/आकाशगंगा उसकी छुअन में/
कोमल चंचला का नव यौवन
कामरूप अधीर अभूत निहारे
रति बदन...
निशिगंधा का मादक गंध
यामिनी तारक अति प्रसन्न
'आकुल अधरों की व्यंजना '
व्याकुल दहक रही देह संरचना
प्रेम शरद की कौंध चमक दमक रही
स्खलित श्वेत रस ,वो रज रज नहा रही
देखा लिया ब्रहमांड सम्पूर्ण,
आकाशगंगा में अभिभूत
झंझनिल से बुझे दीपक
संसर्ग न रहा अपूर्ण . ....
बरसने लगा कंदरा से अमृत
मैं जी रही हूँ या हूँ मृत।
-अमृता-
Love romance passion and much more..
"अमृता" paying a humble tr... read more
आँखों में ले कर इंतेजार बैठा है, तेरा तलबगार बैठा है
उम्मीद में तेरी चारा-गर तेरा दिल ए बीमार बैठा है।
दिल में इज़हार ए मुहब्बत लिये, एक ख़ाकसार बैठा है
एक छोटी सी भूल का, क्यों दिल मे लिए गुबार बैठा है।
तू मशरूफ़ इतना हो गया इमरोज़ कि तुझे खबर क्या,
कोई तस्सवुर में तेरे कितनी रातें बे-दार बैठा है।
तू रूकता तो बन कर हम सफ़र तेरी मैं आती फ़र्दा ज़रूर
तेरी मोहब्बत ए इसरार में कब से मेरा किरदार बैठा है।
तोहमत औ इल्ज़ाम लगना तेरी फितरत ही सही सनम
रुस्वाईयों के आलम में दर्द ए दिल लिये तेरा गुनाहगार बैठा है।
-अमृता-
दुज़्दीदा निगाहों से जो देखे,माज़रा क्या है
उस ने देखा तो धड़कनों में, हुआ क्या है!
निगाहों ने करली शनासाई, हरसू वो दिखे
मिटकर उन पे अब ज़माने में धरा क्या है!
हथेलियों की हिनाई ने छुपाया है नाम मेरा
अगर वलिमा तक बात बढ़े तो बुरा क्या है!
चिलमन में मन्नतों का तागा वो बांधने लगी
कोई पूछे उन से, आखिर वो दुआ क्या है!
गुजरे जो कुचे से उनके हम वो दरीचे से झाँके
साईकिल की घंटी पूछेगी बता रज़ा क्या है!
शहाना अंदाज ऑ, नबाबी ठाठ बाट उनके
मुफ़िलसी में इश्क़ आखिर मेरा दर्ज़ा क्या है!
-अमृता-