Rajesh Gupta   (राजेश गुप्ता'बादल'मुरैना मध्यप्रदेश)
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Joined 15 February 2019


Joined 15 February 2019
24 JUL 2021 AT 18:02

श्री गुरु चरण नमन करूं,स्वीकारूं उपकार।
धीरे-धीरे गढ़ दिया , बर्तन मैं बेकार।।

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24 JUL 2021 AT 11:06

जब-जब बहता जज़्बातों का दरिया गवाह बना वही आंखों का पानी है,
हो धूप तपाती या मन सहलाती हवाएं हर इक पल की वो निसानी है।
समझो भी नम आंखों में क्यों उठती रहती जलनिधि से भी ऊंची लहरें हैं,
शायद जब तक जिंदा आंखों का पानी तब तक ही जीवित हर इक कहानी है।

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23 JUL 2021 AT 19:09


लगने को लगता है डर यकीनन
कहीं टूट कर बिखर ना जाऊं मैं,


मगर यकीं परवरिशों पर मुझको
मेरे वालदेन की रहता बहुत है।

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23 JUL 2021 AT 19:00

ना जाने क्यूं हम बात बात पर पल दर पल सोचते बहुत हैं।
बिलबज़ह ही खुद ब खुद बाल सरों के नोचते बहुत हैं।
होने को तो कम नहीं है फ़िक्र रोटी कपड़ा और मकान की,
लेकिन साथी राजनीति के वक्त बेवक्त भोंकते बहुत हैं।

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23 JUL 2021 AT 16:03

सुनो इस दरकते रिश्ते का अहसास जरा सा भी गर रहा था तुझको,
मुझको भी तो इत्तिला करती कमी क्या थी रिश्ता सीने और पिरोने में।

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23 JUL 2021 AT 15:44

आखिर बिकूं भी तो कैसे कीमत मेरी यूं ही आसां थोड़ी है,
बिक भी रहा हूं तो वहां जहां नेह भरी दो नयनों की जोड़ी है।

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23 JUL 2021 AT 13:00

हालात चाहे जो हों लेकिन सुन
बज़ूद अपना कुछ तो बचाए रखना है,
उतर जाते हैं इक दिन नक़ाब सारे
विश्वास मन में जगाए रखना है।
सोचो जरूर कौन पनपा आसानी से
आज तलक बरगद छांव तले,
रिश्ता तपती धूप बहती हवाओं से
ताउम्र ही बनाए रखना है।

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23 JUL 2021 AT 11:03

जाने कब से चल रहा वक्त अनवरत चलता ही जा रहा है,
अलमस्त जो फकीरा अपनी ही धुन में गाए जा रहा है।
बदलने को बदल जाते हैं लोग इस वक्त के साथ-साथ,
लेकिन उन अहसासों का वो समन्दर अब भी बुला रहा है।

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22 JUL 2021 AT 19:05

खून-खराबा छीना- झपटी
आखिर रोज रोज यही सब क्यूं होता है,
रंगारंगाया अखबार सारा का सारा
इस कदर क्यूं लगता है।
गौने हो चुके मुद्दे सारे
आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति में,
धकते नहीं क्या सुन सुन कर
शोर सारा बनावटी सा क्यूं लगता है।

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22 JUL 2021 AT 9:20

गर जरूरत किसी को मंजिलों की हों तो
ज़िद्दीपन कोशिशों का भी जरूरी है,
सब कुछ नहीं सिर्फ़ मेहनत यहां
होना दुआओं की बारिशों का भी ज़रूरी है।
जिंदगी और मौत में आखिर फ़र्क कैसा
सामना गर जद्दोजहदों से ना हो,
महसूस करने को स्वांसें अपनी
होना थोड़ी सी ख्वाहिशों का भी जरूरी है।

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