बरस रहा सावन रिमझिम गितों के मेले लगे
भीग रही आँखें जाने कौनसे ज़ख्म हरे हुए
बंद पलकों से आंँसू बहे दर्द है कि छिपे नहीं
बार-बार घात करें चोटों का अता -पता नहीं
दर्द से भरे रात दिन सावन भला कैसे भाए
आंँखों से झर-झर बहे ख़्वाब टूटते ही जाए
तेरी याद में सावन फिका फिके रंग दिखाए
जोर चले ना मुझ पर आंँखों से बहता जाए
अनु अग्रवाल
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मुश्किल तब तक बड़ी है जब तक समझे बड़ी
हर मुश्किल का हल है गर हिम्मत दिखाए थोड़ी-
इस पल में हर पल है अगला पल कौन जाने
कितना वक़्त दो साँसों के दरमियान क्या पता
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फिर से यह शाम मुठ्ठी में सुरमई उज़ाले भर लाई है
आंँखों में ख़्वाब दे दूर कहीं से तेरी खुशबू उडा लाई है-
आज फिर से ये शाम गीत कोई गा ना दे
अभी तो संभला हुआ है फिर कहीं रो ना दे-
महक रही धरती पसीने की बूंँद से
कण-कण खिल रहा फूलों की खुशबू से
सौंधीं सुगंध आये सरसों के खेतों से
चहक रहे मोर पपीहे बरगद के पेड़ से
लग रही धरा सुंदर हरी-भरी डाली से
कई रंग के फूल खिले छोटी सी क्यारी से
चमक रहा चेहरा किसान का खेती से
बहुत खुश है वो नज़र लगे ना कहीं दूर से
मेहनत रंग लाई कहे माथे की लकीर से
आदमी धून का पक्का हूँ डरता नहीं हार से
अनु अग्रवाल
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दवा ना इलाज़ शक की ईमारत तोड़े कैसे
घर करके बैठ गई बात मन से निकले कैसे
डर अज़ीब है बात-बात पर मन उकसाये
सवालों के ज़़ज़ाल से बेचारा निकले कैसे
शक की दुकान ये व्यापार घना ही चलाये
भाव दिन दो गुना बढ़े हैं उत्तरे बताओ कैसे
बात-बात पर शक करना जग की नियती
आदमी मज़बूर है भाव यह बदले तो कैसे
टूट जाते रिश्ते हैं ढह जाते परिवार हजार
शक की बुनियाद मोटी तोड़े तो भला कैसे
अनु अग्रवाल
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बेगुनाहों पर चली गोलियां कैसे ना पूछो
खो गई इंसानियत आज के हालात ना पूछो
मर रही मानवता आदमी और औरत की
रौब में चले सब किस बात का घमंड ना पूछो
हौड़ लगी जाने कैसी बात-बात करे लड़ाई
सुरक्षा की घेराबंदी टूटी कैसे घटी घटना ना पूछो
घाव लगे अनेकानेक जब प्लेन में बचा न एक
तबाह हो गये घर कई कैसे हुआ सब राख ना पूछो
तबाही का हर मंज़र दिखा दिया इस साल ने
क्या-क्या हुआ,क्या-क्या होगा बर्बाद ख़ौप ना पूछो
अनु अग्रवाल
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