किताबों में वो सच लिखा होता है
जिसे हम सारी उम्र झुठलाते रहते..!-
Not a writer by profession....but writer by passion✍️
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लोग इतना ज्ञान क्यों अर्जित कर लेते ,
कि मन मस्तिष्क में किसी की
"अनकही अनुभूतियों "
को समझने का
स्थान ही नहीं बचता ..!-
वो हर वर्ष आती है
मुझे मिलने,
सुदूर पहाड़ों से !
भरकर हृदय अपना,
बर्फीली बहारों से!
भर देती है मेरे आलिंगन में
जानें कितनी याचनाएं..
और.. मैं सारी स्वीकृति
सारी याचनाएं,
स्वीकार लेता हूं..!
उसके समर्पण पर
मैं अपने समय की
सूक्ष्मता भी वार लेता हूं..!-
"मेरी दुनियां में ,
तुमसे पहले
या तुम्हारे बाद..
न कोई आया
न कोई आएगा...!
तुम मेरे प्राणों के
साथ ही प्रतिष्ठित हुए ;
और इन प्राणों के बाद भी
सिर्फ मेरी देह जाएगी...!
तुम इस आत्मा के साथ ही
अमर रहोगे मुझमें ।"-
मुझे अमरता नहीं चाहिए..!
दैव आसरा भी नहीं चाहिए...!
पाप पुण्य से ऊपर
कहीं किसी घृणित स्थान पर भी
शान्ति का अनुभव होगा,
अगर तुम प्रेम की एक दृष्टि रखो मुझपर...
सदैव तुम्हारी..-
स्वप्नों के सहस्र अंकुरण हैं
तुम्हारी आँखों में ,
समय के खारेपन से..
प्रेम के मीठे जल से...
तुम एक कल्पतरु का निर्माण करना!
सुनो हे नारायणी.!
जब भी बात स्वाभिमान की हो..
तुम हृदय के लिए
कोमलता नहीं..पाषाण चुनना!
इस बार स्वयं के लिए..
स्वयं की विवशता का हार (पराजय) चुनना!!-
जंगल है जुगनुओं का
इन आँखों की गहराई
मुझे भटकने दो इनमें
कुछ देर रहने दो ना..
मुझे इश्क़ करने दो ना..!!-
कभी कभी उदासी अकारण ही होती है,
पर असर गहरा करती है ।
इतना गहरा.....
कि सारी इच्छाओं को स्वाहा कर जाती है।-
लब्ज़ की बनावट से
कहीं अधिक शोर करती है..
बशर्ते सुनने और समझने की
अदब तुममें जिंदा हो..
ख़ामोशी की आवाज़-
मुठ्ठी भर बादलों में
आसमान भर की पीड़ा..
कहाँ छुपाती हैं तेरी आँखें ..!!
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