Khanak Upadhyay   (khanak❤💎)
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Joined 14 March 2020


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Joined 14 March 2020
2 NOV 2024 AT 10:00

मैंने धीरे से बंद अलमारी खोली,  
एक लौ को समेटा, जो मुमकिन था
अंधेरा इतना बढ़ गया था,  
कि लौ का जलना बस प्रतिपक्ष था।  

फिर नज़र पड़ी पुराने कपड़े पर,  
जहां एक छोटा-सा सितारा लगा था।  
दिखने में एक छोटे तिल के समान,
पर बहुत खास था.........
जैसे ही उस सितारें से मेरी लौ ने रिश्ता जोड़ा,  
दिया जल उठा, और घर का कोना 
खुद-ब-खुद रोशन हो गया।  

तब समझ आया, किसी चीज़ में थोड़ा-सा बदलाव  
कैसे आधा हिस्सा अपना कर लेता है।  
दिवाली की रौशनी भी तो यही सिखाती है—  
उम्मीद का एक छोटा सा दीया,  
अंधेरों से घिरा हो तब भी,  
घर भर का उजाला बन सकता है।

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3 JUL 2024 AT 14:01

ही तो कैद है,
बीच राह में तो वो
चल लेता है,
पर एक नई द़रार
उसे वहीं खड़ा कर देती है,
जहां से वो शुरू हुआ था ।

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1 JUL 2024 AT 1:48

दुनिया की गवाही है, वक्त के बदलने से लेकर उस बीच जो दाय़रा रहता है,
उसमें हार और जीत का फ़र्क बताने की। जब सब कुछ आज़माया जाता है,
तब रह जाती है आरज़ू,वो जो कम में बहुत चाहा, जो मिला उसमें हम कम रह गए।
वक्त जब तेज़ी से आगे बढ़ने लगता है,
तब डर रहता है क्यूंकि हम रुक नहीं पाते। जब सब होने लगता है और हमें फिर लगता है कि सब कुछ थोड़ा छूटते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
इसमें इंतजार बस जाता है, खेल-खेल में खिलाड़ी बल्ले तो लगा देता है पर उसका अंजाम तय करता है, रुक जाना या सब को रोक आगे बढ़ना।
यहां सारे खिलाड़ी बस चलते गए, एक उम्मीद के साथ कि अगर एक दिन में ध्यान लगा सब मान लिया तो सिर्फ़ खेल नहीं, ये जो फ़र्क है हार और जीत का, इससे बाहर आकर जिंदगी की सच्चाई सबको दिखेगी।

"मैंने कर दिया उठाया माथे का दाग,
लगा दिया उम्मीद के बाहर -कि राह चलता भी,
नज़र जाए तब सोचेंगा बदलाव का,
कि बरसों पुराना दाग़ भी एक शानदार जीत से घेर लिया जाता है,
कि उसके बाद बस कोशिश की जाती है,
29 जून जैसे दिन लाने के लिए।"

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22 APR 2024 AT 1:10

बुनियादी ढांचा को तैयार करने पर आती है,
उम्मीद भी घर जोड़ने के बाद आती है,

मसला जानने के बाद तकरार होती है,
नीयत भी खोट के बाद देखी जाती है,

कुछ कारीगरी करते नज़र आते है जिंदगानी में,
वही जिनकी खुशी झूठी मुस्कान के बाद आती है,

वक्त के साथ राहें तो बटोर लेते हैं,
मगर ये पछतावे के बाद आती है,

खराब चीज़ देखते ही फेंकी जाती है,
मगर ये इल्ज़ाम डालने के बाद आती है,

तज़ुर्बे से किसी को ध्यान में लाया जाता है,
पर ये लंबी जिंदगी जीने के बाद आती है,

पानी को जगह मिलते ही मिल जाना होता है,
देखा होगा कितना ठहरने के बाद आती है,

फिर कोई खास दिखने हमें लग जाता है,
ये सारे तमाम नज़रिए के बाद आती है...

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17 APR 2024 AT 1:06

बन गुलशन-सा सरोवर में पंछी जा उड़ता है,
बिखेर कर जीवन के रंगो को एक बीज बोता है,
निखरेगा एक दिन बेशक तू भी गुलाब,
कि तेरी महक छा जाएगी हर फिज़ाओ में..

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13 APR 2024 AT 2:48

उस खौंफ की आड़ में तराजू रखना,
तौल लेना बेहद खास को,
वफ़ादारी की बात में फ़िज़ूली को परखना,
चाहे रहे आम ये पर
थोड़े में देख सकूं इतनी आस रखना,
मेरे ख्वाबों से कहना ज़रा पास रहना ।

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13 APR 2024 AT 2:38

वो जिंदगी से वाक़िफ होकर
अपनी कश्ती संवारते हैं,
जो उस पेड़ की शाख़ की तरह
बेम़तलब आरी चलाई दिए जाते हैं।

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13 APR 2024 AT 2:25

इल्ज़ाम सब्र का था,
चैन-आलम जिंदगी का ज़रिया है,
बात तो अदाकारी की थी।

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26 JAN 2022 AT 17:45

ले गए जो कारवां ऊषा में वो शामिल थे,
खत होता सिर्फ़ कफन में कुछ बागवां भी ऐसे थे,

खींच लेते लकीर को और थाम देते सांसों में,
बदन की परवाह नहीं कुछ कबीरा ऐसे भी थे,

शौख़ जिंदगी नहीं शाम-ए-दस्तूर फ़लसफ़ा नहीं,
वो आँखें जो देखती मकसद कुछ अर्जुन ऐसे भी थे,

सपनों वाली रात में बटालियन की जो शुमार करते,
हर दम लाल रंग में मिल जाते कुछ मस्तानां ऐसे भी थे,

जिगर होता है यहाँ महसूस कर तो फिजाओं में,
वो अंधेरा नहीं जो तकता कुछ चिरागाँ ऐसे भी थे ।

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12 JAN 2022 AT 20:06

जब ठान ली हो रूठी तस्वीरों को सजाने की,
जब पृष्ठ-पृष्ठ पर नए सवेरे को उतारने की,
तब चिंगारी जलनी चाहिए हर उस बदलाव की,
देखा है कश्तियों को कई बार संवरते-संवरते,
अब लहरों से टकराना आज फिर जरूरी है ।

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