टिकी हैं मोहल्ले की नज़रें वहीं पर
दरीचे पे गेसू सुखाना नहीं तुम।।-
तारीफ करते नही थकते वो हमारे खुले हुए गेसू की,
गर कोई और करे तारीफ ये बात उन्हे मंजूर नही ।
Priti Mehra-
जब बैठें हो तुम मेरे रूबरू ,
फिर देखूँ तुम्हे मैं हरसू क्यूँ ,
दिल तो करता है मेरा ,
कि मै तुम्हें अपनी जुल्फ़ो की छाँव दूँ ,
साँसो में साँस उलझे जब ,
तब मेरे उलझे हुये गेसू को सवारे तू ,
मेरे चेहरे की फिर अपनी नज़रों से ,
नज़र उतारे तू ।
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आरिज़ चूमे थे पहले
या पहले चूमे थे लब तुम्हारे
सुराही सी गर्दन चूमी थी पहले
या पहले खुले गेसू तुम्हारे
झुकी पलकें चूमी थी पहले
या पहले गोरे-गोरे हाथ तुम्हारे
चमकता माथा चूमा था पहले
या ख़ुशी में छलकते आँसू तुम्हारे
होश कहाँ था जब मिले थे तुमसे
हम तो कुछ ऐसे दीवाने रहे हैं तुम्हारे
सिरहन-सिरहन सी रहती है जिस्म में
चूमने से पहले शायद गले लगे थे हम तुम्हारे
- साकेत गर्ग 'सागा'-
गेसू =बालों की लट , जुल्फ
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न बिखराओ अपने गेसुओं को इस तरह
कि दुनिया इसमें उलझ कर मर जाये ।
न जाने कितने दिल
पहले से ही तेरे इन गेसुओं में उलझे हैं ।।-
// गेसू=बालों की लट //
संवार लूं गेसू तेरे,जो मुख पर हैं बिखरे
इसी बहाने से, तुझे छूने की आरजू है-
सुनो ,
आज़ाद कर दो न अपने इन गेसुओं को
यादें बहुत कसमसाती हैं इस रातरानी में उलझकर-
गेसू -बालो की लटें
हवा में लहराती तुम्हारी काली गेसू कर गयी बड़ा धमाल,
चुरा के नजर मेरी, कर गई मुझे तुझ में मदहोश।-
तेरी गेसू की छाँव में एक चाँद छुपता था
जब तू चोटी गुन लेती तेरा श्रृंगार हो जाता-