Pankhuri Sinha   (❤Pankhuri my_petals)
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Joined 30 March 2020


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Joined 30 March 2020
27 APR AT 18:42

हुस्न की दौलत से मलामाल, वो मुझसे अहबाब रखती है
ग़ज़ाल निगाहों में  वो उल्फ़त के बेशुमार  ख्वाब रखती है

लग जाती फूलों की झड़ी,  हँसे तो, वो  गुलज़ार दिखती है
रवानी दरियाओं की, मिरे प्यासे लबों की आबशार लगती है

बेक़रारी भरी मुलाकातों के सिलसिले उनसे, मुझसे कहतें है
इस आलम में इश्क़ ए मक़तब की वो इक मुदर्रिस लगती  है

आ जाए वस्ल ए यार के लम्हें , तो  दिल ए नदाँ समझाते हैं
क़ुर्बत से घबराई वो,पलकों की चिलमन से सब सच कहती है

मुकद्दर के फ़ैसले पे इतराते बखूब कि पहलु में दामन 'अमृता
फस्ले बहार से गुल-पोश हयात जिस में वो अन्दलीब रहती है
-अमृता

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18 APR AT 20:37

मौला किस क़लम लिखी तूने तक़दीर जुदा-जुदा, हर बशर की बशर से
तदबीर नहीं की ताबीर हो हर एक ख्वाब, ताल्लुक नहीं रखती नज़र-नज़र से

रंग बिरंगी दुनिया को मौसमों से सजाया, दिन महीने साल को बनाया
ग़मे जनवरी से दिल रोया दिसंबर में पड़ेगें आबले, माकूल नहीं फ़जा इधर-उधर से

आब ए इशरत पीने से आब ए हयात तक सब चखा दिलजलों ने इस ज़मीं पे
है मज़ा जीने में इज़हारे इश्क़ करने से, मुकद्दस आबे बाराँ गिरती किधर किधर से

बेफ़िक्र सी हो तबियत ग़र मंज़ूर मरहला ए हयात की मुबारक  रौशनी को
ना-मुराद तीरगी से दोस्ताना ग़ौर ए ज़फ़ा दुआ ए ख़ैर की असर असर से

ख़याल ए आराई में क़ौस ए  क़ज़ह ने रानाई बिखेरकर दिल से पूछा
कि कितनी शिद्द्त है धड़कनों में जो बचती है पल पल क़हर क़हर से

गरम बाज़ारी है ख़्वाहिशों की तबाह होते हैं  फिर भी " अमृता
इक तलब है पुर असर मेहरबाँ मुक़ाबिल है जो ज़माने भर की ज़हर ज़हर से
-अमृता

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13 APR AT 17:55

नक़्श ए पा पर तेरे चलते चलते कितनी दूर निकल आये हम
तुम कहते हो हमें था तजुर्बा या था शौक, शौक़ ए दरयाफ़्त का।
-अमृता

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11 APR AT 21:03

"ज़रा देख  बिन तेरे किस  हाल  से  गुज़र  रहा हूँ मैं
जैसे  एक  उम्र तक इस ज़िंदगी से बे-खबर रहा हूँ  मैं

लड़खड़ाकर संभल न पाया मैं, वक़्त के मक़्तल पर
सन्नाटा हो या शोरगुल, जी ग़म के अब्र में रहा हूँ  मैं

कहानी का उन्वान देता गवाही, बेरुखी बे-मतलब की
लम्हा दर लम्हा बेचैनियाँ इतनी कि खोता सब्र रहा हूँ मैं

वफ़ा ए हुस्न की लज़्ज़त गयी मुझे छोड़कर यूँ बिना कहे
कहकशाँ में कोई दूसरा है क़ामयाब कि सिफ़र रहा हूँ मैं

भावनाओं का दरिया अश्क़ बनकर दीदा ए चश्म से बहा
सुकून नहीं कहीं कभी,  लगता है जैसे ज़हर पी रहा हूँ मैं

इक पल का जीना दूभर हो गया इस आलम ए तन्हाई में
क़ज़ा से पहले तूने सज़ा दी,  दूंढ़ वक़्त ए सहर रहा हूँ मैं

पुरज़ोर तलातुम इश्क़ में, हम शनावर कमज़ोर ठहरे'अमृता
आबदोज़ हुआ सफ़िना मुहब्बत का, बह बहर में रहा हूँ मैं"।।
-अमृता

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9 APR AT 15:30

"सज-धज कर बैठी है जगदंबा, चौकी है मेरी  मईया की
प्रथम दिवस अति सुहानी पावनी, उपवास संग भक्ति की
शैलपुत्री  रुप भगवती का, पूजा है मेरी आत्मिक शक्ति की
वर देगी हर लेगी कष्ट सारा मेरा, पूजन है सात्विक प्रवृत्ति की।"
-अमृता

