जिऊंगी मैं कैसे ये तेरे जाने के बाद पता चला है,
भूखी नजरें होती है सामने उनसे अपने को बचाऊंगी कैसे,
दिल में घूस कर करते हैं लोग बातें मगर उनको पहचानूंगी कैसे,
जिंदगी जी लूंगी अकेले मगर बूरी नजरों से बचूंगी कैसे,
अपने से ही दोस्ती और अपने से ही प्यार करके अपने को ही समझाना पड़ता है।
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इन्ही शब्दो ने मेरी जिंदगी को जिंदगी... read more
गर अल्फाजों से ही दूरियां हो जाती तो,
मैं तुम्हारे बीन अकेली नहीं होती,
बेटी की दूरी से भी मैं पल पल तड़पती हूं,
लगा लूं गले उसे ये सोच कर छलकते है आंसू मेरे,
क्यों कि आज वो दूसरे घर की शोभा है,
मगर वो भाई की जान व मेरे ज़िगर का टूकडा है,
फिर कैसे रिश्तों को दूरियों में सिमटने दूं।
पूनम वशिष्ठ
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भटक रहे थे हम भी किसी अच्छे दिल की तलाश में,
कुछ दिन बीते कुछ रातें बीती मगर भटकना अभी जारी ही रहा,
किसी रोज़ एक सड़क पर कुछ दिल के टुकड़े बिखरे हुए दिखाई दिए,
चली थी मैं उन्हें जोड़ने को मगर पास जा कर देखा तो वो चूर चूर पड़े थे,
जोड़ने चली थी मैं उन्हें मगर एक छोटे से टुकड़े से आवाज़ आई,
इन्हें जोड़ने का कोई फायदा नहीं क्यों कि दिल भी तो तुम जैसे इंसान ने ही तोड़ा है।
पूनम वशिष्ठ
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क्या कहें इस दिल को क्यों कि ये ना समझ है ये मेरी सुनता ही नहीं,
इस दिल को समझाती हूं कि तू अपने ही दिल के पास रहा करो,
ये दुनिया बड़ी ज़ालिम है ये रो कर पूछ लेती है और हंँस कर उड़ा देती है,
इसलिए अपने दिल की बात दिल तक ही रहने दो।
पूनम वशिष्ठ
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तेरा नाम सुन कर दौड़ी
चली जाती हूं मगर फिर भूल जाती हूं,
कि बस अब तो तेरा
नाम ही है इक मेरे पास,
लोग कहते हैं कि अब तो हमारा
मिलन दूसरे जन्म में होगा,
मगर उन्होंने क्या पता कि तुम्हारी
आत्मा तो अब भी मेरे साथ है,
इस दुनिया में आये है तो इक
दिन इस जहां से विदा तो जरूर होना है,
मगर दो दिलों का बिछड़ना
बड़ा दुःख दाई होता है।
पूनम वशिष्ठ
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दुःख हो या सुख जिंदगी को हंस कर जीना पड़ता है,
लाख मुश्किलें आयें जिंदगी में मगर लोगों को देख कर मुस्कुराना पड़ता,
दिल ज़ख्मों से छिला बैठा है मगर क्या करें लोगों से इसे छुपाना पड़ता है,
देख लिए है जिंदगी में लोगों को आजमा कर,
वो ज़ख्मों पर नमक छिड़कने आते हैं,
अरे पगले टूटते हुए दिल पर दुनिया हंसी छुपा कर हंसती है,
और खुश देखकर तो वो अपनी भी हंसी भूल जाते हैं,
इसलिए जीवन को लोगो के सामने इसे सजाना पड़ता है।
पूनम वशिष्ठ
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ये शाम भी अनसुलझी पहेली में ही ढ़ल गई,
कहीं बदलों की छटाये है तो कहीं बारिश की कुछ बूंदें,
ये ढलता हुआ सूरज भी ज़ख्मों को ही कुरेद रहा है,
सोचती हूं कि काश ये शाम ही ना आये,
और ज़ख़्म को मचलती हुई शाम ही ना मिले,
मगर कुदरत पर भला किसकी चलती है,
वो तो बहती हुई एक धारा है,
जो घड़ी के साथ चलती ही जाती है।
पूनम वशिष्ठ
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दामन में छुपा ले रात मुझे क्यों कि सूरज के उजाले में ज़ख्म उबलने लगते है,
अ रात तेरे चांद के दामन में कुछ सुकून सा मिलता है क्योंकि चांद की शीतलता,
मेरे माथे को चूमती हुई मेरे सारे बदन को अपनी रोशनी से भिगो देती है,
कुछ घंटे ही सही पर तू अपने आगोश में ले कर हर रात मुझे सुकून भरी नींद दे जाती है।
पूनम वशिष्ठ
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आज़ उनसे मुलाकात भी हुई और उन्हीं की आंखें गुलिस्तां भी हुई,
हम देखते रह गए उनकी आंखों में और कब दो से चार हो गई,
मैं ठहरी रही उसी जगह पर न जाने कब हवा ने हमारे सपने चूर कर दिए,
मैं सोचती हूं उन लम्हों को तो वो भी क्या सुहानी घड़ी थी,
तुम पास थे मेरे किसी और की जरूरत ही नहीं थी,
ये सब सपने थे साहब हम तो बस हवा में बातें कर रहे थे।
पूनम वशिष्ठ
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