प्रेमियों का त्योहार चल रहा हैं, "मियाँ"
और आज दिन था "इज़हार" का..!!-
मैं तुम्हारी कल्पना की वो अल्पना हूँ,
जिसके बिना तुम्हारा हर त्यौहार अधूरा है।-
त्योहारों से ना जाने मैं क्यों घबरा जाता हूँ ,
जब भी खुशियाँ आती हैं , मैं दुखी हो जाता हूँ !
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एक त्योहार था, सब साथ आये, सब पास आये।
खुश होने के लिए फिर एक त्योहार का इंतज़ार है।-
अपनी खुशियों को भाईयों पर वार देती है,
बहने तो ताउम्र बस स्नेह और प्यार देती हैं!
सपनों को अपने देखती हैं भाई की आँखो से,
ख़ुद डांट खा के भी, भाई को दुलार देती है!
लड़ता है भाई बेशक़ वजह बेवजह बहन से,
पर बहन से नोक-झोंक ही उसे करार देती है!
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नहीं होता आपका ज़िक्र और मेरे महफ़िल में
शायद त्योहार आजकल कम मनाती हूँ।
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नये वर्ष में नये साल की
नये चावल और नये दाल की
"खिचड़ी" मुबारक हो..!!-
पहले झगड़े के बाद खुद ही गुलाल लगाते हैं,
सब कुछ भूलकर यारों हम एक साथ होली मनाते हैं..-
क्यों न अबकी होली में रंग परिभाषित हो
और अपना जीवन प्रतिपल सुवासित हो
ज्ञान का नील रंग आओ मलें भाल पर
गुलाबी रंग स्नेह का लगा दें सबके गाल पर
हरा रंग छींट कर भर दें सबमें ताजगी
और सफेद से मिले जीवन में सादगी
खुशियों के भाव को पीत से निखार दें
लाल रंग से तुम्हें शक्ति और प्यार देंं
नारंगी की शुचिता अब घर- घर की बात हो
बैंगनी से आशीषों की सब पर बरसात हो
आसमानी रंग तो शांति का प्रतीक है
अपनी संस्कृति के लिए यही सबसे ठीक है
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