गुमान था बड़ा इस तन पर इक पल में हुआ माटी
सबका खेल एक सा अर्थी पर क्या धर्म क्या जाति
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पत्थर को घमंड था, ताकत का,
एक पत्ते के दबाव से समंदर में डूब गया।-
ज़िन्दगी का ज़ायका करवट लेते ही बदल जाता है
बुलंदियाँ छूते ही इंसान इंसानियत क्यों भूल जाता है
जो कभी पतझड़ो में भी गुले ए गुलज़ार हुआ करते थे
अब बहारों में शज़र से गिरते मायूस पत्तों सा बिखर जाता है
चिंगारी जो कभी आग सी धधकती थी सीने में ज़माने को बदलने की
आज चट्टानों के सामने भी घमंड से अपना ऐब दिखाता है
टूटता है एक दिन गुमान कांच के टुकड़ों में बिखर कर
जब आईना तेरी बनावटी सूरत नही अस्ल सिरत दर्शाता है-
सूखे दरख्तों को अक्सर... परिंदे बिसर जाते हैं
पऱ मौसम बदलता है... शाख़ पे अंकुर फ़िर आते हैं,
यह जीवन है तारों सा... बुझता चमकता है
कौन कहता है के... वो खूबसूरत नहीं होते... जो बिख़र जाते हैं,
मैंने सुना है बड़े लोगों को अपने बारे में छोटी बात करते
अच्छा है... के मेरे निकृष्ट चेहरे से आईने निखर जाते हैं,
जनाब... अपनी दौलत-शोहरत पर इतना भी मत इतराओ..
सारे अंक रह जायेंगे... अंततः बस साथ सिफर जाते हैं,
पत्ते कितने भी ऊँचे टहनी पे क्यूँ ना लगे हों
पतझड़ आती है तो... अपने आप ही गिर जाते हैं!!-
ज़मीं पर रह हवा में न उड़,
अभी पंख उड़ान के क़ाबिल नही,
शख्स वो मज़ाक में कह गया होगा शायर तुम्हें,
अभी कलम का तेरी कोई कायल नही
वाह-वाह,बहुत खूब का तो चलन है आजकल
हृदय से तारीफ किसी की अभी तुम्हें मिली नही,
पढ़ कर कोई सोचता रहे दो पल तुम्हे,
गहराई इतनी भी तेरे शब्दों में अभी दिखी नही
अकड़ के खड़ा है उखड़ जाएगा जल्दी ही
किस्मत तेरी कि अभी आँधीयाँ तुम तक पहुँची नही
झुक जा "मुनीष", फल लदे वृक्ष की तरह
अहंकारियों के सिर टोपी सम्मान की कभी टीकी नही-
आज इंसानियत का रंग इतना बेरंग क्यूँ है,
हर शख्स को खुद पर इतना गुरूर क्यूँ है?
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घमण्ड
घमण्ड विमान की तरह आसमान में उड़ता है जरुर
पर वक्त आने पर टूटते तारे की तरह गिरा ता है जरूर-
जात का घमंड करने वालो
इंसान का इंसानियत से नाता होता है
कभी मुसीबत में पड़ो अगर
वो इंसान ही है जो इंसान के काम आता है-