मैं भी बहुत अमीर हूँ, मोहब्बत की दौलत से,
मेरा जहाँ रौशन है, उसकी वफ़ा की हिक़ायत से।
जहाँ ताज-ओ-तख़्त पे लोग नाज़ करते हैं,
मैं उसकी सादगी पे इख़्तियार करता हूँ।
उसकी वफ़ादारी है मेरे दिल का ताज,
उसके बिना हर नफ़्स अधूरा, हर जज़्बा बेनियाज़।
लम्हा-लम्हा उसकी मोहब्बत का असर है,
मेरी रूह में बसा उसका नामो-निशाँ सफ़र है।
दुनिया कहे कि दौलत कहाँ है तेरे पास,
मैं कहूँ "मेरे पास है वफ़ादार अन्दाज़।"
सोना-चाँदी, ताज-ओ-तख़्त सब फ़ानी है,
उसकी मोहब्बत ही अरफ़ान भोपाली की जाविदाँ कहानी है।-
रीवा का रहने वाला सफ़ेद शेरों के शहर से हूँ
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मुझे फ़ख़्र है अपने अख़्लाक़ और किरदार पर,
मेरी सच्चाई चमकती है हर इक इज़हार पर।
ज़मीं पे रहकर भी आसमान सा रुत्बा पाया,
कभी न झुका झूठे शोहरत के बाज़ार पर।
अगर कोई हम-मिज़ाज मेरी सूरत का मिल जाए,
तो निसार कर दूँ ज़िंदगी अपने इज़हार पर।
अरफ़ान भोपाली हूँ, वफ़ा का मैं पैग़ाम लिए,
लिख दूँ मोहब्बत का फ़साना हर दीवार पर।
मेरे किरदार में आईना-ए-हक़ झलकता है,
जो नज़र टिके तो असर कर दे हर ख़याल पर।
ज़माना ढूंढेगा मिसाल मेरी सादगी की,
और मेरा नाम रहेगा सदा लोगों के ज़ेह्न-ओ-कार पर।-
लहू-ए-शहीदाँ से महकता रहा चमन-ए-वतन,
मगर सियासत ने किया उस इज़्ज़त का ग़ारत।
हिमायत-ए-मुल्क अब सौदेबाज़ी की ज़ंजीरों में है,
सिक्कों की झंकार में डूबा हर नारा-ए-ग़ैरत।
BCCI के ख़यालात में न परचम, न हुर्रियत का जुनून,
सिर्फ़ दरहम-ओ-दिनार है, सिर्फ़ रक़म की हसरत।
वतन की रूह सरे-बाज़ार हुई रुस्वा,
और अहल-ए-चमन करते रहे ताली की इबादत।
अरफ़ान ने देखा ये मंज़र, तो लिखा तंज़-ओ-शिकवा,
कि कहाँ ग़ायब हुई क़ौम से वह जज़्बा-ए-इबादत।
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तुझ पर तन-मन वार दिया, जुनूँ-ए-इश्क़ अता किया,
तेरे हुस्न की ताबिश में, दिल को फ़ना किया।
तेरी रहमत को सज्दा कर, अरक़-ए-जाँ बहा दिया,
तेरे लफ़्ज़ की नज़ाकत पर, ख़ुद को रिहा किया।
मोहब्बत की महफ़िल में, तुझे सरवरे-दिल बनाया,
तेरी वफ़ा की ख़ातिर, ख़्वाबों को भी सजा दिया।-
झर-झर झरनों की ज्यूँ सरग़ोशी सुनाई दी,
चहक-चहक चिड़ियों से मोहब्बत जगा दी।
मन-मोर मचलते रहे रंगों की रिमझिम में,
धूप-दर्पण ने भी रवि-किरण चमका दी।
फूल-फूल महक कर हवाओं में कह गए,
सपनों की सरिता ने दुनिया सजा दी।-
ज़रूरतें ही जहाँ में वफ़ा को मिटा गईं,
मोहब्बतें भी यहाँ हिसाब से निभा गईं।
