‘तुझं असणं’ अन् आठवणींचं श्राद्ध...!
जगतेय रे तुझ्याशिवाय सुध्दा.. मारणार नाहीये... पण तरीही तुझ्या अस्तित्वाशिवाय जगणं अपूर्ण आहे..
तुझं असणं पुरेसं होतं... हे ‘तुझं असणं’ मग ते दुरून का होईना तू आयुष्यात आहे, हेच पुरवून घेतलं होतं रे...
पण तुझं कायमचं जाणं असह्य होतंय आता..
अगदी असह्य.. इतकं की आपण श्वास का घेतोय? असा प्रश्न पडावा...
मनात इतकं सारं कोंडून जगायला लागेल.. वाटले नव्हते कधी...
तू असायला हवं होतं आयुष्यात... निदान भास तरी...
पण आता तो भासही नाहीये शिल्लक...
मी शिल्लक आहे..
जड झालेला एक एक श्वास घेत... आठवणींच्या मुसळधार पावसात भिजत...
तू येना.. पुन्हा माघारी...
तू येशील का पुन्हा परतून?
कारण फक्त तुझं असणं पुरेसं होतं...
नको होतंय आता जगण्याचं, हसण्याचं हे खोटं आवरण घालून मिरवणं..
तरीही आता या जगण्याला नव्याने बळ द्यावं वाटतंय... होय...
फार झालं आता...
तुझ्या आठवणींचं श्राद्ध घालावे म्हणतेय...
तुझ्या आठवणींचं श्राद्ध घालावे म्हणतेय...-
कुछ तो लिखती रहती हूं जो मन में आए..!
Moon Lover 🌕
सितारों के महफ़िल से ब... read more
ये ज़िंदगी,
तुम पे शुरू तुम पे खतम..!!
ऐसे क्या किए थे करम
पता नही पिछले जनम!!
अपने मन की करते,
रहते कभी दूर, कभी पास
कहो कैसे कैसे तुम्हे
हर बार मनाए हम...?
इतनी परेशानी होती है,
तुम्हारे बारे में सोच सोचकर
के अब लगता है,
भाड़ में जाए सब और सनम..!!-
क्या हम दुबारा मिलेंगे?
फूल चाहत के फिर खिलेंगे?
क्या हम दुबारा ऐसे मिलेंगे?
के हाथों में हाथ डाले बेझिझक घूमेंगे...
क्या एक आखरी बार हम दुबारा मिलेंगे?
और तब मरने तक कभी भी जुदा न होंगे...
काश हम मिलके इसतरह एक हो जाएंगे,
की जिंदगीभर के लिए पास-पास रहेंगे...
है ना? मिलना हैं तो जरूर मिलेंगे,
और फिर कायनात तक साथ चलेंगे...-
चलो बिच के चाँद को पुरा करते है!
तुम वहाँ से चले आना,
मै यहाँ से चले आऊँ...
मिलकर दोनो आधे अधुरे से,
एक हो कर एकदूसरे को पुरा करते है!
-
तूच बुद्धीदाता, तूच सिद्धीदाता
नसो कुणी तरी तूच सोबती आता...
'मी'पणा हरवून शरण येता विघ्नहर्ता
सारेच दुख, कष्ट, मोह सरे जाता जाता...
हो तूच पाठीराखा सखा, माता, पिता
हो तूच गणू माझा विघ्नविनाशक एकदंता...-
सबसे ज्यादा दुख
तब होता हैं,
जब कोई चीज़ हमारी हो कर भी
हमें नहीं मिल पाती।
तब होता हैं,
जब हम चाहकर भी वो नहीं कर पाते,
जो हमे करना होता हैं!
तब होता हैं,
जब कुछ नसीब में तो होता है,
मगर ज़िंदगी में नहीं होता है...-
जलन...
जलन का मतलब केवल ईर्ष्या नहीं।
जो अगर देख सको तो,
‘जलन’... ‘प्रेम’ का दूसरा रूप/नाम है...!-
सच हैं तू की वहम?
कभी कभी परेशान हो जाता है मन,
तू है भी और नहीं भी... ये सोचकर...
अगर तू हैं, तो जब चाहे तब आते क्यों नहीं?
और गर नहीं हैं, तो मन से जाते क्यों नहीं?
यूं तो हसरतों में बोहोत मिलना होता हैं,
बता दो एक बार आ कर रू-ब-रू भी
सच हैं तू के, बस वहम हैं मेरा...-
मन की कैद में रहा हूं उसके
जो कभी रूबरू मेरी कैद में न आ सका!
अक्सर ढूंढता रहा हूं बाहर भी हर लम्हे उसे,
था यही जो मन की किवाड़ोंसे कभी बाहर न आ सका!-