sangeeta sinha  
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Joined 28 May 2019


Joined 28 May 2019
AN HOUR AGO

सुबह का सूरज लेकर आया
ख़ुशियों का सुंदर सबेरा
मिट गई काली रात अंधेरी
आई उजली भोर सुहानी
चलने लगी मीठी शीतल पवन
महक उठी फुलवारी
पंछियों के कलरव से झूम उठी
पेड़ों की डाली -डाली
कोयल लगी सजाने मीठे मीठे
सरगम के सुर सुंदर
अद्भुत नजारा प्रकृति का चहूँ ओर
मन को लेते सारे मोह

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AN HOUR AGO

सुबह का सूरज निकलता है
हर रोज़ एक नई उम्मीद नई
पहचान लिये —-
सुबह सुबह की पहली किरण
छू जाती है हृदय के कोने कोने को
प्रफुल्लित करती मन को —-
फूलों की महक लिए जब चलती है
शीतल पवन गुनगुनाती धूप में जैसे
सजाती नये सुर —-
याद दिलाती है हर रोज़ देखो कितनी
हसीन है ज़िंदगी इसे व्यर्थ में ना गवाँओ
करो कुछ ऐसा तुम्हारी पहचान बने —-
अपनी लगन मेहनत से तुम छू लो असमान
डगमगाने मत तो अपने कदम आगे बढ़ो
छा जाओ सारे गगन पे —-

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3 HOURS AGO

कुछ वक़्त कुछ क़िस्मत की मेहरबानी है
लेकर आती है हर रोज़ भोर एक नई कहानी
खिली हुई धूप दिलाती है याद नये हौसले,नये विश्वास की

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18 HOURS AGO

ख़ुदा करे उम्र भर तेरे - मेरे मोहब्बत का रिश्ता जवान रहे
मैं बन जाऊँ तेरे इश्क़ का यक़ीन तू मेरी परवाह बन जाये

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18 HOURS AGO

निकल पड़े हैं सफ़र पे
मंज़िल है अनजान मगर
ढूँढ ही लेंगे हम मंज़िल
अपनी कदमों तले है मेरे
विस्तृत असमान .!!

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23 HOURS AGO

इश्क़ ख़ुदा है अगर .…. मेरी इबादत हो तुम
ज़िंदगी ख़्वाब है तो ज़िंदगी की हक़ीक़त
हो तुम .!!

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YESTERDAY AT 9:41

मन में लिये विश्वास ऊपर वाले के
रहमत का लिये मन में आस
ख़ुद को छोड़ उसकी पनाहों में कभी तो
बदलेगी लकीरें हाथों की
ज़िंदगी के सफ़र में मिलेगी मंज़िल मुझे
मालूम नहीं होगा सफ़र कैसा
जबतक होती रहेगी बारिश उसकी रहमत की
ना टूटेगी उम्मीद की डोर
सर पर है जब तक हाथ उसका न होगी कभी
हौसले में मेरे कमी .!!

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YESTERDAY AT 4:46

कैसी दर्द कैसी उदासी छाई है चांद से मुखड़े पर
ख़ामोशी सुना रही है अफ़साना दर्द-ए-तन्हाई का

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YESTERDAY AT 4:42

तेरे ही ख़्वाबो में तेरे ख़यालों में
खोया रहता है ये दिल ,
कैसे कहूँ कि तुम बिन जीना हुआ
मुश्किल सम्भाले नहीं सम्भालता
अब ये दिल .!!

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3 MAY AT 9:35

अपने अपने समझ का फेर है जो
समझ कर भी ना समझे ये उसकी नासमझी है

हम वक़्त बेवक़्त तुम्हें समझाना चाहे
मगर तुम्हारी अपनी सोच थी तुम समझ न समझ सके

तुम्हारी नासमझी ने न जाने कितनी ग़लतियाँ की
ये तुम्हारे समझ का फेर ही था तुम जानबुझ कर अनजान बने

तुम्हारे संग ज़िंदगी का सफ़र भी बड़ा ही अजीब रहा
वक़्त के साथ हम चलते रहे तुम नासमझी में बेवफ़ाई करते रहे

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