रिश्तो की सच्चाई यही है
हर रिश्ते की एक
Expiry date
Confirm है ।।-
कुछ पाना
तो कुछ खोना पड़ता है
ये कलयुग है जनाब
यहाँ झूठ बोलो तो हँसना
सच बोलो तो रोना पड़ता है.......
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अब खुद को सिखाना है सबसे मीठा झूठ बोलना
कड़वे सच ने जाने कितने अज़ीज़ दूर कर दिए।।-
लड़की होने पर मिठाई भी न बांटनेवाले लोग ...
दुनिया भर में हीरे जैसी बहू ढूंढने निकले है !!!-
ये दुनिया खिलजियों की सी क्यों हो गयी है
मतलब दुनिया के ये कुछ मर्द
जो जग को अपनी सल्तनत समझ बैठे हैं...
सीने में साम्राज्य विस्तार सी लिप्साओं की आग
और हाथों में धोखे के खंजर से लिए चलते हैं
वहशी मंसूबें क्यों नहीं मिटते इनके...
लालायित रहते हैं ये
दुनिया की हर स्त्री को ही
शामिल करने को अपनी हरम में...
और जब दिखती है कहीं कोई पद्मिनी इनको...
तो काम पीड़ित हो
उतार देते कपट के खंज़र
रक्षा करते वीर गोरा-बादल
और राणाओं के सीने में....
और झपट पड़ते हैं पवित्र आँचल पर....
और
जल जाती हैं चिताएं सहस ही
इन खिल्जीओं के हाथों ....
क्योंकि
सभी पद्मिनियाँ इतने नसीब वाली कहाँ होती हैं
जो पहुँच पाए जौहर कुंड की अग्नि तक....-
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
Just for Fun.
Clear
Only for fun
😁नवीन खोज😁
कैप्शन में..........-
गलती थी मेरी या अच्छाई थी....
गलती थी मेरी या अच्छाई थी, जो सोचा इस देश को मेने हीरा...
नजरें उठी तो देखा कोई खा रहा है दर -दर की ठोकर तो कोई सह रहा है पीड़ा....
हमारा देश संस्कृति को है दिखाता, पर मन ही मन है ये HYPOCRISY का नेता...जैसे
1.) दहेज़ को गिफ्ट्स और आशीर्वाद बताते हैँ, बहीं दूसरे दिन उन्हीं गिफ्ट्स के लिए उस बहू को जलाते हैँ.....
2.)जहाँ रेप होने का कारण छोटे कपड़े बताये जाते है, बहीं रेप होने के बाद दो टूक कपड़े देना इनको महंगे पड़ जाते हैँ......
3.)इस देश के लोग मदद करने के लिए जाने जाते हैँ, बहीं ACCIDENT होने के बाद गोला बना कर उसी लाश को निहारते हैँ......
4.)जहाँ दिन रात पढ़के बच्चा अव्वल आने की आश है रखता , बहीं PRACTICALS मे जैक लगाके कोई और TOPPER है बनता....
5.)जहाँ मंदिरो में हज़ारों फल फूल चढ़ाये जाते है, बहीं मंदिर के बाहर हज़ारो गरीब भूख से मरे जाते है....
हज़ारों सवाल हैँ पर जवाब कोई नहीं जैसे
हज़ारों बबाल है पर सुनवाई बहीं की बहीं..
यहीं है इस देश की कड़वी सच्चाई
अब आप ही बताइये इस देश को अच्छा समझने की गलती थी मेरी या थी मेरी अच्छाई ?????????????
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ज़रूरत नहीं मुझे गैरों की...
कुछ अपने ही दर्द बेशुमार दे जातें हैं,
सामने से मीठा शहद बनकर...
पीठ पर वार हज़ार कर जातें हैं.!-
अच्छाई और सदाक़त की वाज़िब क़द्र रही नहीं अब ज़माने में
ख़ुदी को अपनी नज़रअंदाज़ कर लगे है बस औरों को आज़माने में-