Khanak Upadhyay   (khanak❤💎)
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Joined 14 March 2020


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Joined 14 March 2020
22 APR AT 1:10

बुनियादी ढांचा को तैयार करने पर आती है,
उम्मीद भी घर जोड़ने के बाद आती है,

मसला जानने के बाद तकरार होती है,
नीयत भी खोट के बाद देखी जाती है,

कुछ कारीगरी करते नज़र आते है जिंदगानी में,
वही जिनकी खुशी झूठी मुस्कान के बाद आती है,

वक्त के साथ राहें तो बटोर लेते हैं,
मगर ये पछतावे के बाद आती है,

खराब चीज़ देखते ही फेंकी जाती है,
मगर ये इल्ज़ाम डालने के बाद आती है,

तज़ुर्बे से किसी को ध्यान में लाया जाता है,
पर ये लंबी जिंदगी जीने के बाद आती है,

पानी को जगह मिलते ही मिल जाना होता है,
देखा होगा कितना ठहरने के बाद आती है,

फिर कोई खास दिखने हमें लग जाता है,
ये सारे तमाम नज़रिए के बाद आती है...

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17 APR AT 1:06

बन गुलशन-सा सरोवर में पंछी जा उड़ता है,
बिखेर कर जीवन के रंगो को एक बीज बोता है,
निखरेगा एक दिन बेशक तू भी गुलाब,
कि तेरी महक छा जाएगी हर फिज़ाओ में..

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13 APR AT 2:48

उस खौंफ की आड़ में तराजू रखना,
तौल लेना बेहद खास को,
वफ़ादारी की बात में फ़िज़ूली को परखना,
चाहे रहे आम ये पर
थोड़े में देख सकूं इतनी आस रखना,
मेरे ख्वाबों से कहना ज़रा पास रहना ।

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13 APR AT 2:38

वो जिंदगी से वाक़िफ होकर
अपनी कश्ती संवारते हैं,
जो उस पेड़ की शाख़ की तरह
बेम़तलब आरी चलाई दिए जाते हैं।

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13 APR AT 2:25

इल्ज़ाम सब्र का था,
चैन-आलम जिंदगी का ज़रिया है,
बात तो अदाकारी की थी।

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26 JAN 2022 AT 17:45

ले गए जो कारवां ऊषा में वो शामिल थे,
खत होता सिर्फ़ कफन में कुछ बागवां भी ऐसे थे,

खींच लेते लकीर को और थाम देते सांसों में,
बदन की परवाह नहीं कुछ कबीरा ऐसे भी थे,

शौख़ जिंदगी नहीं शाम-ए-दस्तूर फ़लसफ़ा नहीं,
वो आँखें जो देखती मकसद कुछ अर्जुन ऐसे भी थे,

सपनों वाली रात में बटालियन की जो शुमार करते,
हर दम लाल रंग में मिल जाते कुछ मस्तानां ऐसे भी थे,

जिगर होता है यहाँ महसूस कर तो फिजाओं में,
वो अंधेरा नहीं जो तकता कुछ चिरागाँ ऐसे भी थे ।

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12 JAN 2022 AT 20:06

जब ठान ली हो रूठी तस्वीरों को सजाने की,
जब पृष्ठ-पृष्ठ पर नए सवेरे को उतारने की,
तब चिंगारी जलनी चाहिए हर उस बदलाव की,
देखा है कश्तियों को कई बार संवरते-संवरते,
अब लहरों से टकराना आज फिर जरूरी है ।

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12 JAN 2022 AT 19:40

आशाएं रेत के भाती जब छंटने लगे,
युवा शक्ति की तब पतवार जरूरी है,
साहस-धैर्य अगर श्रणिक मात्र ही रहे,
तो आध्यात्म का ज्ञान विवेकानंद जरूरी है,
टकराए तो लहरें भी सहम जाती है,
आवाज़ गूंजे जो शंखनाद में तो,
इस देश में सक्षम युवा आज फिर जरूरी है ।

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8 JAN 2021 AT 23:47

अभी वक़्त रूका नहीं है,
सपनों ने नींद ली नहीं है,
पंख तो उड़ गए थे मेरे पर,
चलना इन्होंने सीखा नहीं है,

महल भी बड़ा था मेरा,
परीयाँ भी अनोखी थी,
सच पूछो तो वहम कोई,
वरना ख्वाबों की दुनिया पूरी..

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5 JAN 2021 AT 19:52

कोई जादू नहीं हूँ,
फिर भी पहचान जाती हूँ,
लगता है कोई अदाकारी की है,
सब वाह! वाह! जो कहने लगे हैं,

कल जहाँ गयी थी,
वहाँ अभी भी नज़र आती हूँ,
किसी खेल की तरह बल्लें घुमाती हूँ,
याद आते हैं वो सपने जो,
नींद नहीं आने देते थे,

जिन्हें देखते-देखते मैं,
ऐसे ही सोया करती थी,
आज वो हकिकत बन,
मेरे सामने आए हैं,

जैसे बिन-बुलाए मेहमान की तरह,
आखिर वो मेरे घर रहने आए हैं..

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