अपने इशारों पर चले वो जिंदगी कहां,
ख्वाहिशें कहां और चलते कदम कहां!-
मंज़िल की ओर बढ़ते हुए ये कदम,
ना जाने क्यों अब पीछे भाग रहे हैं।
पहले तूफानों के शोर से डरे नहीं,
अब बहती हवा के मौन से कांप रहे हैं।-
चूम के क़दमों को हमारे, हमें हूर-ए-ज़न्नत बना दिया,
कहा उन्होंने, इश्क़ है तुमसे, हमने उन्हें अपना ख़ुदा बना लिया।-
हर रोज बहक जाते हैं मेरे कदम
तेरे पास आने के लिये
ना जाने कितने फासले तय करने अभी
बाकी है तुमको पाने के लिये-
निशां कोई छूट न जाये अब, फैसले बह न जाये जो लिये सख़्त ..
अब जो मेरे दिल ने दिमाग के कदमों पर चलना शुरू किया है,
तो बैरी ये आसमाँ यूँ बरस कर बिखेर न जाये सब !!-
अगर चलते-चलते इनके कदम बागी हो गए,
कहां जाओगे तुम अगर ये इंकलाबी हो गए ।-
सर उठा कर जीना चाहता हूँ जहान भर में
जहाँ कहीं भी सर झुके वहाँ कदम तेरे हो मौला-
ईमानदारी की राह पर चलते चलते
पहुँच गया हूँ बेईमान शहर में
हर कदम पर ठोकर हूँ खाता
गिर जाता हूँ खुद की नज़र में-
न कलम साथ दे रही है
न कदम साथ दे रहे हैं
पी के आँसू
लड़खड़ाने लगे हैं-
चल चल के थक चुके है कदम फिर भी अब तलक ।
के उस जगह खड़ा हु जहा से चला था मैं।
हैरत ना कर बदन को मेरे चुर देख कर ।
उन चोटियो को देख जहा से गिरा था मै ।-