न जाने क्यों फलक पर हर रात टूट जाता है,
एक टुकड़ा तुझसे ऐ चाँद तेरी आवारगी का !-
टुकड़ों में टूट रही है कुछ इस तरह से सबकी ज़िन्दगी,
जैसे एक साल उम्र बढ़ने पर एक साल कम होती है ज़िन्दगी!-
तुम्हारे मेहरून शर्ट की सिलवटों में,
दिल का एक टुकड़ा छोड़ आए हैं .....-
सूख चुका है पौधा हमारी मोहब्बत का
जाने किस उम्मीद से पानी डाल रही हूँ-
एक उम्मीद है कि कल फिर फूटेंगी नयी कोपलें
सींचने को पौधा, आँख का पानी खंगाल रही हूँ-
मत पूछ एहसास मैं,
टुकड़ा टुकड़ा बिखर जाता हूं....
उसे मालूम है मेरी कमजोरी ,
वो रो देती है मैं हार जाता हूं.....-
तुम हो नीला आकाश ,
मैं बादल का एक टुकड़ा ,
कभी भी ,कहीं भी
बरस जाती हूँ !!
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ख़ानाबदोश हूँ मैं तबियत से
अक्सर ही घर बदलती हूँ;
छोड़ती हूँ जो कोई शहर तो
टुकड़ा एक साथ लेकर चलती हूँ।-
छोटी जीत के छोटे छोटे टुकड़े,
आग मे तपे मिट्टी सा निर्णय ,
ना हारने वाली उम्मीद,
उजियारे करेगी.
मसला चलते वक़्त
को सम्भारने का है.
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