Gopalchandra Shukla   (©गोपालचंद्र शुक्ल)
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सत्यान्वेषक सत्यमार्ग का सत्य खोजने आया हूँ,
मैं क्या, कोई सत्य नही है,यह बतलाने आया हूँ।।
Joined 22 April 2018


सत्यान्वेषक सत्यमार्ग का सत्य खोजने आया हूँ,
मैं क्या, कोई सत्य नही है,यह बतलाने आया हूँ।।
Joined 22 April 2018
3 AUG 2021 AT 0:26

परवाह
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तेरी परवाह नही मुझको मेरी परवाह नही तुझको यही है प्रेम परिभाषा यदि तो प्रेम कैसा है।

कोई घाटा न तुझको हो कोई घाटा न मुझको हो यही है सोच अपनी तो सोचो प्रेम कैसा है।

मुझे परवाह न अपनों की तुझे परवाह न अपनों की दया दिल में नही रहती कहो फिर प्रेम कैसा है।

मनुज होकर पशु की भाँति हम व्यवहार करते हों, दनुज के आचरण को हम यदि स्वीकार करते हों बिचारो तुम हो लापरवाह तुम्हारा प्रेम कैसा है।।

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25 JUL 2021 AT 21:47

झूठ बोलना पड़ा
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सच्चाई की डगर थी कठिन थी बहुत कठिन।
बड़े तोहमतों का डर था झूठ बोलना पड़ा।।

कुछ शख़्स दोगले थे पाग़ल तो नही थे।
सच बोलने पर डर था झूठ बोलना पड़ा।।

थे अक्लमंद ज़ाहिल वे मेरी बगल में।
दिल में था उनके ख़ंजर अतः सोचना पड़ा।।

आया था कहकशे में चमक देखने को मैं।
तारे कहीं नही थे धूल देखना पड़ा।।

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19 APR 2021 AT 17:17

सुख में कभी न गर्व करो,
दुःख में धीरज सदा धरो

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18 APR 2021 AT 23:48

खुशयों पर न दर्प करें हम,
मुश्किल में भी धैर्य धरें हम

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18 APR 2021 AT 23:42

लिखने से बचते
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( कोरोना महामारी विशेष)

कितनों ने है तज दिया कोरोना से प्राण,
कोई दिखता है नही कौन करेगा त्राण,
कौन करेगा त्राण लोग लिखने से बचते,
लिखने से कोई हुआ न संक्रमित कैसे डरते,
यह विषय नही है लिखने को लेखनी चुप्प है,
चारों तरफ अँधेरा रोशनी धुप्प है,
सिस्टम है बदहाल किसी को कुछ न सूझे,
जनता है बेहाल किसी को कष्ट न बूझे,
चिन्ता करता देख रूप इस महामारी का
मैं तो बस गोपालचन्द्र जनता प्यारी का।।

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16 APR 2021 AT 23:58

विपदा आन पड़ी
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जब विपदा आन पड़ी सिर पै तब ईश्वर एक ही सूझत है,

जीवन खाली सा लागत है अरु एक उपाय न बूझत है,

चहुँ ओर दिखै डरपै जन और जिमि वारि बिना सब तरपत हैं,

अब लागत है संसार खतम इहि कोविद से जग काँपत है।।

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16 APR 2021 AT 20:12

शान्ति नही सुख नही हृदय में,

मानवता बिन दौड़ रहे हैं

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15 APR 2021 AT 14:25

डर और भूत तथा कोरोना
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रात रजाई से मुहँ ढँक कर सोच रहे बच गए भूत से,
रात रात भर यूँ ही डर से काट दिया क्या बचे भूत से,
जब प्रकाश होता है सोचो भूत कहाँ भग जाता है,
अँधेरा छाते ही सोचो डर और भूत चला आता है,
यह अज्ञान नहीं मिट पाया सदियों से यह साथ निभाया,
अतः रहे हम उलझे उलझे डर का भूत भी साथ चलाया,
मैं क्या हूँ बस एक गोपाल और चन्द्र साथ में आता है,
शुक्ल ज्योत्सना फैला कर वह पन्द्रह दिवस बाद आता है,
यह जन जीवन अस्त व्यस्त है "कोरोना" जब से आया है,
कई सीख यह अपने से ढोकर चलकर के लाया है,
डरो नही यह भूत नही रह सावधान समझाया है,
आगे भी उच्छृंखलता न हो कर दनुज नष्ट समझाया है।

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15 APR 2021 AT 13:20

नफ़रत पिघल गया जो यारों,

सोचो यह जग कैसा होगा।

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14 APR 2021 AT 16:04

जनता जब से लगी बोलने,

नेताओं का काम न बनता

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