जिंदगी का होना है।
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लिखना पेशा नहीं राहत है......
अल्फाज मेरे हैं ... read more
जिन्हें जिम्मेदारी का बोझ बहोत है
पर बखूबी संभालने का हुनर पता है....-
कोई तड़प रहा है वस्ल के इंतजार में
किसी को एक कतरा भी फिक्र नहीं है।-
ये रफाकत भी किसी काम की नहीं
हरवक़्त लोग इस शब्द का भी फायदा जो उठाते है।।-
मेरी दुआओं के हर हर्फ़ में तुम हो.
तुम हो तो मुझे अपने जैसा होना आया यारा-
ढलती शाम के साथ ढल जाता है दिन, रात, पुरानी सुबह,
और कभी- कभी ज़िन्दगी।
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मुझे खुद को ही है
पाने की ख्वाहिश
मैं खो रही जहाँ अपना अस्तित्व
कदम बढ़ते हैं थोड़े फिर डगमगा जाते हैं
हौसला भी मानो लड़खड़ा जाते हैं
मेरे ख्यालों की उड़ान
हक़ीक़त में साँस ले
मैं चाहती हूँ
खुद से मिलूँ....!-
इस भूखे नंगे समाज में
तुम कब तक यूं घुट- घुट कर मरोगी
बात बस इतनी- सी कहनी है
हाल- ए- दर्द कहीं तो बयां करो
ये दर्द तुम कितना सहोगी....
कोई स्त्री अबला नहीं है
ये बात तो तुम्हें भी पता है
कब तक इस चार- दिवारी में
हर रोज तिल- तिल मरोगी
छोड़ो ये बताओ
अपना चंडी रूप तुम कब धड़ोगी....
परिवर्तन भी प्रकृति का नियम है
अपने कुंठित विचारों को तुम कब परिवर्तित करोगी
ये चुप्पी संस्कार नहीं है
सुनो ये बताओ
आखिर कबतक ऐसी सधी पड़ोगी
बात तेरे चरित्र पर आये
तब भी तुम क्या ऐसे ही अबला बनी पड़ोगी
जब जिंदगी तेरी है
दर्द भी जब तेरा है...
तो अपनी खुशियों को कब पहचानोगी
इस चार दिवारी में रह कर अपनी इक्षाओं
को यूँ कबतक मरने दोगी
छोड़ो ये बताओ
अपना चंडी रूप कब धड़ोगी....-