red   (ʀɛɖ)
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Joined 21 June 2019


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Joined 21 June 2019
14 JUN AT 20:24

Me reading my childhood diary
" Bada hokar bada aadmi banunga aur garibo ki madad karunaga.."

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11 JUN AT 19:40

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27 MAY AT 19:29

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22 MAY AT 19:52

मच्छर और पत्नी

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10 MAY AT 20:30

— % & — % &

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28 APR AT 19:42

इस महँगाई के ज़माने में मोहब्बत अब सस्ती नहीं — % &वह है महलों की रानी उसके आगे मेरी हस्ती नहीं— % &जेब खाली और प्यार भर दिल में किया इज़हार मैंने
— % &कहा उन्होंने आँखें दिखाकर— % &

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23 APR AT 19:27

इश्क़ में क्या कर रहे हम बेखयाली में,
जीते जी ही मर गये हम बेखयाली में।

एक दिन बस और तेरी राह देखेंगे,
दशकों से यह सोचते हम बेखयाली में।

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7 APR AT 19:39

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6 APR AT 19:21

वो आँसू  जो  रुके नहीं किसी का दर्द देखकर,
यक़ीं मानो किसी हीरे से कम नहीं वो भी ज़रा।

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29 MAR AT 19:39

जैन धर्म का एक बहुत ही अच्छा सिद्धांत है - स्यादवाद या अनेकान्तवाद। सीधे शब्दों में एक ही वस्तु को अलग-अलग जगह से देखना। अगर मैं एक वस्तु को एक जगह से देखूं तो मुझे गोल दिख सकती है, दूसरी जगह से देखूं तो चतुष्कोण दिख सकती है और तीसरी जगह से देखूं तो शंकु दिख सकती है। यहाँ वस्तु एक ही है और सत्य तीन हो गये। लेकिन ये सत्य हो गये सापेक्ष सत्य जो कि जगह की सापेक्षता के कारण है। सापेक्ष सत्य का ज्ञान सीमित होता है। जब हम उसी वस्तु को पूरे 360⁰ से देखते है तब हमें उसके सही आकार का पता चलता है और यह होता है निरपेक्ष सत्य जो कि जगह पर आधारित नहीं है। निरपेक्ष सत्य वास्तविकता से काफ़ी करीब होता है। किसी भी सत्य को जानने के लिए स्यादवाद ज़रूरी है तो ही पूर्ण सत्य जाना जा सकता है क्यों कि स्यादवाद के अनुसार कोई भी वस्तु या व्यक्ति अनंत गुणों का भंडार है। सापेक्ष सत्य के एक-एक आवरण को हटाने के बाद अंत में जो बचता है वह निरपेक्ष सत्य बचता है। वास्तविकता को समझने के लिए स्यादवाद को समझना ज़रूरी है।

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