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7 APR AT 18:25

/दूर होने का दर्द/

हर ज़ज्बा इस तरह क़ामिल है, मुकम्मल ज़िन्दगी जीने के लिए
कुछ विसाल, कुछ ज़हरे फ़िराक़ मिलता महज़ ज़िंदगी में पीने के लिए।

राअनाई लज़्ज़त मिली  ग़ुबारे दिल निकल गया, इश्क़ जब किया
हर कश्मकश को कह दिया अलविदा हर पहलू हयात का हँसने के लिए।

हर शब मयस्सरी में जो मिले सौगात वफ़ा का दिया उनको, हमने
सहरे जुदाई के आलम को लेकिन जीते रहे, तसव्वुर में रोने के लिए।

मेरी नींदों को कब्ज़े मे लेकर वो चले तो गये,  फिर मिलेंगे कहकर
मौसम बदले इन्तजार में ऑ ख़तों में हाल ए दिल बयाँ करने के लिए।

मुकद्दर की खलनायकी सुकून चुरा ले गयी हमारी,न जाने कब से
दुनयावी मसले हैं इतने, इश्क़ रह गया सफ्हे पे बस लिखने के लिए।

फुरसत से तारूफ़ ग़र करे "अमृता सोज़ ए उल्फ़त को रक़म करे
विसाल और फ़िराक़ ज़ज्बात के नज़रिए है धड़कनों को छेड़ने के लिए।

दूर होने का दर्द हमसे भला ज्यादा जाने का कौन
मरस्सते हयात का वादा उसने किया तस्सवुर में दिल बहलाने के लिए।
-अमृता

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4 APR AT 21:44

"बहुत खास हो तुम, धड़कनों की आवाज़ाही में रम्ज़ एक एहसास हो तुम
बड़े नाज़ से रखा तुम्हें साहिबा तुम जानती नहीं दिलके  कितने पास हो तुम।

कभी गुंजती तेरी आवाज़ मेरे कानों में सोया हुआ था जब तन्हाई के शानों पे मैं
ख्वाबों में दे कर मुझे सहारे मेरी खुशियों का बढ़ाती हस्सास हो तुम।

यूं तो अज़्ज़ियत बढ़ाती तुझसे पल भर की दूरियाँ ना-ग़वार ग़म ए फिराक़
तेरी जुस्तजू तेरी आरज़ू इस मुन्तजिर दिल की बे-इंतेहा प्यास हो तुम।  

मेरे सोज़ ए दिल में वो तपिश है तेरी सांसों की खुशबू महसूस करें
अपनी सांसों में
तेरी दिली ख़लिश को कैसे मिटाएं हँसते हँसते हो जाते उदास हो तुम।

बाद ए वफ़ात भी रूह तडपती रहेगी हमारी खुली रहेगीं ये पलकें तेरे दीदार के वास्ते
फ़ुर्क़त ए हबीब में तरसते रहे ख़ुशी के लिए, जाती सांसों का आभास हो तुम।

तुम जब भी आओगे, मिलेंगें बाहें फैलाए हम तुमसे सनम
कि इस इज़्तिरार ए दिल के मेरे, कयास हो तुम।

इस बे-लौस मुहब्बत की क़सम दिल ए नादान पे इल्ज़ाम न लगाना"अमृता
दौरे ग़म में अश्क़ों ने भिगोया जिसे कभी, कभी ओढ़ता रहा मैं वो सलमेदार लिबास हो तुम।
-अमृता

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4 APR AT 21:34

खरीद-फरोख्त हो रही, इंसाँ के हर जज़्बात की
मंडी लगी है बाहर यारों, रिश्तों  के  व्यापार  की

बे रोक टोक बिक रहा ख़ून उम्दा दामों पर यहाँ
अब तो बे-हयाई बन गई है, रौनक बाज़ार  की

रस्में कसमें इश्क़ में हम निभाते चले गए लेकिन
फ़साना ए मोहब्बत बन गई है, गज़ल मज़ार की

अज़ीज़ दोस्त बने हैं दुश्मन, धार ए खंजर तेज़ हुई
सूखे पत्तों की सरसरहाट ले गई संग रुत बहार की

जो मुँह खोले उगले ज़हर, ज़ुबाँ हुई अफ़ीमी 'अमृता
इस रोक टोक वाली दुनिया ने सपने तोड़े हज़ार की।
-अमृता

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4 APR AT 19:50

वफ़ा तेरे इश्क़ से,
लो जफ़ा ज़िंदगी से कर बैठे
मिला तगमा हमें अबतो
बेवफ़ा ए मुहब्बत का
कश्मकश ए दिल है,
बेवजह ही इश्क़ कर बैठे
जब आलम ए एहीतिराम न रहा
तो यादों को दफ़न हम कर बैठे।
-अमृता

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1 MAR AT 15:50

तिरा इन्तजार, तिरे इन्तख़ाब को मुकम्मल कर देगा
इसी ख़याल में ख़ुदा से भी, ख़ुसूसियत लिए बैठे हैं !
-अमृता

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