जीते जी उसकी हत्या तुम कर देते हो मरने के बाद उसे तुम आत्महत्या क्यों कह देते हो उसको इतने दर्द दिए थे तुमने उसको अन्दर ही अन्दर से मारा था तुमने तुम्हारा तो नीजी स्वार्थ था पर उसका तो जीवन निःस्वार्थ था तुम आदमज़ादो का एक टोला था पर वह दर्द सहने वाला अकेला था वह ज़िंदगी से हारा नहीं था साहब वो नीच़ो की नाजायज हरकतों से हारा था मां वही जिसने प्रसव पीड़ा में अपना दर्द झेला था आज वही मां उसका दर्द सह न सकी पिता जिसने अपने कंधों पर बैठा कर बड़ा किया था आज वही तीन साथी कंधों में भी उसका भार झेल न सका बहन जिसने उसकी कलाई पर रक्षा का धागा बांधा था आज वही चुपचाप उसकी कलाई से धागा खोल लायी बेटियां जो लोरिया में, प्रभाती सुन रही थी पिता तुम पर गर्व है, चुपचाप जाकर बोल आयी मंजिलों के सफर में वो रोज दर-बदर भटका था पर ना मिली तो जा आज फंदे से लटका था हां, भरोसा पिता का विश्वास भाई का तोड़ा है पर आज उसने आत्महत्या में दम भी तोड़ा है...!
“चॉंद को इतना तो मालूम है तू प्यासी है तू भी अब उसके निकलने का इंतज़ार न कर भूख गर ज़ब्त से बाहर है तो कैसा रोज़ा इन गवाहों की ज़रूरत पे मुझे प्यार न कर”
लाखों मेले होंगे हजारों महफिलें होंगी तुम्हारा साया होगा तुम्हारे अफसाने होंगे, आज सगाई हुई है किसी गैर के साथ कल जब वो संग होगी, फिर भी हम अकेले होंगे
महंगे तोहफ़ों में आशिकों की अमीरों बहुत देखीं दो दिलों की बढ़ती करीबी बहुत देखीं तेरी इक झलक पाने को तरस जायेंगी निगाहें मेरी ऐसी इश्क़ की फ़कीरी नहीं देखीं