निगाहें ही हो गयी अब तो सफ़ीर इश्क़ में
की ये बेक़रारिया अब तो छुपाए नहीं छुपती है-
ना कोई होर साड्डे लयी एन्ना ख़ास है जिहा तू वखरा ओ
ज़िंदगी लिख दा मैं मेरी तेरे नाम ते तीन अखरा तों-
महसूस हो धड़कने इक दूजे की दिन-ए-ख़ास वो भी आएगा जी
सुनिए जनाब! जब भी दीदार इश्क़ का होगा अजी हुस्न तो शर्माएगा ही-
आलम-ए-वस्ल में क़ामिल शब भी मुख़्तसर फ़ौर लगती है
जब रूबरू आप होते है तो साँसों की सरगोशियां भी शोर लगती है-
पलकों की ज़ुम्बिश हाल-ए-दिल कह जाती है
शोख़ निगाहें इशारों में शरारत जताती है
साँसों की लरज़िश मुसलसल बहकाती है
क़ातिल मुस्कान धड़कने बढ़ाती है
उफ़्फ़ उनकी ये ख़ामोश अदा
रफ़्ता रफ़्ता सताती है-
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— % &Irritating someone : your Talent??
Bestie :— % &
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फ़क़त मुलाकातें और बातें ही तन्हा शय नही क़राबत की
इश्क़ की गहराई महज़ लफ़्ज़ों से नही मापी जा सकती-
गुलों से उम्दा महक़ उनकी साँसों की इसे क्या ख़िताब दूँ
गुलकंद से शीरींअंदाज़े-अदा को किस शय से नवाज़ दूँ
उनका मुस्कुराना जैसे गुलाब का खिल जाना , जो ख़ुद है गुलाब से अपने उस गुलाब को आख़िर क्या गुलाब दूँ-