जो दोस्त थे वो भी फ़ायदे के हुए गवाह,
ज़रूरतें ही दामन से यादें छुड़ा गईं।
ख़ुदा भी इंसान की नज़रों में तब बना,
ज़रूरतें ही उसे आसमान पर चढ़ा गईं।
अरफ़ान, तू देख ले इस जहाँ की हक़ीक़त,
ज़रूरतें ही सबको सबक सिखा गईं।-
"जो चीज़ तुझे ख़ुशी दे, उसे दुनिया से छुपा कर रखो,
दिल की गहराइयों में, मोहब्बत का दिया जला कर रखो।
नज़रें बहुत बेरहम हैं, हर खुशी पर जल जाती हैं,
अपनी हँसी को भी परदे के पीछे सजा कर रखो।
रिश्तों का क्या भरोसा, पल में बदल जाते हैं,
जो अपना लगे उसे दुआओं में लपेट कर रखो।
ज़िन्दगी मिलती है सिर्फ़ एक बार, इसे संभाल कर जीना,
जो चीज़ तुझे ख़ुशी दे, उसे दुनिया से छुपा कर रखो।-
मतला:
हर लफ़्ज़ में तीरगी-ए-ज़हर समाई हुई है,
सास की तन्क़ीद भी इक जंग-ए-छुपाई हुई है।
सबर की मंज़िल पे बहू ख़ामोश खड़ी रहती है,
दिल मगर तिश्ना-ए-फ़रियाद दबाई हुई है।
रोज़ बेटी को सुनाती है फ़साने तौहिन,
नफ़रत-ए-ख़्वाब में हक़ीक़त भी गंवाई हुई है।
नन्द कम, दुश्मन-ए-ख़ून-आशना लगती है,
जिसकी जठानी से न बनी, दास्ताँ सजाई हुई है।
लब पे ख़ामोशी है, सीने में तग़य्युर का समंदर,
ज़ख़्म की सैयाह घटा, आँख में छाई हुई है।
एक दिन सब्र की दीवार ग़रज़ टूट पड़ेगी,
सारी दुनिया को दिखेगी वो हक़ीक़त छुपाई हुई है।
मक़ता:
अरफ़ान, वक़्त गवाह बन के फ़ैसला देगा,
हार जाएगी अदावत, मोहब्बत की कमाई हुई है।-
🌹 ग़ज़ल – औरत 🌹
मतला:
कभी दुआ, कभी इलाज है औरत,
ख़ुदा की सबसे हसीं आवाज़ है औरत।
शेर:
सदियों से ज़ख़्म भी सहती चली आती है,
हर दर्द में भी मुस्कुराती है औरत।
ममता की ख़ुशबू से महकता है जहाँ,
वफ़ा की मिसाल कहलाती है औरत।
अपने अरमान जला देती है चुपचाप,
बस दूसरों के लिए जीती है औरत।
कभी बेटी, कभी बहन, कभी माँ बनकर,
हर रिश्ते को मुकम्मल करती है औरत।
मक़ता:
‘अरफ़ान’ ने देखा है हर रूप में उसको,
रब की सबसे बड़ी रहमत है औरत।-
ग़ज़ल
मतला:
अजब हिसाब-ए-वफ़ा है "रिश्तों" का,
कभी नफ़ा, कभी नुक़्साँ है "रिश्तों" का।
शेर:
हज़ार बार सँवारो तो भी टूट ही जाए,
बड़ा नाज़ुक-सा तआल्लुक़ है "रिश्तों" का।
हमारी जान लुटाने पे भी हासिल क्या?
सिफ़र निकलता अंजाम है "रिश्तों" का।
सबर करो तो भी शिकायतें बाकी रहें,
न बोलो तो भी गिला है "रिश्तों" का।
कभी महबूब की ख़ुशबू, कभी आँसू का धुआँ,
हर पल बदलता तराना है "रिश्तों" का।
मक़ता:
'अरफ़ान' ने बहुत सोचा मगर न समझ पाया,
किसी किताब में दर्ज नहीं गणित "रिश्तों" का।-