बचपन के प्यार, लड़ाई का अब चेहरा बदलने सा लगा है,
भाई से लड़ के, छिन कर खाने का अब हक़ ही बदल गया है।
"अपना ही घर अब मुझे पराया सा लगने लगा है"
माँ की रसोई का भी अब नक्सा बदल गया है,
कौन सी चीज कहा रखी है मुझे अब पूछना पड़ रहा है,
माँ कहती है क्या खायेगी मेरी बेटी,
कुछ दिन के बाद तो तू वेसे भी चली
जायेगी,ये सुन कर।
"अपना ही घर अब मुझे पराया सा लगने लगा है"
बेटी पराये घर से आई है यही सोच कर
पापा के डांटने, प्यार करने का तरीका भी अब बदल सा गया है।
"अपना ही घर अब मुझे पराया सा लगने लगा है"
कितने दिन गिनती के लाई हो बेटी ,
कब तक रुकोगी, हर पड़ोसी के मन मे
अब ये सवाल उठने लगा है।
"अपना ही घर अब मुझे पराया सा लगने लगा है"
चिड़िया का बसेरा बस चार दिन का होता है
ये मेरा बैग ही हँस हँस के मुझे कहने चिढ़ाने लगा है।
"अपना ही घर अब मुझे पराया सा लगने लगा है"
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