Sanskriti Singh   (©Free soul🦋)
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Joined 11 March 2019


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17 JUN 2024 AT 1:31

जिंदगी का होना है।

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11 AUG 2023 AT 10:01

जिन्हें जिम्मेदारी का बोझ बहोत है

पर बखूबी संभालने का हुनर पता है....

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28 NOV 2022 AT 10:20

कोई तड़प रहा है वस्ल के इंतजार में
किसी को एक कतरा भी फिक्र नहीं है।

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28 NOV 2022 AT 10:17

ये रफाकत भी किसी काम की नहीं
हरवक़्त लोग इस शब्द का भी फायदा जो उठाते है।।

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28 NOV 2022 AT 10:15

मेरी दुआओं के हर हर्फ़ में तुम हो.
तुम हो तो मुझे अपने जैसा होना आया यारा

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28 OCT 2022 AT 7:36

अनुभूति ही आनंद है...।

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27 JUN 2022 AT 13:24

ढलती शाम के साथ ढल जाता है दिन, रात, पुरानी सुबह,
और कभी- कभी ज़िन्दगी।

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17 MAR 2022 AT 12:03

मायने उस शब्द के भी बदल जाते हैं
जिसे वक़्त रहते न समझा जाए।।

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16 DEC 2021 AT 18:25

मुझे खुद को ही है
पाने की ख्वाहिश
मैं खो रही जहाँ अपना अस्तित्व
कदम बढ़ते हैं थोड़े फिर डगमगा जाते हैं
हौसला भी मानो लड़खड़ा जाते हैं
मेरे ख्यालों की उड़ान
हक़ीक़त में साँस ले
मैं चाहती हूँ
खुद से मिलूँ....!

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22 SEP 2021 AT 20:49

इस भूखे नंगे समाज में
तुम कब तक यूं घुट- घुट कर मरोगी
बात बस इतनी- सी कहनी है
हाल- ए- दर्द कहीं तो बयां करो
ये दर्द तुम कितना सहोगी....

कोई स्त्री अबला नहीं है
ये बात तो तुम्हें भी पता है
कब तक इस चार- दिवारी में
हर रोज तिल- तिल मरोगी
छोड़ो ये बताओ
अपना चंडी रूप तुम कब धड़ोगी....

परिवर्तन भी प्रकृति का नियम है
अपने कुंठित विचारों को तुम कब परिवर्तित करोगी
ये चुप्पी संस्कार नहीं है
सुनो ये बताओ
आखिर कबतक ऐसी सधी पड़ोगी
बात तेरे चरित्र पर आये
तब भी तुम क्या ऐसे ही अबला बनी पड़ोगी

जब जिंदगी तेरी है
दर्द भी जब तेरा है...
तो अपनी खुशियों को कब पहचानोगी

इस चार दिवारी में रह कर अपनी इक्षाओं
को यूँ कबतक मरने दोगी
छोड़ो ये बताओ
अपना चंडी रूप कब धड़ोगी....

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