये खुशियां अधूरी ही रह जाएंगी,
मगर फिर भी हम तेरी यादों को,
अपने सीने में ताज़ा रखते हैं।
पूनम वशिष्ठ
🙏🙏

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2 FEB AT 19:54

मन कितना बावरा हो गया है जो रात से यारी कर बैठा,
चमकते हुए सूरज की रोशनी भी धूधली नज़र आ रही है,
बदलते हुए मौसम में लोगों के मिजाज भी बदल रहे हैं,
मन भी कितना पागल है जो औरों से उम्मीद करता है,
अब दिलों को तोड़ना लोगों की फितरत बन गई है,
तभी तो ये दिल रात से यारी कर बैठा,
ये रात कम से कम अंधेरे में भी,
रोशनी की उम्मीद दिखा देती है।
पूनम वशिष्ठ
🙏🙏

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12 JAN AT 20:36

भीड़ भरी इस दुनिया में मैंने तन्हा-सा इक शख्स को देखा था,
ना वो पागल था ना ही वो आवारा था,
वो दिल से बातें करता था मगर वो अपने दिल की बात नहीं बताता था,
अपना बनाना उसे आता था मगर वो अपनापन नहीं जताता था,
अपनी दुःख की बात चाहे मैं कितनी भी कर लूं उससे,
मगर वो अपना दुःख बतानें में कतराता था,
वो दोस्त सच्चा बन बैठा मगर अब दिल कुछ घबराता है,
बढ़ती हुई इस दोस्ती को शायद नज़र किसी की लग बैठी,
अब बातों ही बातों में मजबूरियों की आहट शुरू हो बैठी।
पूनम वशिष्ठ
🙏🏾🙏🏾

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12 JAN AT 0:07

मुंद कर आंखों को अस्को को छिपाएं बैठी थी,
हर बात अपने सीने में दबाए बैठी थी,
कोई पूछता था कि तुम्हारी आंखें नम क्यों रहती है,
बस हम आंखों से इशारा करके थोड़ा मुस्कुरा देते थे,
मगर आंखों में भरा समुद्र भला हम कब तक रूक सकता है,
जब अस्क बह कर निकलने लगा तो उसे हम रोक ही नहीं सके,
और ये आंखों के समुद्र से निकल कर सैलाब बन गया।
पूनम वशिष्ठ
🙏🏾🙏🏾

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6 JAN AT 18:47

धूंधलाती यादों के बीच में मैं तुम्हारी यादों को फिर भी संजोए बैठीं हूं,
पल पल तड़पती हूं मगर झूठी हंसी से हर इक आंसू छूपा लेती हूं,
आज देखती हूं एक सुहागिन स्त्री के मांग का सिंदूर,
तो मेरा कलेजा फट कर लाल हो जाता है,
मैं भगवान से हमेशा प्रार्थना करतीं हूं,
कि कभी भी एक सुहागिन स्त्री का सिंदूर ना छूटे,
इक चुटकी भर सिंदूर की कीमत क्या होगी है,
आज मुझसे बेहतर और कोई नहीं जान सकता है।
पूनम वशिष्ठ
🙏🏾🙏🏾


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19 DEC 2023 AT 23:19

अरसे से संभाल कर रखा था ये फूल,
यादों के पिटारे में संभाल रखा था हमने,
वो पहली मुलाकात का ये फूल,
अपने सीने से लगा रखा था,
क्या समय था जो हर मुलाकात पर,
हमारा फूलों से स्वागत किया करते थे,
अब ये ऐसी मुलाकात है जो एक-एक फूल को,
डायरी से निकाल कर तेरी हर एक याद को,
हम ताज़ा किया करते है।
पूनम वशिष्ठ
🙏🏾🙏🏾

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19 DEC 2023 AT 0:40

हाथों में मेहंदी लगा कर हम कुछ इसी तरह शरमाया करते थे,
उनके नाम का पहला अक्षर अपनी हथेली पर लगाया करते थे,
उनकी नजरें भी उसी अक्षर पर पड़ती थी,
जहां हमनें उनका नाम अपने हाथ में छिपा रखा था,
मेहंदी का रंग फिंका ना पड़े उसके लिए क्या क्या जतन किया करते थे,
आज़ भी अपने हाथों में मेहंदी तो लगाते हैं,
मगर वो देखने वाला ही मेहंदी के रंग को फिंका करके चला गया।
पूनम वशिष्ठ
🙏🏾🙏🏾

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15 DEC 2023 AT 17:50

रात का सामना करना अब तो मुश्किल हो गया,
उन यादों को समेटना भी अब मुश्किल हो गया,
सोती हूँ जिस बिस्तर पर उसका तकिया भी मुझसे कुछ पूछता है,
अपने आंसूओं से ना भिगाया करो मुझे,
क्यों कि इन आंसूओं से मेरे सीने में दर्द-सा होता है,
हां मुझे मालूम है कि इन आंसूओं को मैं रोक नहीं सकता,
मगर अब तो मैं ही एक तेरा सहारा हूं,
मुझे सीने से लगा कर अपने ग़म को कुछ हल्का कर लें।
पूनम वशिष्ठ
🙏🏾🙏🏾

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