rumaisa  
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लिखती हू ताकि खुद को महसुस कर सकू!!
Joined 10 August 2019


लिखती हू ताकि खुद को महसुस कर सकू!!
Joined 10 August 2019
30 APR 2023 AT 17:50

आजमाइश की दीवार मोटी रखी है तूने
वर्ना तेरे करीबियत की खुशबु
मुझसे राबते मे कहती हैं _तू बस मिरा है

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11 JAN 2023 AT 20:25

आजतक जितने भी लोगों से मिली, कभी कुछ छूट जाने का डर नहीं लगा. मिलना इत्तफाक तो नहीं था, दो परिवारों की मंजूरी रही,जो रस्मे मुझे मिल कर निभाना था. असमंजस मे गुजरी वो सुबह, आखिर क्या ही बात चित होगी. तब तलक मे मैसेज आया, जिसमें वेन्यू का पता लिखा था. मैं कभी ओके नहीं लिखती, मुझे लगता है, "ओके का जिक्र शब्दों की कमी है". पर इसबार ओके मुनासिब लगा. इतने रंगीन मिजाज कैफेटेरिया मे, एक बंदा फॉर्मल कपडों मे था. वो दूर से ही भीड़ से अलग था, झट से हैलो हाइ नजरों के इशारों से हुई. तब तक वेटर आके अपना पैतरा जमा लिए. बातों की शुरूवात धीमी रही, पर बाते जारी रही. हमने कहानी, उपन्यास, पालिटिक्स, यूपीएससी, एथिक्स हर किस्म के बात किए सिवाए मुद्दे के. खाना खत्म होते ही, हम अपने अपने रास्ते जाना था. उसने पूछा कुछ छुटा है, मैंने झट से कहा 'चाय'. और उसकी वो मुस्कान, जो शायद कह रहा हो, चाय से हमारी भी पुरानी यारी है. ✍️🙆

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8 JAN 2023 AT 8:54

खैर अभी तो सुबह है

पर दस्तक का क्या, वो तो
सरेआम बोली लगाते फिरती है

कभी धम्म से कभी शून्यता से
बाकि आप पर ठहरा
पूरे के पूरे सहनशक्ति पर

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7 JAN 2023 AT 14:39

हौले बोले
किस्सों कहानी की रपट लिख जाएगी

बस इतने मे
दिल्ली की सर्द याद आ जाएगी

चाय पर बुलाया है उसने
क्या मेरी पहली लोकल छूट जाएगी 😉

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4 JAN 2023 AT 6:56

तुम तो "हँसडीहा लोकल" निकले जाना
हम तो तुम्हें पटना ईंटरसिटी समझ रहे थे

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3 JAN 2023 AT 7:41

मैं किसी अदृश्य कोहरे के भाँति
अचल और जिवित जान पड़ता हूँ.

पनपते वानस्पतिक, कदम के पेड़
हिलोरें मारती पीपल के जटिल वृक्ष
पास नतमस्तक हुए मंदार की चोटी
परम पावन पार्वतीपति विष्णुजी के
मुस्कराते चेहरे की दिव्यमान कृति
नाग वासुकि से घटित अमृत मंथन

मैं भावनात्मक उर्वशी से कैद अपने
स्थिर साहित्यक अवहट्ट मे जब्त रहा.

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29 DEC 2022 AT 10:53

अब जब इंसान ब्रेकअप्स के बाद, अपनी जान लेने लेगे, तो इससे भयानक क्या है. किसी के केस मे अपनी राय थोपना भी, उचित नहीं है. पर ये जो शब्द "ब्रेकअप" है, बहोत ही पेचीदगियों से उलझा पड़ा है. जितना सहज हमे दिखता है, उससे कहीं ज्यादा तकलीफदेह है. औरों समस्याओं से तौलने पर पलड़ा कम जरुर है, पर मानसिक स्तिथि को कमजोर करने के लिए काफी है. मुझे याद है वो दिन, जब उसने सालों का रिश्ता महज कुछ मिंटो पर खत्म कर दिया था. मैं समझ नहीं पा रही थी, ये हो क्या रहा है. कुछ चुनिंदा शब्दों से, सब यू ही खत्म कर दिया. शब्द तो खत्म हो गए , पर टीस बची रह गई. सब कुछ कोशिश की, यहाँ तक आत्मसम्मान भी. पर शायद जाने वाले इंसान ज्यादा कठोर हो जाता है. उसे दिखता नहीं अश्रु से भरी वो आंखे, जो इश्क में लुटा जा रहा हो. इक बेबाक लड़की जो खुलकर जीती थी, बरसों लगे उसे खुद को प्यार करने मे. समझ आया दुनिया जो दिखती है, वैसी है नहीं. समझ है, ऐसे दौर को जीने मे, दुनिया के साथ चलने मे. जब लगे कहीं अटक रहे हो, तो भरोसा खुद का जरूरी है. आप जरूरी हो, आपका परिवार बाकि नाम के रिश्ते हैं ✍️🌻❤️

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28 DEC 2022 AT 0:05

आधी रात को जब नींद के गलियारे मे
बेशक नींद ना हो, तब तेरा ख्याल आता है
ख्याल कुछ ऐसा, चाय पूछने का सबब आता है

वो तुम्हारी काली कमीज और उसपर चंदन
किसी किला के नक्काशी मीनार लगते हो

और तुम्हारा वो लहजा, बिन मौसम बरसात है
जब तुम बिंदी पर शायरी फरमाते हो
ठण्डी शीतलहर मे एक गर्म चादर लगते हो

माना कि तुमसे रूबरू ख्वाबों मे होती है
हकीकत को आजमाने का मुझमे जोर नहीं है
वाबस्ता खयालात है, पर कहने का होड़ नहीं है
#ajnabi ❤️

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25 DEC 2022 AT 13:10

कभी फुर्सत में अपने आले किस्सों सुनाऊंगा
गालिब धड़कते हृदय को इतवार का इंतजार है

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23 DEC 2022 AT 18:30

कहा जाता है __(शिवा)
ख्वाहिशें कभी दवा कभी दुआ होती है,
इश्क बेदाग और मासूम हुआ करता है,
सच्चाई जीवन जीने के ललक से पूर्ण है,
चारो ओर लालिमा,मोहभंग से आच्छादित
शिव के नटराज मूर्त रूप से विराजमान..
यही तो ख्वाहिशें है _ इश्क है _ सच्चाई है
अष्टमूर्ति ही तो सत्य है _काल है _महाकाल है

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