"क्षमा याचना.... "
Please read in caption....!!-
मैं पुरुषत्व,,
क्षमाप्रार्थी हूँ
प्रत्येक स्त्री से !!
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:
मेरा अपराध है
हावी हो जाना
इंसानियत के समक्ष !!
:
:
मैं चाहता हूँ कि......!!!!
मुझे तब तक क्षमा ना मिले
जब तक मैं स्वयं के साथ
याद रखने लगूँ इंसानियत !!!
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हृदय के रसातल
पर आज मैंने
ज्वलंत लौ पर.....
ज्वलंत शब्द भावों
रूपी घी,तेल,मिर्च मसालों
को..तपने नहीं रखा
चिटचिट की चपल
कर्कश आवाज़
हृदय की दीवारों को जला
कर खाक करती
"क्रोधाग्नि" में.....
पर आज तो क्षमा पर्व है
जो कर्म का मर्म है
नित्य दैनिक जीवंत आत्मा में
सो.....धारण किया
पर्व और धर्म को!!
23.8.2020-
रुकिए सुन लीजिए हमारी बात
रोक लीजिए वहीं अपने हाथ
किसने हक दिया कि खुदा बन जाओ
बस करो मेहरबानी अब तो रुक जाओ
जिस्म नहीं लो लेना तो रूह से रिश्ता बनाओ
पर तुम क्या जानो रूह क्या होती है
तुम्हें तो प्यार की परिभाषा भी नहीं मालूम
तुम तो बस अपने अहंकार में हो गुम
चलो आज तुम्हे तुम्हारी औकात बता दे
हमारी मर्जी के बिना चल छू के दिखा दे
तू क्या छू पाएगा मुझे अब यहां
सोच तेरा क्या हाल करूंगी वहां
तुमने समझा क्या है औरत को
कठपुतली तो नहीं मान बैठे
इस गलत फहमी न रहना
अब हम भी शेरनी को है जान बैठे
चीर चीर न कर दू तेरा अहंकार तो कहना
अब मैंने छोड़ दिया है चुप रहना
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तुम्हारा मुझ पर ये क्रोध करना
तुम्हारे होश में न होने का परिचायक है
और ये घृणापूर्ण अपशब्द
इसी बेहोशी की स्थिति की परिकाष्ठा
मेरा रह रहकर बीते हुए को याद करना
मेरे होश में न होने का परिणाम है
और आज तक पूर्णरूपेण क्षमा न दे पाना
इसी बेहोशी की अवस्था का प्रमाण
हम दोनों में से, जो कोई भी
इस बेहोशी की निद्रा को तोड़कर
सदा के लिए जाग जायेगा
और होश में आ जायेगा
.
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वो ही 'बुद्ध' हो जायेगा!-
अंतत: तप उठेगा
ब्रह्माण्ड समस्त
ईश्वरीय क्रोध की आंच से
द्रवित हो उठेगा
हृदय वसुधा का
संतानों के संताप से
गौरैया के पंखों से
बनने लगेंगे बादल
झर-झर झरेंगे झरने
शिशुओं की मुस्कान से
एक बूंद सहसा गिरेगी
ईश्वर के हृदय स्थल पर
परमपिता शिशु को उठा कर
हृदय से लगा लेंगे
इस प्रकार पुन:
इन्द्रधनुष का सृजन
तितलियों के पंख से
ईश्वर सीखेंगे नन्हें ईश्वर से-