AK Kaushik   (अल्फ़ाज़जोलिखेतेरीयादमें)
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Joined 11 February 2020


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2 MAY AT 21:04

जिनपे मुँह धोया था मुसीबत में वही अलविदा कर गए
वफ़ा करते रहे तेरे हुजूर में और तुम ही शर्मिंदा कर गए

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2 MAY AT 9:57

2122-2122-2122-212
दूरियाँ पटती नहीं कुछ घाव भर पाते नहीं
कौन सा मरहम मिरे तर ज़ख्म को भर पाएगा

ज़िंदगी बारात लगती मौत तन्हा राह है
लक्ष्य मिलना है उसी को जो सफ़र कर पाएगा

आज ऐसा एक सबक तुझको नया मिल जाएगा
ना कभी जिसको स्वपन में भी स्मरण रख पाएगा

हाथ से जिस चीज़ को छूआ कनक बन जाएगी
सिर्फ़ लहज़े को बदल तू पार पथ कर पाएगा

ये नहीं पहली नज़र का प्यार युग से थी गुज़र
भूलना मुश्किल मगर क्या फ़ासला भर पाएगा

नज़रिया बदलाव है अनिवार्य, जितना हो सके
'शौक़' से तुझको अलग कोई नहीं कर पाएगा

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1 MAY AT 22:18

मेरी रगों में बहता लहू नहीं सिर्फ़ इश्क़ है
नदिया सी बहती आँख देख तुझे ख़ुश्क है

रक़ीब के हो गए तपाक से किस तरह से
मुज़्तर दिल में ज़ज़्ब मोहब्बत में रश्क़ है

जिसने की है एकरुख़ी उल्फ़त आलम में
पाया जिगर में ग़म, भरा नैनन में अश्क़ है

गुनाह-ए-लज़्ज़त सात पर्दों में छुप न सके
और छुपाए छुपती नहीं महक़ार-ए-मुश्क़ है

शफ़क़ चक्षु में जो उतरी, घटा लहराई 'शौक़'
नशीली अंबक में किस तरह छुपाई मश्क है

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1 MAY AT 21:41

तुझे रास जो न आएगा मेरा नाम होना
बस यही सोचकर गुमनामी में जीते हैं

मशहूर हो ना जाए इश्क़ ज़मानों में
एहसास-ए-गुमनामी का ज़हर पीते हैं

ख़्वाब जन्म लेने से पहले मर जाते हैं
गुमनामी में ख़्वाब देखते दिन बीते हैं

गरीब पैदा होना गुनाह नहीं, मरना है
स्वप्न ये अमीरी के लगते बहुत मीठे हैं

मानसून बरसे है आँखों से रोज 'शौक़'
इत्तेफ़ाकन नैन अश्क़ से आज रीते है

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1 MAY AT 21:06

यादों की वो खिड़की जो बंद थी खोल दी है
तहखाने-क़ल्ब दफ़न थी जो बात बोल दी है

ग़म के बदले में कई गुणा शाद तोल दी है
किस्मत ने जीतते-जीतते गहरी चोट दी है

मुझे यकीन न था तुम दे जाओगी जफ़ा
बेवफ़ाई ने तेरी आत्मा मेरी मसोस दी है

आने दो पुरानी यादों को, जी लें फिर से
वो पल जिन्होंने संग मरने की कोल दी है

पुराने दिलदार के आने की ख़बर पाकर
पलकों ने वर्षों बाद झपक किलोल दी है

ख़ुदा को सिपास जो तुझसी निगार बना
जानलेवा तिलों से भर सुर्ख कपोल दी है

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1 MAY AT 18:50

जान देने की कसम खाई थी बचाने वाले का सिपास क्यों करूँ
मेरी हर शाद छिनने वाले बता तो तुझपर फिर विश्वास क्यों करूँ

नकार मेरी मोहब्बत को इमरोज़ मन में सिपास की आरजू क्यों है
जरूरत के वक़्त में तुम कोसों दूर रहे अब आसपास क्यों करूँ

तेरे मगरूर रूप की सिपास करूँ इतनी कुव्वत नहीं है क़लम की
तेरी अँगुलियों लेती अंगड़ाई जब, तुझे स्वप्न में तलाश क्यों करू

ये सिपास कुबूल कर लेना महफ़िल में अनदेखा करने के लिए
'शौक़' कभी फुरसत मिले तो बताना मैं तुझमें निवास क्यों करूँ

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1 MAY AT 16:23

चाँद ने चाँदनी से कहा जब कोई भी साथ न दे तेरा
ख़ुद को ख़ुद का हमसफ़र बना लेना मशविरा है मेरा

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1 MAY AT 12:57

मेहनत और मज़दूरी ग़रीब के लिए मज़बूरी है
मिलता जो धन भूख मिटती नहीं रहती अधूरी है

सबने गरीब से खजूर की ऊँचाई सी बनाई दूरी है
भेदभाव की ऊँची दीवार बाहरी नहीं अंदरूनी है

मेरा जो छूटा था तुझमें वापस लेना भी जरूरी है
उल्फ़त की मज़दूरी न देना घृणा नहीं मगरूरी है

मिल जाए मज़दूर को पसीना सूखने से पूर्व दाम
व्यवस्था बनाए जो सरकार इसे सबकी मंज़ूरी है

मुफ़्त की रोटी की जो पड़ जाए आदत किसी को
श्रम छोड़ निट्ठल्ला बना बशर बोता बेशर्मी पूरी है

महज़ सपनों की छाया से मयस्सर न होती मंज़िल
'शौक़' ने धूपे-मेहनत में तप ख़ुद को दी मजबूती है

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30 APR AT 21:35

हुए तुम ग़ैर अब याद करना तुझे बेकार है
बहार ने जिसे जीभर लूटा हो वही बेदार है

दुश्मन ने भी ना किया ऐसा फ़रेब दिया तूने
यकीन का फलूदा बनाया तूने यही बेगार है

बेजुबान थे बेवफ़ाई के बाद बदजुबान हुए
ज़हर देने वाले के लिए मेरा दिल बेज़ार है

छोड़ा परायों से वास्ता रखना सदा के लिए
ये ज़िंदगी हुई तुझबिन पूरी तरह से बेसार है

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30 APR AT 21:20

बेकसूर का लहू बहाना ज़ुल्म है इबादत तो नहीं
काफ़िर कह सर जुदा करना क़ायर की हरक़त है

तस्बीह का फ़ायदा क्या सुरत का ही ज्ञान नहीं
नमाज़ हो या योगासन ये तो काया की कसरत है

मन को तो बाँध सकता है कोई अतीन्द्रिय शूरमा
निरत हो तू तो प्रेम में,आतंकी में भरी नफ़रत है

बेमकसद मुफ़लिस को न तड़पा ऐ दहशतगर्द
दिले-मज़लूम का जान मज़मून सही मक़सद है

पूजा, आराधना, तपस्या, ध्यान करते कल्याण
मन के विकार मिटाते मोक्ष पाने की मशक्कत है

मन-ओ-प्राण पर नियंत्रण को अग्रसर तू 'शौक़'
विकार, व्यसन तज उपासना-ए-रब ही स्वगत है

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