आज़ उनसे मुलाकात भी हुई और उन्हीं की आंखें गुलिस्तां भी हुई,
हम देखते रह गए उनकी आंखों में और कब दो से चार हो गई,
मैं ठहरी रही उसी जगह पर न जाने कब हवा ने हमारे सपने चूर कर दिए,
मैं सोचती हूं उन लम्हों को तो वो भी क्या सुहानी घड़ी थी,
तुम पास थे मेरे किसी और की जरूरत ही नहीं थी,
ये सब सपने थे साहब हम तो बस हवा में बातें कर रहे थे।
पूनम वशिष्ठ
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इन्ही शब्दो ने मेरी जिंदगी को जिंदगी... read more
चलो आज फिर से हम अजनबी हो जाएं,
उन पूरानी यादों को हम भूल कर क्यूं ना एक नया रास्ता बनायेंगे,
लम्हा भी हमारा हो और दिन भी हमारा हो,
जो दुख की घड़ी थी उसको पल भर में भुलायेंगे,
माना के भूलना बड़ा ही मुश्किल है,
मगर तू अगर साथ है मेरे कान्हा तो दुख क्यूं ही मेरे साथ रहेगा।
पूनम वशिष्ठ
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कैसे ये रिश्ते हैं कैसा ये मज़हब है,
जो हंसते हुए चेहरे को इक पल में रूला दिया,
पूछ कर धर्म को, धर्म को ही दो हिस्सों में बांट दिया,
किसी का सुहाग छिना, किसी का बेटा
और किसी की तो पूरी दुनिया ही उजाड़ दिया,
क्या कसूर था उन मासूमों का जो बेदर्दी से मार दिया,
वो खुदा भी ऊपर बैठ कर रोया तो जरूर होगा,
कि मैंने क्या किया इक इंसान बना कर,
एक इंसान दूसरे इंसान के खून का प्यासा हो गया,
अब मैं पूछती हूं उस खुदा से कि
कैसे रूकेगा ये जूर्म ए खुदा अब तू बता दे?
पूनम वशिष्ठ
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वो घड़ी आ गई
बिछड़े थे हम कभी वो आज घड़ी आ गई
मेरे देखते ही देखते तेरी सांसों ने मुझे धोखा दे दिया,
मेरी आंखों के सामने ही तेरी सांसे मुझसे बिछड़ गई,
इक ही पल में मैं दो से एक हो गई,
रिश्ते भी न जाने कितने अजीब होते हैं,
एक आदमी पर ही पूरे ठहरे होते हैं,
कुछ पैसों के रिश्ते होते हैं तो कुछ मतलब के,
कुल मिलाकर रिश्ते तो पराये ही होते हैं,
अब तो आंसू भी घूंट-घूंट करके पी रही हूं,
और तेरी यादों को सीने में दफन करके जी रही हूं।
पूनम वशिष्ठ
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जिस दिन विदा हुई थी मैं अपने घर से,
आंसू की बौछार मेरे जन्म दाता के दिल से बहे होगे,
जो कलेजे का टुकडा दे दिया हो चीर कर किसी को,
खुदा भी देख कर इसे,दामन तो उसका भी भीगा होगा,
महीने कुछ साल बीते ही थे खुशी के हमारे,
एक और विदाई की घड़ी आ गई,
आज जन्मदाता के आंसू नहीं उसमें मेरा ही संसार उजड़ गया,
आज विदा करूं तो कैसे करूं इस दिल पर तो पत्थर ही पड़ गया,
आज हंसी खुशी जिंदगी की विदाई हो गई,
अब जीने की वजह उसकी यादें ही रह गई।
पूनम वशिष्ठ
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मिल कर बिछड़ गए हम ये मेरे दर्द से पूछो,
हम साथ थे कभी ये मेरी चाहत से पूछो,
रूठे हुए को कभी तुम मनाते थे हमें ये तुम्हारी दिवानगी से पूछो,
दूर हो तुम हमसे मगर दिल के करीब हो अब भी तुम हम से,
ये हमारी धडकती हुई धडकनों से पूछो,
मिलना और बिछड़ना तो जिंदगी का खेल है,
मगर इस खेल को हंँस कर गुजरो तो मज़ा ही कुछ और है।
पूनम वशिष्ठ
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तेरी चाहत
रंगत थी तेरी चाहत में हां रंगत थी तेरी यारी में,
खिले हुए गुलाल तेरे गालों पर लगाऊं,
या खिले हुए फूल तेरे कुर्ते पर बिखराऊं,
तेरे चाहने की ही तो बात है तू चाहे तो रंगे हुए पानी से तुझे नैहलाऊ,
काश! ऐसा हो जाता कि मैं तेरे हर जिस्म के हर हिस्से को रंग देती,
मैं सोचती हूं कि कहीं से तू आ जाए,
और अधूरा छोड़ा हुआ गुलाल मेरे गालों पर लगा जाए,
सुखी है ये चुनरी तू आ कर इसे भिगो जाए,
पल भर भी इस दिल को चैन नहीं तू आ कर थोड़ी-सी तसल्ली दे जाए,
हां झूठी है ये सोच और झुठे ये सपने,
बस सपने में ही मिल कर तुझसे और सपने में ही खो जाऊं।
पूनम वशिष्ठ
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जब भी मैं लिखने बैठूं तो न जाने ये क़लम क्यूं रुक जाती है,
तेरी तारीफ के पूल बांधती हूं तो क़लम की स्याही ही खत्म हो जाती है,
क्यूं ना करूं मैं तेरी तारीफ तू था ही इतना काबिल,
एक पन्ना तो क्या ये डायरी ही कम पड़ जाती है,
जलते थे वो लोग जिन्होंने नजदीकी से प्यार हमारा देखा था,
ना जाने किसकी हाय खा गई कि हमारे प्यार ने रस्ते में ही दम तोड़ दिया।
पूनम वशिष्ठ
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