सोच की दहलीज पर यादों ने कदम रखा,
खुशियो के फूल महके और यादों की दर्रोदीवार पर जा टकराए ,
"तभी गम मुस्कुराई और बोली"मै खुशनुमा यादों की दीवार पर कलह की दरार अभी हुँ बनाती,
"मुस्कुराहट ने कहा" मुस्कुराहट की लेप हर दरार है भर जाती,
"गम मुस्कुराई और बोली "मुस्कुराहट की ओट मे गम कुछ छन ही छुप पाती ।-
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अच्छी पत्नी वही है जो अपने पति को भक्ति की ओर अग्रसर करे, अच्छा कार्य करने को प्रेरित करे
पूरे परिवार को जोड़कर रखे.....
दुर्दशा की अधिकारी है वो औरत;
जो झूठ बोलकर, छल करके भाई-भाई को अलग कराती घर मे कलह करती, परिवार को तोड़ देती है....!!-
कभी-कभी
शब्दों और भावों
के कलह के बीच
कविताएँ सहन करतीं हैं
असीम पीड़ा.....
और जूझती हैं
अपने अस्तित्व को
बचाने के लिए....
जैसे एक मूक कहना
बहुत कुछ चाहता हैं...
पर कह पाने मे अक्षम|
.
क्या ये सच नहीं हैं?
Hmm
व्यक्त करना चाहती हैं
कभी-कभी बहुत कुछ कविताएँ
पर शब्दों और भावों की
निष्ठुरता से व्यथित कविताएँ.....
.
पराश्रित कविताएँ...
दूर बैठे टकटकी लगाए
देखती हैं इस कलह को |-
घटाएं इस कदर रूठीं,
बादल फुट-फुट कर रोया है।
मिलन की सौगात है या जुदाई?
इस बीच मौसम ने ली अंगड़ाई,
लगता है उसने मज़ा ने पाई।
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✍️"कलह, बिछोह, बुढ़ापा, गोद, वारिस, महत्व "
🍎...🍇...🍊
दिन देखे दिल रोक रोक पर आज भी गद्दी सूनी थी।
चाहत थी वारिस की उन्हें पर गोद बरस से सूनी थी।
हुए झगड़े तो रहे अलग पर बातें मध्य न रूकी कभी।
वे रोते हैं जब वृद्ध हुए वंश आकर उन पे रूकी अभी।
🥝...🍊...🍇
समय बीती तो गोद लिया एक चेहरा चमकता दिखा उन्हें।
वक्त के मारे, थके बेचारे, यह "वक्त" गया कुछ सीखा उन्हें।
आखिर वारिस से वंश की जिंदगी बचाने का तरीका दिखा।
बीते अरसों वह बड़ा हुआ तो बुढ़ापा सहारे पे टिका दिखा।
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शहर के उस शोर में,
जहाँ न सुनाई देता
पंछियों का मौन,
न पत्तों की सरसराहट,
और न ही सुनाई देते
आंखो के लफ़्ज़,
वहीं एक छोटी सी कविता
चली अपना गीत सुनाने,
कुछ बताना चाहती थी,
शायद कुछ जताना चाहती थी,
पर वहीं रॉड क्रॉस करते हुए,
फिल्मी गाने बजाती हुई एक
मॉडर्न गाड़ी आई और...
इस शोर में कहाँ सुनता
कोई कविता की आह!
अच्छा ही तो हुआ...
वहीं कविता जूझती रही,
लहू लुहान, बेहाल,
एक कोने में
बस एक आस लिए शायद
कि कोई सुन ले
आखिरी बार...
पर क्या...?-
✨परिवार, नई बहु एवं डाँट✨
१✍️ एक घर में ६ सदस्य थे। बूढ़ा, बूढ़ी एवं उनके दो बेटे जिनकी शादी एक साथ महीनों पहले ही हुई थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। २ महीने बाद नई बहु बहुत सीधी सादी साबित हुई। यहाँ तक कि वह अपनी ही जेठानी की सेवा जतन भी करने लग गई।
२✍️ कुछ दिनों बाद तो जैसे उस पर सभी राज करने लगे एवं ताने भी कसने लगे, बूढ़े को छोड़कर। वह अपनी छोटी बहू से प्यार करते थे और समर्थन भी।
३✍️ एक दिन अचानक, बड़ी बहु एवं सास किसी छोटी सी बात पर खरी खोटी सुनाने लगे। अब बूढ़े से रहा नहीं गया एवं उसने लयात्मक रवैये में उन्हें कुछ ऐसा कहा।
बारी बारी बारम्बारी
वारिस बन न वार करो।✨.......(१.१)
तपिश अति इस तप को
बारिश बन सत्कार करो।✨.....(१.२)
प्यारी मेरी बहु बेचारी
उस पे न अत्याचार करो।✨........(२.१)
काट दो जड़ न रहे बिमारी
तल्ख़ वचन बौछार न हो।✨....(२.२)-
यह देश एक होगा तब जब
परिवार के वंशज एक रहें,
सौ कमरे भले हो घर में मगर
बस चूल्हा-चौका एक रहें !-
आँगन में किलकारी करते बच्चे
प्रेम प्रादुर्भाव से उपजते हैं बच्चे
माँ बाप के बीच बढ़ती खाई को
पाटने का प्रयास करते हैं बच्चे
जब भी होती है दोनों में अनबन
टूल सरीखे इस्तेमाल होते हैं बच्चे
जब बनती शीत युद्ध की स्थिति
संदेशवाहक बनाये जाते हैं बच्चे
माँ मायके में पिता नशे में रहते
वातसल्य को तरस जाते हैं बच्चे
संबंधों पे भरोसा खोते तन्हा "ताब"
अपराध की दुनिया में खोते हैं बच्चे-
जिनको भी उत्थान हमारा खलता है,
देख हमारी ख़ुशी लोग जो जलते हैं ।
क्रोध नहीं है मुझको उन पर थोड़ा भी,
नकारात्मक सोच में जन जो पलते हैं ।।
मन में उनके लिये भी आदर भाव रखो,
पीड़ा से हैं ग्रस्त दुःखों के मारे हैं ।
हित की आशा करो प्रेम के कन्द चखो,
अलग नहीं प्रभु की ही तरह हमारे हैं ।।-