गाहे बगाहे वाली गाथा
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कितनी कोशिश करी है जख्मों को सीने की
पर कमबख़्त गाहे बगाहे रिस ही जाते हैं।-
और सोचते भी हैं
पर सिर्फ़ चाहने से कब कुछ पाया है
गाहे-बगाहे उम्मीदें पूरी होंगी ज़रूर
जब किस्मत का साथ सरमाया हो ,
हाथों व माथे की लकीरों में लिखा है
कि जब भी शिद्दत से चाहोगे तभी तो
सोचा हुआ हर ख्वाब सच बन पाया है।
जया सिंह 🌺
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गाहे-बगाहे ही सही
ऐ दिल कोई अहद तो बोल
माना के नहीं वो राब्ता
गैर मुम्किन ही सही इंतज़ार
अपनी,कोई हद तो बोल-
इश्क़ का ज़ियाँ पूरा होते-होते जीवन मेरा ख़त्म हो गया
तेरी बेवफ़ाई से उबर ना पाए गहरा इतना जख़्म हो गया
गाहे-बगाहे टपकता है लहू इमरोज़ भी, मेरी आँखों से
जाने क्या ख़ता हुई जो ज़ालिम आलम में जन्म हो गया-
वाजिब है हुनरमंदों को गुरूर अपने हुनर का होना
गाहे-बगाहे खुद ही बन मियां मिट्ठू कसीदे पढ़ना,
'बादल'दे ना सके जो सम्मां किसी गैर के हुनर को
तब उसे मैं बंदा बेअदब नहीं तो और क्या कहूंगा।-
जरूरी नहीं फ़रिश्तों के पंख हो,
साधारण दिखने वाले भी
असाधारण हो सकते है!!!!!
पास होने पर भी व्यथा अपनी
किसी से व्यक्त नहीं कर पाते..
कोई मीलों दूरी तय करके
आपका साथ देने आ जाता है!!!!!-
इक तो अब
कोई गाहे-बगाहे ही,
अपना समझकर किसी से
किसीके घर जा कर मिलता हैं,
उस पर भी खैर खबर इक-दूसरे की लेना-देना तो दूर,
'और कैसे आना हुआ',मिलने वाले से पहली बात यही पुछता है..✍️आनन्द"
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गाहे गाहे चढ़ती है,, किश्तों में उतरती है,,
मेंहन्दी तू किसी मोहोब्बत से कम तो नही,,-