इसी वहम में आज़माई नहीं दुनिया
के कोई नहीं अपना कोई नहीं आशनां-
कोई खलवतों से कह दे ज़रा
मेरी आरज़ू है खुला आसमां
ये तंगना-ए-दहर अब मुझे नागवार है
कि तअस्सुर-ए-क़ैद से, रूह मेरी बेताब है-
एक ख्याल के मानिंद हो तुम
कांटों से निष्ठुर
फूल से कोमल
कभी ख़ाली सी ख़ामोशी
कभी शब्दों का शोर
-
तसव्वुर ओढ़ लेते हैं तब
कोई ख्वाहिश नहीं के वो ख़्वाब आए
उसकी आहट हो आती है जब तब
वो जो पुरानी बातों सा फरामोश, अधूरा
आज भी दिल के कोने कुरेदता रहता है मुझमें
मुझको भूलने की ख़स्लत है जिसे
वो जिसे मैने कब का भुला डाला वही
कभी कभी झांकने वाला ख्याल रोज आने को होता है
मैं कोई और जज्ब बांध लेती हूं तब
एक टोटके सा ,
कोई भागने का बहाना नहीं मिलता जब
तो सोच लेती हूं बेख्याल होकर
क्या करूं दिल की हालत से मजबूर हूं
कभी कभी नींद जो नहीं आती
उसकी गिरफ्त सी हो गई है
-
तेरे ख़्वाब किसी हक़ीक़त से कमतर नहीं
आज भी जीते हैं लोग यूँ ही ला-हासिल सी ज़िंदगी
कोई पशेमानी, कोई बख़्तर तेरे सर पर नहीं
क्यूँ कर बुझाए फिरते हो उम्मीद के चिराग़ यूँ ही
आरज़ू से पा-माइल कोई सिकंदर नहीं
जी भर के जी ही लेना चाहिए, ख़ुशफ़हमी में भी कभी कभी
क्या हुआ जो कहने को हम उनके मुक़ाबिल नहीं
हर कोई तो यहाँ बा-कमाल सुखनवर नहीं-
वक्त काट कर थक चुके परिंदे
ढूंढते शाख़-ए-बे-बर्ग पर, घरौंदे के निशाँ
कहाँ गईं वो पहले सी चहचहाहटें
ख़ामोशियाँ हैं आज, कल ज़िंदगी थी जहाँ
अपने ही परवाज़ से आज़ुर्दा जिस्म-ओ-जाँ
तलाश-ए-सुकून में भटकते हैं शाख़-शाख़, जहाँ-जहाँ-
हर ख्याल मेरा तुझसे शुरू है
इतना सोचते हैं जिसे हम
वही हम से फरामोश क्यूं है-
बस इस्तेमाल कर रहे हैं हम हर किसी को
रोने के लिए किसी को, हंसने के लिए किसी को
किसी का साथ अच्छा लगता है
किसी की बात अच्छी लगती है
दिल हिसाब मांगे तो बात तक़दीर पे छोड़ दो
हर सवाल टाल दो कल परसों से जोड़ दो
खुद का सामना करने की हिम्मत नहीं खुदमें
जाने किस किस का भरम तोड़ रहे हैं
-
फिर वही पन्नों पे ख़्याल तेरा
लिखने वाले ही थे हम
फिर ये सोचा के तुझसे मिलना यूं
रवायत तो नहीं
तुझे सोचना हो सकता है
के जरूरी हो
तुझे कहना भी होगा
ऐसी हिदायत तो नहीं
फिर गुमनाम कर दूं तुझे भूल कर
तू ऐसी पुरानी
शिकायत तो नहीं-
पास होकर भी नहीं सुनता
वो मेरे इतने करीब है
उसका हर लम्हा मेरा
मगर वो ग़ैर का हबीब है
... ये दिल कोई रकीब है-