जल प्रलय
कितना खौफनाक वो पहर था...
जब प्रकृति ने बरसाया अपना कहर था...
किसने सोच था कि वो जल प्रलय आएगा..
सब कुछ तहस नहस कर जायेगा...
प्रलय में जान गवाई उसने....
जो मेहनत से कमाने को मशहूर था...
घर से दूर रहने को मजबूर था....
हाँ, वो चंद रुपए कमाने वाला मजदूर ही था..
पीछे छोड़ गया वो..
उस माँ को जिसने संतान खोयी थी..
पत्नी जो बिना श्रृंगार विधवा बैठी थी....
संतानें जो अब बाप का साया खो चुकी थी..
कुछ के शव पानी में..नहरो में..गढ्ढो में मिले..
तो कुछ बेचारे आखिरी वक्त में कंधा तक नहीं पा सके..
न जाने उस पिता पर क्या बीती होगी..
जिसने अपने ही पुत्र की धधकती चिता देखी होगी...
एक कोने में बेसुध पड़ी उसकी माँ बैठी होगी..
जो अब भी किसी चमत्कार के इंतजार में होगी..
वो बच्चे जो पिता के आने पर खिलौने ख़रीदने की आस में होंगे
उन्हें को बताए कि अब वो नहीं लौटेंगे...
जिस तरह मनुष्य प्रकृति को निरंतर पहुँचा रहा हानि है..
शायद यह आपदा उसी की चेतावनी है..-
बहुत देख ली तुमने जेसीबी की जगह-जगह खुदाई
अब देखो जब जेसीबी ने जल-प्रलय से जान बचाई-
अपने मौन से..
किसी उजाड़ को,
पाषाण सा चोटिल न करो।
किन्हीं कलपते नेत्रों पर,
सावन सा बरस जाओ,।
वे नेत्र सदियों तलक,
तुम्हारा ही जलाभिषेक करेंगे।-
ये पथराई पलकों की
थकन भी देखो,
झपकी नहीं अब तक ये
कई वर्षो से..!
तुम्हें पुकारती है
सांसों की उतरन अब भी
बदन से जो नही जुड़ी हैं
कई अर्षो से...!!-
■ बस पीठ थपथपाने वाली कहानियाँ;
हजारों आई॰ए॰एस॰ और फलां ढिमका का भार हो तुम।
पूरे सिस्टम की फेल्योर को नार्मल समझने वाले लालू-नीतीश के कर्मों की बेइज्जती वाली हार हो तुम।
वाकई में 'बिहार' एक स्टार हो तुम।😐🙏-
पावसाला आल जणू उधाण
जलप्रलयान घातलं थैमान..
गावे शहरे उध्वस्त करुनी
माणसे जनावरे झाली गतप्राण..
पै पै जोडून उभारलेले संसार
क्षणार्धात गेले वाहून..
जिवंतपणीच सगळ्यांना तू रे
गेलास नरक दाखून....
कोल्हापूर सांगली साताराच
कसा रे तुला दिसला
विदर्भ मराठवाड्यावरच मग
तू का असा रुसला...
थांबव आता तरी देवा तू
हा प्रलयाचा हाहाकार
काय मिळणार सांग तुला
करुनी असा अंधकार...
✍️ सारिका आवटे 🚩-
निर्दयी झाला का रे देवा तू सांग मला,
सगळ्यांना मारून काय भेटणार आहे रे तुला.. !!
जिथं तुझं ठाण आहे तिथेच हाहाकार माजवला,
गुरे, ढोरे, माणसाना जिवंतपणी "नर्क" दाखवला.. !!
जिकडे नाही तिकडे डोळ्यात पाणी आणतो रे तू,
आणि आमच्याकडे जिवंतपणी मारतो रे तू.. !!
खरंच सांग रे देवा इतका कसा रे निर्दयी तू,
कोल्हापूर,सांगली,सातारा तिथेच का बरसला तू.. !!
जिवंतपणे मृत्यू दाखवून तुला काय भेटणार आहे
होती तुझ्यावर श्रद्धा तेच आता मिटणार आहे.. !!
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अब बंद करो बारिश का जोर
झिहिर झिहिर चहुंओर ये शोर
क्या कोई गा रहा मेघ मल्हार
बारिश हो रही मेघ को फाड़
और उस पर सौदामिनी चित्कार
वज्रपात नभ वसुधा ढार
और पुलकित बदरा का जल भार
अमृत है या अतिवृष्टि धार
उद्गम स्थल को मोड़ दो कोई
पाताल करो मानव संजोई
ये सड़कों पर आया है बाढ़
वायुगति उस पर आगाढ़
विचलित विस्मय से रही निहार
रक्षा इश्वर मैं गई हूँ हार
मानव का जीवन पुनः दो ताड़
चाहे एक ही बार में दो तुम मार-
इस तसव्वुर से भला अब किसको हैरानी ना हो
आसमाँ पर अब्र हों लेकिन कभी बारानी ना हो
मिस्ल-ए-सहरा के पड़ा हो ये समंदर का हिसार
मौज-ए-हलचल तो रहे पर उसमें तुग़्यानी ना हो
किस क़दर पानी बहाते रहते हैं हम रोज़-ओ-शब
फ़िक्र कुछ हमको नहीं और कोई पशेमानी ना हो
जब अटक जाए कोई लुक़मा हलक़ में दफ़्अतन
और फिर घर के किसी बरतन में भी पानी ना हो-
उन्हाळा असो की पावसाळा
त्रास होतो नेहमी सामान्य माणसाला
श्रीमंती बसली आहे काचेच्या बंगल्यात ती..
कुठे जातात अशा वेळेला ते राजकारणी
मतदान मागायला काढतात जनहित यात्रा
हिरो असो की मग उद्योगपती सर्व बघतात आपआपलं..
शेवटी दोष तरी द्यायचा कोणाला
इथे आपलेच आहेत ज्यांनी केला सृष्टीचा विनाश
फाटले आभाळ अन,कोसळले अश्रु हे खेडेपाडी..
देव तरी कोणी पाहिला
त्याची करावी वाटते फक्त संकटकाळी आराधना
तो तरी किती मदत करेल
राक्षस आपण आहोत म्हणून तर शिक्षा भोगत आहोत..-