AK Kaushik   (अल्फ़ाज़जोलिखेतेरीयादमें)
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Joined 11 February 2020


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Joined 11 February 2020
47 MINUTES AGO

मेरी हरक़त ख़ारिज करने का शिल्प बेनज़ीर है तेरा
तुम्हारे लब की छुअन से भट्ठी हो जाता है बदन मेरा

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AN HOUR AGO

तेरी ही ख़ूबसूरती के क़सीदे में,क़ातिब रचते जमाल तेरा,
ज्यूँ चाँदनी का पहरा,बदन इकहरा ये बेमिसाल हुस्न तेरा।

ख़ूबसूरती तो नज़ारे देखने वाली, तेरी निगाहों में बसी है,
साधारण सी लौंडिया आके मेरे दिलो-दिमाग में छपी है।
हर बशर ने चारूता,सिर्फ़ अपनी पसंदानुसार से कसी है,
दिव्यता क्या, शिल्पकार की पसंद बन, छवि में छपी है।
वो पैमाइश करते रह गए, मुमताज का हुस्न-ओ-जमाल,
मुमताज ताजमहल में नहीं, शाहजहाँ के दिल में ढ़ली है।
गुल की लावण्यता इंसां से नहीं,अलि या तितली से पूछ,
किसतरह कली के खिलने की ललक,पलक तले पली है।

चाँद दागदार होकर भी, मंजुलता का अनूठा पर्याय हो गया,
आफ़ताब सी सुरम्य माशूका देखते, मैं तेरे आगोश सो गया।
तेरी बोली की मधुरता,हर लेती है मेरी रूह की सोज़े-उल्फ़त,
रुख़सार की दैवीय सादगी से, रमणीय किरदार तेरा हो गया।
शक्ल-ओ-सूरत में क्या रखा है,ज़ीनत तेरी सीरत सा हो गया,
लबालब के शिल्प से, क़सम से मोहक सारा ज़माना हो गया।
तेरी मोहक भाव-भंगिमा कौन बखाने, क़ासिद तेरा हो गया,
किस रम्यता से देखा तूने, 'शौक़' मंत्रमुग्ध होकर तेरा हो गया।

