/दूर होने का दर्द/
हर ज़ज्बा इस तरह क़ामिल है, मुकम्मल ज़िन्दगी जीने के लिए
कुछ विसाल, कुछ ज़हरे फ़िराक़ मिलता महज़ ज़िंदगी में पीने के लिए।
राअनाई लज़्ज़त मिली ग़ुबारे दिल निकल गया, इश्क़ जब किया
हर कश्मकश को कह दिया अलविदा हर पहलू हयात का हँसने के लिए।
हर शब मयस्सरी में जो मिले सौगात वफ़ा का दिया उनको, हमने
सहरे जुदाई के आलम को लेकिन जीते रहे, तसव्वुर में रोने के लिए।
मेरी नींदों को कब्ज़े मे लेकर वो चले तो गये, फिर मिलेंगे कहकर
मौसम बदले इन्तजार में ऑ ख़तों में हाल ए दिल बयाँ करने के लिए।
मुकद्दर की खलनायकी सुकून चुरा ले गयी हमारी,न जाने कब से
दुनयावी मसले हैं इतने, इश्क़ रह गया सफ्हे पे बस लिखने के लिए।
फुरसत से तारूफ़ ग़र करे "अमृता सोज़ ए उल्फ़त को रक़म करे
विसाल और फ़िराक़ ज़ज्बात के नज़रिए है धड़कनों को छेड़ने के लिए।
दूर होने का दर्द हमसे भला ज्यादा जाने का कौन
मरस्सते हयात का वादा उसने किया तस्सवुर में दिल बहलाने के लिए।
-अमृता
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