Alok Jha   (आlok)
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Old School!
Joined 1 November 2018


Old School!
Joined 1 November 2018
5 MAY 2021 AT 21:16

न इस पार के हो तुम न उस पार के हो तुम
तुम ही बताओ फिर किस पार के हो तुम

किताबों कि दुनिया में मशगूल हों गए
अपनी ही दुनिया में खबरदार हो तुम

न अपनों के हो तुम न परायों के हो तुम
बेइज्जत बेईमान बदनाम हो तुम

बैठो जरा देखो कहानियां सबकी
सबकी कहानियों के किरदार हो तुम।।

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10 APR 2021 AT 13:24

रात का नहीं दिन का ख्वाब था
मन बेचैन था मगर शांत था
किसी अचनबी के साथ होने की अनुभूति
हां वही था, हां वही था।।

//Part1

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9 MAR 2021 AT 19:31

जितनी शिद्दत से करूं उतना फीका लगता है
मिरे इश्क़ को इश्क़ होने से डर लगता‌ हैं

कुछ ऐसा हश्र हुआ है आशिकी में हमारा
आइने में हुलिया उजड़ा शजर लगता हैं

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5 MAR 2021 AT 19:34

बेहतर तो होता हम किनारा कर‌ लेते, मगर
दरिया-ए-इश्क़ में आखिर हम करते तो क्या करते

मोहब्बत ही मौजूद थी महफ़िल में ह‌र जगह
आशिक़ी के मारे हम, आखिर करते तो क्या करते

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4 MAR 2021 AT 12:10

रूबरू हो ग़म अजीम तनहाई हो
पुरी हुईं शब-ए-ग़म अब रिहाई हो

आसमां तलक जमाना ढूंढें
कुछ इस तरह आखिरी विदाई हो

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28 FEB 2021 AT 17:47

"Avni, how did you know I was here"

"Aren't you glad to see me, Danish?"

"I'm glad that I finally found a place where we wouldn't be bothered for loving each other"

"Indeed You found a gem of a place but I found you"

"Maybe that's why I love you"

"This place is not that bad, is it?"

"No...No it's great! Because there's no one but us"

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18 FEB 2021 AT 23:44

जो भी हैं जैसा भी हैं
मेरे दम से हैं
मुझ तक ही हैं
ख्वाबो की उलटी गंगा में
उम्मीद फतह की कम सी हैं
मक़सद भी हैं मंजिल भी हैं
मुर्सद भी हैं क़ाज़ी भी हैं
रार समय से मुश्किल सी हैं

जो भी हैं जैसा भी है
मेरे दम से हैं
मुझ तक ही हैं।

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14 FEB 2021 AT 21:53

सब कुछ तो हैं मोहब्बत में मगर कुछ नही
मोहब्बत में मोहब्बत जैसा बाकी कुछ नहीं

तमाम उम्र बैठी रही उदासियां गले तक मिरे
सिर्फ फ़िक्र-ए-महबूब थी हमें और कुछ नहीं

खत में जो लोग हाल-ए-दिल भेजते थें
अब लिखते हैं हमारे बीच बदला कुछ नहीं

"आलोक" तुम जो ना कहते सच तो कौन कहता
यही बात खल गई हैं सबको मस़ला कुछ नहीं

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14 OCT 2020 AT 0:59

नाकामियों का मंजर कुछ यूं दिखा हमें
चौदहवीं का चांद चौदह दिन दिखा हमें

पागल थे आशिक़ थे या क्या थे हम
हर तस्वीर में कमबख्त वहीं दिखा हमें

पहली मोहब्बत को खोने का डर
आज सुबह आइने में बस यहीं दिखा हमें

अब हमेशा के लिए बिछड़ने को है वो
मगर होठो पर उसके "आलोक" दिखा हमें

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14 AUG 2020 AT 22:42

सारी शब़ मेरी तरह कौन जागता होगा
चांद को भला किसका इंतजार होगा

आधी रात किस आंगन से चीख निकली
उस मकान में कोई हैवान रहा होगा

मदहोश मुस्कान और गजब चमक चेहरे पर
मेरा रकीब बहुत खुशनसीब रहा होगा

जैसे कोई शायर मोहब्बत करता है
कहां कोई किसी से करता होगा

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