AK Kaushik   (अल्फ़ाज़जोलिखेतेरीयादमें)
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Joined 11 February 2020


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3 HOURS AGO

मेरे ज़िंदा रहते तुम्हें पशेमान होने की जरूरत नहीं
तेरा जो भी फ़ैसला होगा मुझे हर हाल मंज़ूर होगा

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9 HOURS AGO

वक़्त के होगे सिकंदर तुम मरते ही दुनिया भूल जाती है
तुम समाहित मेरे अंश-अंश में ये बात कैसे भूल जाती है

दुनिया ज़ालिम है सारे करे कराये पर पानी फेर जाती है
एक पलक झपके ताबनाक़ किरदार दुनिया भूल जाती है

याद है सबको शोहरत मेरी,ये पाने को क्या-क्या खोया है
मेरी मेहनत, जिजीविषा, संघर्ष सब दुनिया भूल जाती है

अंधेरे में प्रकाश दिखा सहारा देने वाले किसे याद रहते हैं
जाने के बाद ही तारीफ़ करे जीते जी दुनिया भूल जाती है

हर कोई अपने कर्म भोगने आया है, किसी से नाता क्या है
जहाँ न कुछ आना, हो जाना ही जाना दुनिया भूल जाती है

जोड़कर रिश्ता लाद जाते हैं सिर पर ज़ुल्म की कई गठरी
वक़्त बदलते ही हर अहसान निष्ठुर दुनिया भूल जाती है

वो आए हैं मेरी मज़ार पर, कुछ नेह से रिदा को उतार कर
'शौक़' से दीप जला, फ़ातिहा पढ़कर दुनिया भूल जाती है

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14 HOURS AGO

वक़्त वहीं ठहरा है तेरे-मेरे दीदार-ए-वस्ल के लिए
हरज़ाई तुमने एकबार भी नेह से पलट कर न देखा

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14 HOURS AGO

आरिज़-ए-गुलफ़ाम आशिकी में सुर्ख हुए हैं मेरे
मगर मेरे नेह की सजा बेरुख़ी से मिली क्यों है
चंद शब्द कह दो अब मेरी लाज़ की तारीफ में
तुझे प्यार है तो लौट आओ अकेली खड़ी क्यों है

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YESTERDAY AT 21:18

वो कब्र में उतर गहरी नींद में सोए हैं उठाएगा कौन
इधर तू मुँह फुलाए है इधर मैं नाराज़ मनाएगा कौन

प्यार तुझसे किया है तो गुस्सा अब जताएगा कौन
बोलने देते न अनबोल रहने देते तुझे सताएगा कौन

तितली सी फुदकती है तुझे देख मांसल पटों बीच
अगर सूख गई पौध प्यार की दुबारा लगाएगा कौन

तुमने मनाही की है तुमसे ही हटाने की दरकार है
खोल दो बंधन जो लगाए तूने वरना हंसाएगा कौन

मोर पंख से हर लेते हैं हरारत तेरी अँगुली के पोर
'शौक़' इल्तिज़ा अनछुई छोड़ गया जगाएगा कौन

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YESTERDAY AT 19:16

पल-पल बदलता मौसम फ़िजा-ए-दिल का बक़ा के लिए
खोल दो ये पैरहन जिसमें मुझे क़ैद किया ख़ुदा के लिए

इस ऋतु-ए-हिज़्र में तुम बहार सी बन बरस गई थी मुझपर
मगर ठोकरें खाने को मज़बूर हूँ तेरी मगरूर अना के लिए

जो अपनी मोहब्बत को बद्दुआ दे वो दिलदार तो नहीं है
कोई पेशबंदी और अग्रिम शर्त नहीं है मेरी दुआ के लिए

जो चेरापूंजी की बारिश से बरसते रहे फ़ासलों के ग़म
'शौक़' की नेह पुकार मर कर जुदा हो जाएँगे सदा के लिए

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YESTERDAY AT 14:06

लब पर तेरा नाम मेरे इश्क़ की गमक से महकने लगा
इत्र-ए-मुलाक़ात की पहली बारिश में मैं बहकने लगा

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YESTERDAY AT 13:43

वफ़ा के बदले तेरी बेवफ़ाई बेहिसाब मिली है
जख़्म-ए-विरह में खिली गुलाब की कली है
गुलशन-ए-क़ल्ब में बेतरह तेरा आशियाना है
तेरी साँस की गमक से ख़ुशहाल मेरी गली है

आ देख ले बेवफ़ाई तेरी कितनी मुझे फली है
बेवफ़ा सीरत वाली तेरी ये सूरत लगी भली है
चमन में फूल खिलने बंद न होंगे, हम न होंगे
'शौक़' स्नेह की तपिश में दुनिया पूरी जली है

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YESTERDAY AT 12:46

आतिश से भी ज्यादा ख़तरनाक तो बेवफ़ाई होती है
बिना गिरे दूर से ही देह क्या रूह भी झुलसाई होती है

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YESTERDAY AT 12:30

वर्जित किया ये सिसकता साज़ क्या तुझे सुनाई नहीं देगा
हर चेहरे पर चढ़ा मेरा ही अक़्स तुझे ही दिखाई नहीं देगा

जितना मुझे तड़पाओगे उतना ही ये तुझे रिहाई नहीं देगा
इश्क़ खेल नहीं जाँ-धड़ की बाजी, दूजा शैदाई नहीं देगा

ये दर्द पाला है मैंने पल-ब-पल तुझसे वफ़ाई करते हुए
तुझे बेयकीनी की बीमारी है, दिल और सफ़ाई नहीं देगा

मौन होकर झेला है तेरा हर सितम, मुँह अब न खोलेंगे
तेरी तस्वीर रूबरू है मेरे, तेरा अहसास तन्हाई नहीं देगा

शब रोती रही है साथ मेरे, दिन भर जलाता है आफ़ताब
ढ़ाओगी जितने ज़ुल्म, दर्द-ए-दिल तुझे ढ़िलाई नहीं देगा

मैं सरेआम ये ऐलान करता हूँ तेरे सिवा कोई मेरा नहीं
मुझे पता तेरा गुस्सा ज़ालिम तू नेह की मिठाई नहीं देगा

बीते दिन न बीते दर्द, राह-ए-वस्ल सुझाई नहीं दे रही
जा दुआ दी, उरूज की गली रब तुझे कठिनाई नहीं देगा

ऐ अहद-ए-वफ़ा का ऐलान करने वाले तू हार गया उन्स
'शौक़' कहे स्नेह से वफ़ाई के बदले तू शनासाई नहीं देगा

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