व्यवहार में हम भाई के अर्थ का कितना ही दुरुपयोग करें, लेकिन उसकी भावना में जो पवित्रता है, वह हमारी कालिमा से कभी मलिन नहीं होती। (गोदान- मुंशी प्रेमचंद जी)
यदि तुम शक्ति बनों जीवन की स्वागत आओ प्यार करें हम यदि तुम भक्ति बनो जीवन की स्वागत आओ प्यार करें हम लेकिन अगर प्यार के माने तुममें सीमित हो मिट जाना लेकिन अगर प्यार के माने सिसक-सिसक मन में घुट जाना तो बस मैं घुट कर मिट जाऊँ इतना दुर्बल हृदय नहीं यह अगर प्यार कमजोरी है तो विदा-प्यार का समय नहीं यह !!
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि । मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ भावार्थ : सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्ष्मी ! तुम्हें सदा प्रणाम है ।