Pankhuri Sinha   (❤Pankhuri my_petals)
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Joined 30 March 2020


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AN HOUR AGO

खिज़ाँ हो गुलशन में या हो चमन में मौसम ए बहारा
अलहिदा अलहिदा होता है हर मौसम का शोख़ नज़ारा

मेरे गेसूँ हो बंधे बंधे या रहने दूँ इन्हें बस खुले खुले
अलहिदा अलहिदा होता है इन ज़ुल्फ़ों का शोख़ इशारा

दरिया में उठतीं गिरती लहरों से पुछो ज़रा ये करतब किसलिए
अलहिदा अलहिदा होता है क्या इन लहरों का शोख़ किनारा

जान पहचान किसी अजनबी से अब न हम करेगें यार
अलहिदा अलहिदा होता है हर तारूफ़ का शोख़ इज़्तिरारा

वो कहते हैं, चंचल है जादुई है ये निगाहें तेरी "अमृता
अलहिदा अलहिदा होता है हर शोख़ ए अंदाज मरेगा बेचारा
-अमृता

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2 HOURS AGO

/ तिनके का सहारा /
कहदो उनसे हम कहाँ दरिया किनारे रहते हैं
कौन - सा हम एक तिनके के सहारे रहते हैं

सुना है कि शहर में बहुत दंगे हुआ करते है
कौन- सा  हम सीने में खंज़र घौंपते रहते हैं

आँखें नीली हैं उनकी  है बेशुमार गहराई भी  
कौन - सा हम चांद सितारों के घर में रहते है

चश्म ए तर हो  तो अक़्स  गायब हो जाता है
कौन - सा हम ख़्वाबों को  दावत देते रहते है

मरे दोस्त मेरे तो मरे बेशक़ वो उनकी मौतों है
कौन - सा हम अपने यारों  के असर में रहते है

आँखों से देखा किश्ती डूबते जा रही है "अमृता
कौन- सा हम पेशेवर शानावर के सहारे रहते है

-अमृता

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YESTERDAY AT 11:03

मटकी, भेऽल  जसोदा  के
जल भे ऽल लब लब जमुना के
सुनली किस्सा केत ऽ नो बार
लुभा ऽबे कहानी नटखट कीसना के

व्रत हऽय जनमाष्टमी पावैन के
देवकीनन्दन लेऽह लिन जनमवा
आइ ऽ लिन खातिर जग तारण के
सोहर गा ऽ इब जसोदा क ललनवा के

मटकी, भेऽल  जसोदा  के ...

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15 AUG AT 21:19

खाई है कसम योम ए आज़ादी की
तबाही होगी नफ़रत के फसादी की
गोली के बदले दागेगें गोला हम यारों
हिम्मत है ये सारी हिंद ए आबादी की।
-अमृता

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14 AUG AT 21:47

चुपके से लग जाऊँ गले तिरे दिली हसरत मचल रही है
ज़ोरावर तिरी यारी में ग़ुमगश्ता मैं, मिरि जाँ निकल रही है

क़ामिल कर दे कि  दूरी गवारा नही, निहाँ रहूँ दिल में तिरे
वक़्त की बंदिशे  कितनी, घड़ियाँ वस्ल की दमतोड़ रही है

पल दो पल यूँही चल साथ चलें,ना-मालूम हयात कितनी है
जी लूँ कुछ दिन और गरां सी साँसें, बड़ी मेहरबाँ लग रही है

चोट नई ज़ख्म पुराना है लेकिं इश्क़ ए वफ़ा का तक़ाज़ा नहीं
भरी बहार में आमद निकहत ए बू ये गुलशन सब्ज़ लग रही है

मैं चुप रहूँ या लब ए आज़ाद ए अल्फाज़ कहूं  तुझसे 'अमृता
कहूंगा उंस औ वस्ल के अश'आर की ग़ज़ल बहर में बह रही है

-अमृता

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14 AUG AT 20:36

न बिछड़ते हम तो दिल रोता ही नहीं।
-अमृता

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14 AUG AT 20:30

तू नहीं तेरी याद सही ए दिल ए सौदाई
संवारी जुल्फें आईने ने  देखाई रुस्वाई

जिक्र किया आस्तीन के सापों का उसने
लोगों में नाम मेरा नाचीज़ की याद आई

बे-हद उम्दा होती हैं  यादें  और भी उम्दा
तिरी बज़्म होती है  मिरी   रूह ए  तन्हाई

मिली है ताज़ातरीन जज़्बा-ए-ख़ुद-आराई
ए ख़ुदा न देना मुझे यूँ  ख़याल-ए-यकताई

ये इब्तिदा ए इश्क़ ए मोहब्बत की गुफ्तगू
कानों में सुनाई देती जैसी बजती   शहनाई
-अमृता

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14 AUG AT 19:32

/ मुट्ठी में गौहर सारा /
छान लिया समन्दर सारा
मुट्ठी में बंद गौहर   सारा

घाव  ए  दिल रीसने  लगे
याद आया वो मंज़र सारा

प्यासा  रहा  दरिया  किनारे
देखा   सूखा समन्दर  सारा  

उन दोस्तों से गिला मुझ को
मारा  जिन्होंने पत्थर  सारा

खूँ ए दिल कर गई  महबूबा
उतारा  सीने में खंजर   सारा

मैं  बुझ  गया  हूँ आज  कल
छू    मंतर   हुआ  तेवर  सारा
-अमृता

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13 AUG AT 20:40

उस चांद से जब जब मैनें पूछा तू इतना रोशन कैसे
वो बोला तन्हाई में ये सय्यारे करते मदहोश हमें कहाँ।

ये शहर है आशिक़ों क़ा विकल सभी के दिल यहाँ
रात चांद को देख जीतें है, सहर की होश हमें कहाँ।

होगी शामें सिन्दूरी तिरी, फलक़ मिरे पर उजाला नहीं
हिना तिरी हथेली पे, मिली अंजुम की आगोश हमें कहाँ।

कभी आधा कभी पूरा, मेरा नक़्श बदले चहरे हर रोज़
खुशनसीब तू मुकम्मल पर अर्श ने किया पुरजोश हमें कहाँ।

रहेगी सलामत तेरी जलवादारी चांद, तक़दीम रहेगा तू हमेशा
लिखी गई गज़लें कैई तुझपे, उफ़ मिले लब खामोश हमें कहाँ।

-अमृता

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13 AUG AT 16:41

आलस की चादर हटाकर सूरज ने कहा आदाब
मिलो बे-शुमार किरणों से, सुबह हुई है नौ शाद

मिरी  ज़ात  को  समा लो  अपनी ज़ात  में   तुम
बचे हुए अंधेरों को मिटा कर किया मैनें  बरबाद

वाईज ने पिलाई है इतनी घुट्टीयां की क्या बताए
पीकर आया होश तो मैं करने लगा हूं  फ़ारियाद

मंज़र है  कितने हसीन इन  वादियों में बसे  सरापा
नफ़रतों से दूर ये चले आए हम अब रूहें है आज़ाद

पैगाम ए मोहब्बत की खातिर हुई सुबह ए शम्स सुर्ख
बीती शब के चरचे  हैं बेमानी कि तीरगी है इक सैय्याद
-अमृता

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