साहिबा💜 🙈   (~नेह~)
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Joined 16 July 2017


Joined 16 July 2017

इतनी सी तो गुज़ारिश है 'ए चाँद ' मुक्कमल कर बरसा दे मेहर
मुझें सिर्फ वो चाहिए ना कोई उस सा , ना उससे बेहतर

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फ़रोग़-ए-हया सी हो जाती है शख़्सियत अक्सर तुमसे मिलकर
झुक ही जाती है निगाहें तुम्हारी नज़रों में शरारत देखकर

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ख़ैरियत पूछुंगी कैफ़ियत पूछुंगी तुम्हारी सलामती पूछुंगी कैसे बिताए ये दिन हर एक पल पूछुंगी
तुम्हे जी भर के देख लूँ पहले फिर मैं ये सब पूछुंगी

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तेरे ख्यालो के छूने भर से ही धड़क जाता है दिल मेरा
कौन कहता है कि बेसबरियों को बढ़ाने के लिए रूबरू होना ज़रूरी होता है

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'मैं रुखसती के दौर में भी तुमसे मिलने का ख्वाब लेके इस जहान से जाऊँगी'




(मैं दुनियाँ को अलविदा कहूँगी तुम्हें नहीं , तुमसे अगले और उसके भी अगले जनम में मिलना है मुझे)

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अजी दिल आने लगा है आप पर कहिए क्या किया जाए
इस दिल को रोके या ख़्वाहिशों को बहकने दिया जाए

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दिल की धड़कनों का तेज़ , साँसों का धीमा ,
आँखों का बन्द हो जाना
तुम्हारे छूने का ये असर होता है मुझपे
तुम कहते हो मोहब्बत में पर्दा ज़रूरी नही तो सुनिए जनाब
तुम्हारे क़रीब होने पर घबराहट का मीठा मीठा सा नशा होता है मुझपे

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निगाहें ही हो गयी अब तो सफ़ीर इश्क़ में
की ये बेक़रारिया अब तो छुपाए नहीं छुपती है

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ना कोई होर साड्डे लयी एन्ना ख़ास है जिहा तू वखरा ओ
ज़िंदगी लिख दा मैं मेरी तेरे नाम ते तीन अखरा तों

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महसूस हो धड़कने इक दूजे की दिन-ए-ख़ास वो भी आएगा जी
सुनिए जनाब! जब भी दीदार इश्क़ का होगा अजी हुस्न तो शर्माएगा ही

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