यह बात जानते तो सभी है कि जहाँ में किसी के खिलाफ,खिलाफत वाजिब नही होता है।।
मगर ये क्या करे आदत से मजबूर हैं।।
कुछ तो चाहिए इनको अखबार और सुर्खियों में बने रहने के लिए।।
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गलत के खिलाफ लड़ने के लिए,
बाजुओं मे ताकत हो न हो,
कलेजे में हिम्मत होनी ही चाहिए ।-
खिलाफत करते हो मेरी तो बेशक करते रहो,
जुगनुओं के विद्रोह से जंगल जला नहीं करते।।
✍✍सुप्रभात✍✍-
बंदूक,तीर व तलवार से धर्म या मज़हब की हिफाजत नहीं होती
जहाँ मुहब्बत होती है वहाँ सियासत नहीं होती।
ये क्या ईश्वर अल्लाह के नाम पे लड़ते हो
हाथों में खंजर लिये कभी इवादत नहीं होती।
राम मेरे अल्लाह तेरे ये क्या
ईश्वर किसी एक की रियासत नहीं होती।
हिन्दू मस्जिद में न जाये,मुसलमान मंदिर में न आये
नेक बंदों की ऐसी आदत नहीं होती।
धर्म व मजहब क नाम पर तुम्ही कटते मरते हो
कभी गीता और कुरान में तो ऐसी खिलाफत नहीं होती।
इंसानों ने ही बना रखे हैं ईश्वर और अल्लाह 'पारुल'
अन्य जीवों में तो ऐसी अदावत नहीं होती।
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करनी अब किसी की, खिलाफत छोड़ दी है,
जबसे तू गई है, हमने शराफत छोड़ दी है।
ये इश्क़ ये प्यार,सब ढकोसले है दुनिया के,
हमने तो करनी रब की, इबादत छोड़ दी है।
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मशवरा चाहिये तुम्हारा,खिलाफ़त नहीं
मेरी जात्ती ज़िन्दगी में झांकने की
हर किसी को इजाज़त नहीं-
ख्वाब तो ऐसे नहीं थे जैसी रात दीवानी निकली
नए जलवों में भी शिकायतें वही पुरानी निकली
हम फनकारों ने भी झुका लिये सिर अपने
जब रोशनी की बात भी अँधेरों की जुबानी निकली-
तख़्त-ए-सिकंदरी पर वो ग़ाज़ी कभी थूकता भी नही
गर वज़ूद-ए-इस्लाम को बनाए रखने की फ़िक़्र नही होती-
आज कल नियत और नजर दोनों साफ है
पर जिनको होना था वो अब भी खिलाफ है-
किसी बात की ख़िलाफत जता कर ही
क्यों करुँ?
कभी तो मेरी निगाह के सलूक को
सोचो ज़रा!-