अपना हिजाब उतारकर उसने,
उसे एक हिन्दू के जख्म पर बांध दिया,,
...लगता है उसने कुरान पढ़ी है।-
शरीर के ज़ख्म पर मरहम लगाती हूं
दिल के ज़ख्म को मुस्कुराहट से छुपाती हूं-
जिंदगी ज़ख्म तो लाखों देती हैं,
बस कौन सा ज़ख्म आप दिल पे लेते हों
वहीं से एक नई कहानी लिखी जाती हैं।-
प्यार और जख्म में बस इतना फर्क पाया...
की प्यार ने दिया सहारा ,और जख्म ने फिर से जीना सिखाया.....😕😕-
अच्छा तो हमारे जख्म भरने आए हो ,
पहले ये बताओ ! तुमको चोट किसने दी ?
जो हमसे मरहम लेने आए हो।-
शायद मुझे लगा कि
मैं अपने ज़िंदगी में
इक नया सवेरा ले आया हूँ,
मुझे तो पता भी नहीं था यारों
मैं अपने ही क़ातिल को
अपने घर ले आया हूँ,-
किन लफ़्ज़ों में बयां करुँ
शरीर के इन ज़ख्म को,,
जब की ये ज़ख्म ही
सब कुछ बयां करते है..-
एक नज़्म है. जिसने फिर से मेरे जख्म को कुरेदा है..
रिस चूका है कितना ये..मुझे खबर नहीं..
पर इश्क़ है ये...समीर..
हर बार ज़ख़्म ना भरने की दुआ मांग लेता है.!!-
किसी से हाल पूछने में भी डर लगता है,
बिन मतलब अब कौन किसको याद करता है।
ये जख्म लाज़मी है,इसे छुपालो गौरव,
बेहतर होगा कि,खुद को सम्भाल लो गौरव।
फिक्र दिल से हो फिर भी कहाँ किसी को अहम लगता है,
मतलबी लोगों के वजह से शायद ये भ्रम लगता है ।-
जब किसी जख्म से खून ना निकले तो समझ लेना
वो ज़ख्म किसी आपके अपने ने दिया है-