red   (ʀɛɖ)
1.3k Followers · 418 Following

read more
Joined 21 June 2019


read more
Joined 21 June 2019
28 APR AT 19:42

इस महँगाई के ज़माने में मोहब्बत अब सस्ती नहीं — % &वह है महलों की रानी उसके आगे मेरी हस्ती नहीं— % &जेब खाली और प्यार भर दिल में किया इज़हार मैंने
— % &कहा उन्होंने आँखें दिखाकर— % &

-


23 APR AT 19:27

इश्क़ में क्या कर रहे हम बेखयाली में,
जीते जी ही मर गये हम बेखयाली में।

एक दिन बस और तेरी राह देखेंगे,
दशकों से यह सोचते हम बेखयाली में।

-


7 APR AT 19:39

-


6 APR AT 19:21

वो आँसू  जो  रुके नहीं किसी का दर्द देखकर,
यक़ीं मानो किसी हीरे से कम नहीं वो भी ज़रा।

-


29 MAR AT 19:39

जैन धर्म का एक बहुत ही अच्छा सिद्धांत है - स्यादवाद या अनेकान्तवाद। सीधे शब्दों में एक ही वस्तु को अलग-अलग जगह से देखना। अगर मैं एक वस्तु को एक जगह से देखूं तो मुझे गोल दिख सकती है, दूसरी जगह से देखूं तो चतुष्कोण दिख सकती है और तीसरी जगह से देखूं तो शंकु दिख सकती है। यहाँ वस्तु एक ही है और सत्य तीन हो गये। लेकिन ये सत्य हो गये सापेक्ष सत्य जो कि जगह की सापेक्षता के कारण है। सापेक्ष सत्य का ज्ञान सीमित होता है। जब हम उसी वस्तु को पूरे 360⁰ से देखते है तब हमें उसके सही आकार का पता चलता है और यह होता है निरपेक्ष सत्य जो कि जगह पर आधारित नहीं है। निरपेक्ष सत्य वास्तविकता से काफ़ी करीब होता है। किसी भी सत्य को जानने के लिए स्यादवाद ज़रूरी है तो ही पूर्ण सत्य जाना जा सकता है क्यों कि स्यादवाद के अनुसार कोई भी वस्तु या व्यक्ति अनंत गुणों का भंडार है। सापेक्ष सत्य के एक-एक आवरण को हटाने के बाद अंत में जो बचता है वह निरपेक्ष सत्य बचता है। वास्तविकता को समझने के लिए स्यादवाद को समझना ज़रूरी है।

-


28 MAR AT 10:46

सत्य और वास्तविकता दोनों अलग भी हो सकते हैं। सत्य कुछ और होता है, वास्तविकता कुछ और। गुजरात में दारूबंदी है यह सत्य है, लेकिन गुजरात में हर जिले में दारू मिलता है यह वास्तविकता है। जब सत्य और वास्तविकता का भेद समझ आने लगता है तब मनुष्य आंतरिक जागृति का प्रथम चरण पार कर लेता है।

-


26 MAR AT 19:22

क्यों भला बरबाद कर दे हम अदावत के लिए।

-


25 MAR AT 19:47

देश में हल्ला मचाकर सो रहा औरंगज़ेब,
अंधभक्तों को जगाकर सो रहा औरंगज़ेब।

देश जो पीछे हुआ है जिम्मेदारी उसकी है,
देश को इतना गिराकर सो रहा औरंगज़ेब।

रोजगारी और गरीबी, शिक्षा से क्या लेनदेन,
सारे मुद्दों को भुलाकर सो रहा औरंगज़ेब।

जनता का पैसा चुराकर जाने कितने उड़ गये,
देश को इतना लुटाकर सो रहा औरंगज़ेब।

मर गया वह कर उसे जो भी उसे करना ही था,
अपने जैसों को बनाकर सो रहा औरंगज़ेब।

तोड़ दो तुम कब्र उसकी विश्वगुरु बन जायेंगे,
आग कैसी यह लगाकर सो रहा औरंगज़ेब।

-


23 MAR AT 19:37

महबूब से जुदाई बर्दाश्त नहीं इस जहां में,
या ख़ुदा इस जहां से ही उठा ले अब उसे।

-


16 MAR AT 19:41

जब कोई अच्छा काम करे तब समाज— % &जब कोई बुरा काम करे तब समाज— % &

-


Fetching red Quotes