।।चमचा-विश्लेषण।।
देखो देखो ये चाटुकार, लेते रहते हैं पुरस्कार,
ये चारु वाक् उच्चारक हैं, साहिब के झूठ प्रचारक है। १
आगे-पीछे नित डोलत है, शक्कर मुँह में रख बोलत है,
रसयुक्ता जीभ जलेबी से, साहिब को अपने तोलत है। २
कर्त्तव्य नहीं इनको को करना, तारीफ-कसीदे हैं पढ़ना,
ये कर्मदस्यु नालायक हैं, लेकिन फिर भी ये लायक हैं।३
वो चन्द्र नहीं वो सूरज है, जी जी हुजूर वो सूरज है,
जल बूँद नहीं है मोती है, वाह वाह हुजूर ये मोती है।४
अपनी बुद्धि को दूषित कर जो त्याग भला कर पाते हैं,
यूँ स्वाभिमान को मार मार, निर्लज्ज कथं हो जाते हैं?५
ये सर्वकाल में सकल भूमि पर सर्वदैव मिल जाते हैं,
संख्या में न्यूना होते हैं फिर भी कमाल दिखलाते हैं।६
ये धरातली कीटाणु हैं, बस एक की चार लगाते हैं।
कोई बतलाओ आज हमें, हुनर ये कहाँ से लाते हैं?७
कुछ साहिब ऐसे भी होते, जो चमचागीरी पिपासु हैं,
वे भी चमचे होंगे शायद, उनकी भी कोई सासु है।८
ये परंपरागत खेला है पर चमचा सदा अकेला है,
हँस हँस अपमानी शूलों को छाती पर जिसने झेला है।९
जो धर्मनिष्ठ हैं स्वाभिमानी हैं, चरण नहीं चूमा करते,
वे बेफिजूल दाएं-बाएं साहिब के घूमा नहीं करते।१०
कथनी करनी में भेद करे, वो चमचा है वो पात्र नहीं,
प्रगति का हेतु जीवन में मीठी बातें ही मात्र नहीं।११
चमचा जिस पात्र में होता, उसको ही खाली करता है,
चमचे से दूर रहो भैया,ये कर्ता नहीं बस हर्ता है।१२
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