मैंने लिखे,
कई प्रेमपत्र,
कुछ प्रेम पत्र ,
मेज़ पर,
कुछ कूड़ेदान में,
तो कुछ बंद लिफाफों में पड़े रहे।
कुछ प्रेम पत्र ,
मैं डाकखाने लेकर गया,
तुम्हे प्रेषित करने के हेतु।
मगर तुम्हे प्रेषित न किये!
मैं मानता हूँ,
प्रेम पढ़ने का नही,
समझने का विषय है।
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वेद, धर्म ग्रन्थ
भेंट स्वरूप तुम्हें भेंट करूँ,
निर्वाण की भिक्षुणी ना, हूँ मैं।
भूर्जपत्र पर
लिखना 'श्रीये' ग्रन्थ तुम,
पाषाणों के नीर से।
अपूरणीय-क्षति पूर्ण होगी,
अक्षरों के तुषारापात से।-
मैं लिखता रहा चिट्ठियां तेरे नाम की
वो सारे खत मेरे,डाकियां खा गया।-
जब प्रेम का हर वो
लाल रंग
मुझसे हाथ छुड़ा लेगा
और सारे रास्ते तुमसे
विदा ले लेंगे
तब तुम उस घर
अक्सर आया करना
जहां भरे होंगे
हर माह
प्रेम के रंग।-
🙋♂️ डाकघर ➡
इतराता था जो खुशीयों का पिटारा कहलाता था जो देखा तो आज वो अकेले तन्हा खड़ा हैं पूछा तो कहता है अधुनिक काल में मेरा वजूद बचा ही कहाँ है कभी जो सब के सिरआँखो पे सजा था मेरे लिए कभी लम्बी कतारों का मेला लगा था मैं ही हूँ वो जो किसी की आस किसी की प्यास जगाता था मेरेे लिए इंसान मंदिर की सिडिया तक चढ़ जाता था बुरा वक्त हो या खुशीयों का तख्त हो मेरे दर पे ही हर कोई माथा टेकने आता था 'खैर मैं तो जहाँ सुकुन से खड़ा हूँ जरा सुनो मेरी खबर एक लेते जाना इस नए दौर से कहना तुमनें बेशक फैसला मिनटों में किया है मैं वो फरिश्ता हूँ जो आसूं से भिगने के वावजूद अंत तक लड़ा है करिब से देख मेरा कद कही ज्यादा बड़ा हैं . . .
📮 📮 📮↪↪↪-
डाकखाने महरुम है चिठ्ठीयों से,
डाकिया उदास बैठा है कहीं,
चिट्ठी, तार सब खो गए कहीं,
मोबाईल-इंटरनेट का माया जाल है,
पलभर में भेजते है संदेश कही भी,
नया जमाना नई तकनीक है जनाब,
हाथो से लिखी भावों से भरी चिट्ठियाँ,
वो खत पाने को इंतजार की घडियां,
सब ना जाने कहाँ खो गए कही।-
डाक व्यवस्था
Jan 23, 2022
बारिश को आता देख कर
अपने घर के छज्जो पर आ जाना दो लोगो का
ये जो व्यवस्था है ना
डाक घर व्यवस्था से पहले की है..!!-
डाकघर बन्द हुए ,खत्म हुए प्रेम के पत्र व्यवहार है
नफरतों से भरा हुआ है ये दौर, कचहरियों में लंबी कतार है-
लाता था जब डाकिया,
सुख दुख की हर बात।
घर घर से था वो जुड़ा,
जेसे जीवन साथ।।
चिठ्ठी अब तो गुम हुई,
लाती थी संदेश।
ख़बरें होकर डाकघर,
जाती थी परदेश।।
तोड़ रहा परिवार को,
ये मोबाइल फोन।
अच्छा था वो डाकघर,
जोड़े घर अब कोन।।-
🍂🍂//सब्र और शुक्र//🍂🍂
अफ़रा-तफ़री का माहौल यकबयक दौर ए बवा लायी।
नौकरियां खोई जब,अहल ए दिल ने कहा तुम सब्र करो।।
स्याह तिमिर कि कालिख़ से फ़लक़ पर घिरी है उदासी।
जान पर आन बनी है,तो शम-ए-फरोज़ाँ तुम रोशन करो।।
आसार ए मर्ग है, हर तरफ पसरा दर्द है,इस वबा से डर।
कबतक रखें सब्र,वो कहते हैं सुब्ह का तुम इन्तजार करो।।
क़ैद में बंध गए हैं आज, ऐ-ज़िन्दगी कुछ गाम तो चल।
बचे हैं बिमारियों से, धड़कन ए दिल ने कहा शुक्र करो।।
तीज त्यौहारों का लुत्फ़ अब बचा नहीं, नैहर जाऊं कैसे।
राखी अभी पहुँची नहीं ,असमंजस में बस तुम बसर करो।।
--🍂अमृता🍂
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