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18 HOURS AGO

शमा जला दी है, तुझे परवाना बन आना होगा
मिलन होगा जो तेरा-मेरा, तुझे जल जाना होगा

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18 HOURS AGO

मेरी सादगी की कीमत ना आँकना कभी,
सारी अमीरी सौंदर्य की फ़ना हो जाएगी।

मोहब्बत रेजा-रेजा में नशे सी छाती है,
कबूल ना करना भी अना हो जाएगी।

अभी ढ़लती साँझ की धूप सेक लो तुम,
रात से मिलकर रंगीन बेवफ़ा हो जाएगी।

इन नीली आँखों के दीवाने हज़ारों होंगे,
अपने दिल में छुपाना तेरी सज़ा हो जाएगी।

मेरी चाहत को छोड़, अपने मन की करो,
मुझे अपनी रज़ा बना, तू ख़ुदा हो जाएगी।

एक बार आसमान समझ ओढ़ लो मुझे,
मेरी अज़ा समझ लोगी जो धरा हो जाएगी।

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19 HOURS AGO

असलियत दिखाकर जीस्त मेरी संवार दो,
मुखौटे जितने भी लगाए हैं सब उतार दो।

नकाब के पीछे रह ग़म ना उभार दो,
ऋण मेरे प्यार का सच से जो उतार दो।

हर कामना धूल-धूसरित है तुझबिन,
तेरे शहर में आए हैं, दिल से उतार दो।

ज़ाहिर कर दो सूरत,कब तक छुपोगे,
जज़्बात की एक गोली मुझमें उतार दो।

गुल की पहरेदारी से,शूल निभाए यारी
महक का जहर सब मुझमें उतार दो।

उभरने दो अक़्स मेरी नज़र के मुकुर में
मेरे बदन में रूह अपनी अभी उतार दो।

निख़ालिस मोहब्बत मुकम्मल न होती,
रानी को पाने का भूत सिर से उतार दो।

मंज़िल ही नहीं,रास्तों के मंज़र बदलते,
सब सवालों के जवाब मौत से उतार दो।

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20 HOURS AGO

सच कहूँ तो जब तुम मेरे साथ होते हो
मेरी मन में एक अनबोल संवाद होते हो

हो जाती तब मुलाक़ात ख़ुद की ख़ुद से
तुम जो भीगते मेरे हर जज़्बात होते हो

जीने की लालसा की उम्र बढ़ जाती
तुम ही मेरा दिन, मेरी हर रात होते हो

लगान चुकाता हूँ मैं तेरी मोहब्बत का
जो तुम मेरी पहुँच से आज़ाद होते हो

जब गुंजन करती मेरा नाम तुम लब से
मन की मुराद में संलिप्त आह्लाद होते हो

साथ होकर भी अंजान रहे इश्क़ से तुम
शाद का निनाद,साँस की मियाद होते हो

मेरे आसुओं की बरसात में भीगकर तुम
संस्कार की मर्याद,मुझमें आबाद होते हो

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22 HOURS AGO

नफ़रत जितनी भी करनी है कर लो,
मेरे प्रेम की निशानी बरहम ना करना।

मेरे हिंद से गद्दारी करने वालों पर तुम
सज़ा देते वक़्त कोई रहम ना करना

रानी कहती है मैं अकेली नहीं बेवफ़ा
हालात से मज़बूर मैं, वहम ना करना

बरहम हो गया जो लिखा था तेरे लिए
प्रीत को हवाले अपने ज़ेहन ना करना

प्यार बिक नहीं सकता, अनमोल है ये
मेरे लम्स के लिए दिल रहन ना करना

माना कि वफ़ा कर ना पाई तेरी रानी
पर मेरे सामने ख़ुदी दहन ना करना

तेरा दिमाग फिर गया बरहम सोच से
नज़रिया बदल, ज़ुल्म सहन ना करना

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YESTERDAY AT 16:24

जुबान की तल्ख़ी मुखर हो उठती है, कैसे मिठाई दें तुझे,
जो मेरी महबूबा बेवफ़ाई का तोहफ़ा मुझे नज़र करती है।

वो मुझमें ही शामिल हो मेरे लिए हजारों रक़ीब देखती है,
आइने के जानिब अपना तलवार सा किरदार बसर करती है
मेरी जाँनिसार को हर शब्द में, तल्ख़ी तड़पती दिखती है,
मेरे मन की व्यथा से वो ख़ुद को जाने कैसे बेअसर रखती है।

जुबान की जो मुखर करती कटार,अनुरक्ति भी जाती हार
सीने में शूल सी दे चुभन,जीवित जलन अक़्सर रखती है।
आँखों में तीखे ख़ंजर, वाणी में मेरे लिए ज़हर रखती है,
फ़ासलों में ठहर, मेरे दिल की हर खबर मगर रखती है।

ग़म के अंधेरों में ज़िंदगी, मगर करते रहेंगे यार तेरी बंदगी
तेरी ख़ुशबू ज़िंदा रहने का हौसला, मौत के शहर रखती है
ज्यों-ज्यों तुम निगाह की ज़द से, बेनज़र मुझे होने लगी है,
गुल से टूट कर भी, गुलबर्ग खुद में बसाकर महक रखती हैं।

कल मौत भी बेवफ़ाई कर गई, तेरे साथ का जो असर है,
आज मालूम हुआ मौत भी, जीस्त देने का हुनर रखती है।
उजड़ जाती है फ़सल प्यार की अधपके, मीठे ऐय्यार के संग,
तभी मेरी रानी जुबान की तल्ख़ी में छुपाकर ख़ंजर रखती है।

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15 MAY AT 18:35

तसलसुल जवान रहेंगे तेरे दिए जख़्म मौत आने तक
मोहब्बत का ये सफ़र मुसलसल तेरे लौट आने तक

तुम यार तब्दील करती रही क्रमवार, एक के बाद एक
तुझे भूलेंगे ना भूलने देंगे, साँसों में अवरोध आने तक

कली खिलकर गुल क्या बनी, बीच चौराहे अस्मत लुटी
इश्क़ में बेहोश रहने दो,शायद जी पाएँ होश आने तक

तुम कहती हो,ऋतु अंकुरण किया,जिस शिल्पकारी से
किसी से दिल लगा लेना, बेवफ़ाई का दोष आने तक

तेरे पैरों के निशान, मिटाने का ख़्वाब ग़ैर रोज़ देखते हैं
सोज़े-ग़म-हा-ए-निहानी तसलसुल,फिर ओज आने तक

गुज़र जाते हैं तन्हा, तेरी यादों के कूचे से जो तसलसुल
अश्क़ रुख़सत होता रहेगा,जुल्मी का सहयोग आने तक

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14 MAY AT 19:42

पहले से ही अनगिनत जख़्म हैं इस दिले-रुस्वाई में,
फिर से दाग लग न जाए तेरे किरदार पर रोशनाई में।

ना आया करो ख़्याल और ख़्वाब ले मेरे संगदिल में,
अब और ना कर मेरी रुसवाई गुलज़ार महफ़िल में।

अज़ल से सफ़र करके आया था नंगे पैर तेरे लिए,
जिसे तुमने मुड़कर देखा ही नहीं, कुछ ग़ैर के लिए।

ख़्वाब के लिए नींद की ऊसर जमीन जरूरी, यारा
तेरी दी बेहोशी से उबरना जरूरी है,ख़्याल के लिए।

बेमकसद तुम, किसी दिल पर गुज़र करती नहीं हो,
आज फिर क्यों मेरे ख़्याल में आई, तड़पाने के लिए।

अब ना कोई बात होती है,ना मुलाक़ात होती है घर में,
मेरे लिए तेरे पास वक़्त नहीं, सब है ज़माने के लिए।

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