QUOTES ON #घरवापसी

#घरवापसी quotes

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28 MAY 2020 AT 18:20

उठ जाओ ना मां, तूने तो कहा था घर जाना हैं,
ये तू कहा रुक गई मां, जिसे लोगो ने चल बसी जाना हैं।

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1 SEP 2020 AT 23:56

बाप - घर वापसी
एक बाप कर रहा है आज घर वापसी।
उसकी दुनिया नहीं है इतनी खास सी।
सुना नौकरी से सेवानिवृत्त होकर घर आ रहा है।
तो वापस लौट कर ही क्यों आ रहा है।
लोगों को कानाफूसी करने में मज़ा आ रहा है।
यहां परवाह ही किसे है उसकी ।
इनको तो दौलत से प्यार है उसकी।
जब तक लुटाई बेशुमार दौलत उसने।
तब तक पाई अपनों के दिलों में जगह उसने।
हैरानी है मुझे उसके परिवारवालों पर।
अपने संरक्षक को पैसे कमाने वाली मशीन समझने पर।
बीवी के लिए एकमात्र श्रृंगार का प्रतीक है वो।
जिसके लिए सजती है उसी की इज्ज़त नहीं करती है वो।
अपने लड़के और लड़की के लिए संरक्षक ना होकर।
उनके आनंदमय जीवन में खलल डालने वाला है वो।
रिश्तेदारों के लिए मुसीबत की घड़ी में इकलौता सहारा है वो।
फिर आज उस बाप की घर वापसी पे ये सवाल क्यों हैं??
जिसने लुटाया जीवन सारा उसी को अपनाने में ये हर्ज क्यों हैं?
सेवानिवृत्त वो सिर्फ अपने काम से हुआ है।
तुम्हारे जीवन से नहीं हुआ है।

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8 JUN 2020 AT 18:53

न चाहते हुए भी लौटना पड़ा था उसे, अपने गाँव। वह गाँव जहाँ उसने अभावों से भरा बचपन गुजारा था। फिर एक दिन काम की तलाश ने उसे शहर की दिशा दिखाई। जल्द ही गाँव की यादों पर शहर की जरूरतों की जिल्द चढ़ गयी।

सुरत से लौटने पर उसे गाँव की सूरत ही बदली बदली सी लगी। रिश्ते भले ही कच्चे रह गये हों, सड़क और मकान पक्के हो चुके थे। बिजली, पानी और गैस सारी सुविधाएँ उपलब्ध थीं। गाँव ने धोती उतार पैंट पहन ली थी। दीवारें भी जालिम लोशन की जगह एयरटेल के विज्ञापन से सजी हुई थीं।

पहले 14 दिन के लिये उसे एक स्कूल में रखा गया था और फिर 7 दिन अपने घर पर रहने की हिदायत दी गयी थी। परन्तु उसके बचपन के साथी उसे अगवा कर ग्राम भ्रमण करवाते। घरों में टीवी, हाथों में स्मार्टफोन, गाँव और शहर के भेद मिटाने की कोशिश में लगे हुए थे। गलियों में सायकिल कम मोटर सायकिल ज्यादा दिखाई दे रही थी। हरियाली का घूँघट कम हुआ था और घूँघट में रहने वाली हरियाली बाहर आ गयी थी।

पता नहीं उसे गाँव ने मोह लिया या किसी गाँव वाली ने, विकास अब शहर लौटना नहीं चाहता।

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22 AUG 2018 AT 14:42

आज हवा में फिर उसकी खुशबू सी आयी है,
आज चांद में फिर, उसका - सा चेहरा नज़र आया है।
आज की बिजली में उसके उसी सफेद कुर्ते सी
कड़क और चमक है,
जिसको पहन के वो आखरी बार मिलने आया था।
आज बादल भी उसके बालों जैसे,
आधे सफेद आधे काले नज़र आ रहें हैं।
ये बारिश की बूंदे मेरे गालों पे आज ठीक उसी जगह आकर
गिरे हैं जहां उस दिन आंसू कई घंटो तक टिके रहे थे हम दोनों पर
जिस दिन वो अलविदा केहने आया था।
आज फिर मिलेंगे हम कईं सालों के इंतजार के बाद,
वो इंतजार जिसके ख़तम होने की फरियाद भी नहीं कर सकती थी मैं। रोज़ तारों की नज़रों से देखती थी उसको हर दिन, वो खुश तो था पर अधूरा भी।

अब दुआ है ऊपरवाले से कि जितने भी जन्म बचे हों अब सात जन्मों में से, हर एक में मौत भी साथ ही दे हमको।

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9 DEC 2021 AT 9:21

सपनों और रिश्तों के बीच की खाई
बढ़ती ही जा रही हैं जनाब...

मजबूरी या बेहतर भविष्य...

दे दो कोई भी अपना मनपसंद नाम
..पर ...आहुतियां तो ...
हर बार रिश्तों को ही देनी पड़ती...

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17 MAY 2020 AT 10:35

सारा घर ले के निकला है पैदल, वो घर से घर को..

कितना तरसता है घर सब के बनाने वाला ही घर को...

-----©दिशा 'अज़ल'

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8 DEC 2019 AT 16:23

ये शहर कुछ दीवाना लगता हैं
यहां हर अपना बेगाना लगता है
चुप रहते हैं गम यहां
चीखती है खामोशी भी
यहां हर खुशी गम का साया लगता है
यह शहर कुछ दीवाना लगता है।।।

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■ "तलाक़ और घर-वापसी
के बीच कुछ और भी
ज़रूरी है" : विश्लेषक

■"इत्ते दिन से वही तो
चल रहा था" : विदूषक
😊पाक़ साफ़, भूल माफ़😊

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5 DEC 2020 AT 2:24

आज थोड़ा खुश हूं मै बोहोत माह बाद,
एक तमन्ना पूरी हुई हैं आज मिन्नतों बाद..
तुमसे बात हुई है आज मेरे यार दिलदार,
तुम लौट आए हो दिलबर फिर एक बार..

फिर जाओगे नहीं ना? सताता है सवाल,
मै करना नहीं चाहता जुदाई का बवाल..
फिर खिला फूल जुडा है रिश्ता ये हमारा,
बहार आई पलट कर आए हो जो दोबारा..

ढूंढा था तुझे ना जाने कहां कहां,
चराग लेकर घुमा हूं मै यहां वहां..
इस आने की अब खुशी तो मना लूं..
परछाइयों को तेरी मै होठों से छू लूं..

अगर छोड़ गए भी तुम दोबारा,
तो तब उस विरह अगन के लिए,
सारे पल ये बीतेंगे जो प्यारे मीठे से,
दिल में संजोग कर अपने मै रख लूं..

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28 MAY 2020 AT 18:37

आसमां की आग को कुछ कम कर दे ए मौला,
कोई नंगें पांव चल दिया है अपने घर की ओर।

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