Annu agarwal   (Annu Agarwal)
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Joined 12 May 2020


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Joined 12 May 2020
21 HOURS AGO

बदल-बदलकर बात नहीं एक वादा कर
कपड़ों सा बदले ना ऐसा कोई वादा कर

साथ निभाना वक़्त पर साथ की बात कर
टूटे ना शिशे की तरह ऐसा एक इरादा कर

होनी अनहोनी की पहले से फ़िक्र ना‌ कर
जो होना होगा बस अच्छे पर विचार कर

चाही होती नहीं अनचाही की बात न कर
बुराई की बात कम अच्छे की ज़्यादा कर

वक़्त के साथ चल तू रात दिन एक कर
अपनी पहचान होगी खुद पर भरोसा कर
अनु अग्रवाल











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21 AUG AT 22:00

आंँगन तो भरा-पूरा फिर भी मन अकेले रहने को करता है

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20 AUG AT 21:26

खूबसूरत रिश्तें खूबसूरत ही रहने दिजिए
घुले न अपनों में नफ़रत इसे दूर ही रखिए

दुरियां बांँट़ देती हमें मिलते-जुलते रहिए
प्रेम की मिठास ये रिश्तों में घोलते रहिए

घर में जगह हो न हो मन में जगह रखिए
माला के मोती अपने इतना ध्यान रखिए

रिश्तों की डोर कच्ची ज्यादा ना ख़िचिए
टूटी जो एक बार फिर ना गांँठ ही रखिए

घर में आंगन खुला भले कमरे छोटे रखिए
आपस में मिलते रहे इतनी कोशिश करिए
अनु अग्रवाल

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20 AUG AT 14:42

ख़ामोशियाँ तो सिर्फ एक बहाना बन गई
बस कहने कुछ नहीं था बातें पूरी हो गई

गुँज़ते़ मन में शोर था जो भीतर तोड़ रहा
ज़ख्मी मन में दर्द था बात भीतर रह गई

मुकम्मल थी तस्वीर कोई गहरे रंग वाली
टूट गया भ्रम पल में ही ज़िंदगी बदल गई

दर्द जब हद में ना रहे तो चुप्पी घेर लेती
ख़ामोशी साथ दे फिर वही बदनाम हो गई

रात में उज़ाले नहीं है बताओ कैसे कहेंगे
आदमी चुप है तो क्या दिन को रात कहेंगे
अनु अग्रवाल


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19 AUG AT 13:38

खेलना सीखो बचपन को हर उम्र से जोड़कर रखो
कुदरत जो भी खेल खिलाए हमेशा जितना सीखो

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18 AUG AT 23:09

एक ह़सरत़ नहीं होती पुरी दुसरी गढ़ने लगते
इन्हीं पुरी कुछ अधूरी ख़्वाहिशों में उलझे रहते

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18 AUG AT 22:30

खूबसूरत चेहरा ही नहीं शब्द भी पहचान है
शब्दों में बड़ी ताक़त ये बढ़ाए हमारी शान है
अच्छा बोलो तो ठीक नहीं तो बस चुप रहो
बेकार के घमंड में खराब होता बस नाम है


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18 AUG AT 18:32

नाजु़क सी यादें भी दिल को रूला जाती
छोटी-छोटी बातों से ज़माना याद दिलाती

थोड़ी रूहानी थोड़ी अश्कों की कहानी है
बिन मौसम जो बरसे वो बारिश का पानी है

बैठे-बैठे मुस्कुरा उठूं सोते-सोते जाग उठूं
वो नन्ही सी यादें तस्वीरों में रंग भर जाती

गुजरे लम्हें आंँखों में ख़्वाबों से उतर आते
नये पुराने लम्हों से ये आंँखें नम हो जाती

घुमती दिल के इर्द-गिर्द भूली बिसरी यादें
कहने को शिशा सही पत्थर भी बना जाती
अनु अग्रवाल









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17 AUG AT 22:14

उज़ाले भाए नहीं तो अंँधेरों में रो दिए
हँसा ना हम पर कोई जो कहना था कह दिए

बिखरते रहे अश्कों से पलकें भिगती रही
चोट पर मरहम लगा नहीं पर दर्द छिपा दिए

उज़ड़ा नहीं अंधेरे में मन के तार खुल गए
रोते-रोते भी हम तो दोस्त ऐसे ही मुस्कुरा दिए

अंँधेरे से पूछो वह ऱोज़ कितनी चोटें खाता
रोकर तो कोई हंँसकर‌ सब अपना दर्द कह दिए

आंँचल में हज़ारों दर्द लिए भी मुस्कुराए
कितनों ने राज़ बताए कितनों ने राज़ छिपा दिए
अनु अग्रवाल








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17 AUG AT 20:07

मैं साकी हूँ ज़िंदगी और तू मधुशाला
गिराती उठाती फिर रौब़़ भी दिखाती
तू चलती रहती कहता रहे कहनेवाला


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