ज़रा सी चौंट क्या लगीं हमें..लोग जख्मी समझ बैठे...!!
उन्हें क्या पता की.....' हम वो हैं '
जो बड़े से बड़े 'जख्म' को भी नजरंदाज किया करते हैं...!!-
वक्त तो बहुत दिया पर .....
घाव इतने गहरे थे कि.....
भर तो गए पर....
निशान छोड़ गए !-
सवाल किए तूने ऐसे जवाब हम दे न पाए,
गम तो तेरे ले लिए पर, खुद के तुझे दे ना पाए।
सोचो कितने मजबूर होंगे हम,
ज़ख्म गहरे और हम रो न पाए।
अब भी कलेजे से लगा रखा है मैंने,
चाह कर भी हम तेरी मैली शर्ट को हम धो न पाए।
तू मेरा नहीं है जानती हूं मैं,
पर तुझे अपनी यादों से हम खो न पाए।
माना कि हर रोज मिला मखमली बिस्तर,
पर इक ख़लिश अब भी मन में है मेरे
अपनी महबूब की बाहों में हम कभी सो न पाए।-
1. दुशासन की दुस्साहस, कैसा मूर्ख अज्ञानी ।
चीर हरण को ले आया, साक्षात द्रोपदी भवानी ।।
2. दुर्योधन निर्लज्ज अति क्रूर, अत्यंत अभिमानी।
पर रोक न पाए राज सभा में, बैठे सभी ज्ञानी ।।
3. रजस्वला स्त्री खींच लाया, मर्यादा लाँघ खुली केश ।
भाई-भाई की शत्रुता ने, बदला कैसा दानव जैसा वेश।।
4.समझ से परे द्रौपदी मन, भय से भरे अधीर व्याकुल ।
तनिक न रखा स्त्री का मान, किया कलंकित कौरव कुल ।।
5.क्रीडा कक्ष में पुरुष सभा, पांडव हार बैठे द्रोपदी ।
निषेध जहाँ स्त्री का होना, खड़ी वहाँ एक अकेली द्रौपदी ।।
6.कौन सही-कौन गलत, निर्णय करे अब कौन ?
बीच में पीस रहीं थी स्त्री , न्याय दिलाये कौन ?
7.गुहार लगाती राजा से, पर जब शासन बने कुशासन ।
स्त्री मर्यादा भंग करने, पैदा हो जाते हैं लाखो दुर्शासन ।।
Full poetry read in the caption-
ऐ ख़ुदाया दिल पर इतने ज़ख्म दे डाले उसने
तू ही बता किस किस का हिसाब मांगे उससे-
मार लो यार
पर डांटना नहीं !
क्योंकि शब्दों के गूँज ,,,,,,
थप्पड़ से कहीं ज्यादा गहरे होते
और अमिट जख़्म भी देते!!
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कुछ गहरे जज़्बात .....
कुछ सुलगते सवाल .....
बस हैरान है ज़िंदगी .......
कौन देगा जवाब ........
कुछ अधूरे से ख़्वाब ......
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गहरी बातें समझने के लिए गहरा होना जरुरी है
और गहरा वही हो सकता है जिसने गहरी चोटें खायी हो।।-
नजदीकियॉ बढ़ने लगीं हैं आज कल ,
ऐ खुदा ! कहीं फिर से तो
गहरे ज़ख्म का इंतज़ाम नहीं हो रहा ।S.S.-