और कितनी बार लिखूँ तुम्हें
जितनी बार लिखती हूँ तुम्हें
हर बार तुम अलग नजर आते हो
कभी गीत कभी नज़्म कभी
कविता बन जाते हो तुम.!!-
कितना सुकून है तुम्हारे मखमली आगोश में जी चाहता है कि
यहीं ठहर जाए ये वक्त और इस पल का कोई हिसाब न हो-
उनके निगाहों से निगाहें उलझी ज़रूर थी
मगर हाल-ए-दिल सुनना मुमकिन न हुआ-
उतर कर देखो कभी मेरे दिल की गहराईयों में
तुम्हे तुम्हारी ही तस्वीर नजर आएगी,
देखना चाहो तो देख लेना तुम्हारी ही चाहत होगी
सुनना धड़कनें मेरी तुम्हारा नाम ही लेगी ,
माना नहीं चलता है कोई जोर मोहब्बत पर मगर
मेरी मोहब्बत तुम्हारे लिए ही है ,
अब तो हाल ये है कि बसर होती नहीं ज़िन्दगी मेरी
तुम्हारे ख्वाबों ख्यालों के बिना ,
समझ सको तो समझ लेना मेरी चाहत को हम तो
बस डूबे रहते हैं तुम्हारे खयालों में.!!-
तेरी यादों को बनाकर रौशनी सुबह की
रौशन कर लेती हूँ सबेरा ,
जी लेती हूँ चार पल सुकून के तन्हाई में भी
तुझे अपने पास पाती हूँ.!!-
ये बारिश और तुम्हारी चाहत दोनों ही एक जैसी है
दोनों ही मुझपर बरसते हैं बेशुमार मोहब्बत के साथ-
किसी के लिए कुछ कर नहीं सकते
तो किसी को नीचा दिखाना उचित नहीं
औरों पे उंगली उठाने वाले लोग ये नहीं
समझते कि बाक़ी की तीन उँगलियाँ
उनके तरफ़ ही होती है.!!-
मैं बूँद ओस की तू बारिश की पानी की तरह
चलो एक दूजे में घुल मिल जायें दो जिस्म
एक जान की तरह .!!-
सच में बहुत ज़िद्दी है नियति
जो करना है अच्छा बुरा कर गुजरती है
राजा हो या रंक देव हो या दानव
कोई भी इसके वार से बच नहीं पाया है
नियति का खेल ही था शिव ने
अपनी शिवा को खोया जल गई ज्वाला में
नियति के खेल अजब भी निराले हैं
कहीं ख़ुशी तो कहीं ग़म की बारिश करती है
कब अपना खेल खेल जाये ये कोई नहीं जानता
कभी कोई नहीं बचा इससे भविष्य में न कोई बच पायेगा
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