घमंडी लोग हम से दूर ही रहे ,
क्योकि मनाना मुझे आता नहीं -
और भाव मै किसी को देती नहीं !!!-
वो अमीरी भी किस काम की जनाब
जो इंसान के दिमाग पे चढ़े तो
गुरूर और घमंड आ जाए
और वो दौलत ही किस काम की ,जिसे पा कर
इंसान अपनो को भूल जाए-
पता नही किस बात का घमंड है उन लोगो को
जिन्होंने आज तक मेरी पोस्ट लाइक नही की😕-
चंद लोगों को गुरुर है उनके हुस्न पर, ये ग़लतफ़हमी निकाल दें
बता दूँ कि उनकी प्रतिभा अच्छी है इसलिए पढ़ा करता हूँ उन्हें....!-
आज कल लोग.....
लिबाज़ से औरों को नापते है
ये जानते हुए की,
ना आया था लिबाज़ में,,
और ना जायेगा लिबाज़ में।
आज कल लोग.....
पैसो से हैसियत को आंकते है
ये जानते हुए की,
ना संग में लाया था पैसा,,
और ना संग लेकर जाएगा।।
भूल गया है प्राणी दुनिया की इस चकाचौंध में
की माटी का पुतला है ये तन,
ओर एक दिन माटी में ही मिल जाएगा।।
फिर किस बात का करता है इतना घण्ड़,
जब ये धरा का सब,,
यही धरा पर ही धरा राह जायेगा।।-
लोगों को घमण्ड तो इतना है ज़नाब, यह स्टेटस दिखाने की होङ न होती
तो यह जालिम दुनिया हर किसी का नम्बर सेव न करती 😡
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👥एक अजनबी को खोने का दर्द 🥀
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तुम जिस कमरे से चले गये..कि
तुम जिस कमरे से चले गये..
👇👇सुना है तुम....👇👇
👇👇L💔I💔N💔E👇
अब भी,वहीं नाम बदलकर रहते हो.!!
💔💔💔💔💔💔
शिकायत "कमरे" से थी 💔या "हमसे"...बता देते...
हम कमरा और खुद को, दोनों को बदल देते 📌
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अपने आपको छुपाते हैं लोग
झूठी तस्वीर दिखाते हैं लोग
घमंड स्वयं करते हैं मगर,,,,,
घमंडी मुझे बताते हैं लोग।
😡😡😡
अरे!देखो खुदको आईने में
कभी अंदर झाँको खुदके
मुझे बुरा कहने वालों,,,,,,
चरित्र को तांको खुदके।
👏👏👏
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घमंडी का सिर नीचा
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एक जंगल में एक खरगोश और कछुआ रहते थे। खरगोश को अपनी तेज़ चाल पर बहुत घमंड था। बह कछुए की धीमी चाल का हमेशा मज़ाक उड़ाता रहता था।एक दिन दोनों ने आपस में दौड़ने की शर्त लगाई। दोनों को एक निशचित स्थान तक पहुँचना था। दोनों एकसाथ दौड़े। खरगोश तेज़ी से दौड़कर आगे निकल गया। उसने मुड़कर देखा तो कछुआ उससे बहुत पीछे था। उसने सोचा क्यों न थोड़ी देर के लिए सो जाऊँ। इस बीच कछुआ लगातार चलते हुए अपने निशचित स्थान पर पहूँच गया। खरगोश की जब नींद खुली तो बह तेज़ी से दौड़ा, पर बहाँ कछुए को पहले से पहुँचा हुआ देखकर बह बहुत लज्जित हुआ।-
घमण्डी
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लबरा दूजे को कहे ,कायरता में सनाय,
असत बोल है मुँह चढ़ा ,झूठ लियो अपनाय।।
झूठ लियो अपनाय लाख अवगुन तुझमे है,
ईर्ष्या, द्वेष मे लिपट रहा तेरा शरीर है।।
तेरा वैभव तेरा है,क्यों अकड़ रहा तू,
रोगी तेरा निज शरीर, क्यो रगड़ रहा तू।।
अन्त समय है भाई अब तो जरा संभल जा,
शिक्षक तेरा बोल रहा,तू जरा संभल जा।।
अपमान किये दूजे का तू क्या पायेगा,
हाथ मले पछतायेगा,औ मर जायेगा।।
धन दौलत अउ कार लाद कर तू ले जाना,
मत कर इतना दर्प,है खाली हाथ ही जाना।।
जीवन भर तू कायरता का पाठ किया है,
अरे समझ तू बन्दे लाँघ अब साठ गया है।।
सठयाई है बुद्धि तेरी क्यों इतना ऐंठे,
तेरा घमण्ड हो चूर ,और तू रोता बैठे।।
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