ज़ुल्म ही ज़ुल्म हैं यहाँ अमान कुछ नहीं
जी हुज़ूर के बिना अब इन्सान कुछ नहीं
आब-ए-रवां सी ज़िन्दगी बह रही है अब
ग़मों के तूफ़ान से बचा सामान कुछ नहीं
दो - गज़ ज़मीं के वास्ते ही जी रहे हैं सब
जो ज़मीं का न हुआ, आसमान कुछ नहीं
ग़रीबों की तीरगी जो न समझ सके यहाँ
वही सय्याद है उसकी पहचान कुछ नहीं
अपनों का तू यहाँ कुछ तो एहतिराम कर
इसमें तेरा ही नाम है ओ नादान कुछ नहीं
'आरिफ़' कभी न ढूँढना पता तू हयात का
ये दो दिनों का खेल है मेरी जान कुछ नहीं-
बुजुर्गों की सोहबत में रहो सबका तुम एहतिराम करो !
खुदा के सजदे में नमाज़ अदा सुब्ह-ओ-शाम करो !
यहां हर मोड़ पर उलझन है फेरबदल की दुनिया है,
अब समझो जरा हयात को तनिक ना आराम करो !
भला कब तक यूं आवाम में पहचान छुपा कर बैठोगे,
सब फ़ख़्र से देखे तुमको कुछ ऐसा भी अब काम करो !
हुनर कभी किसी की उम्र का होता नहीं मोहताज है,
छोटा बड़ा कभी ना देखो उस हुनर को सलाम करो !-
रिवायत सुनकर ऐतबार न रहा।
चलो...मुझे इसपर एतराज न रहा।
रग़बत तो ना रही हमसें अब तुम्हें...
एहतिराम भी नही रहा???
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सच्चे दिल से कर बड़े और छोटे सभी का एहतिराम,
इन्ही की दुआओं से हासिल होगा तुझे एक दिन तेरा मुक़ाम..।।
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एहतिराम -- सम्मान ( Respect)-
वो क्या करेंगे,
एहतिराम-ए-मोहब्बत,
जिन्हें कद्र ही नही है,
आज तक हमारी।
priti Mehra-
ऐ मेरे दिल! तेरा यूँ रूठकर बैठ जाना कोई ग़लत तो नहीं,
इसके-उसके एहतिराम में तेरी ख़्वाहिश तो पूछी ही नहीं।-
// एहतिराम= सम्मान //
एहतिराम के काबिल हैं वो
दूसरों के लिए जीते हैं जो-
"एहतिराम"
ज़िंदगी की शर्त, और चाहत भी,
गर सफ़र खूबसूरत मंजिल है पाना
ज़रूरत है उस कतार में मसरूफ़ होना
वक्त से ही वक्त का
"एहतिराम" करते रहना है-
मोहब्बत करता रहा मेरा दिल उन्हे ,
मोहब्बत के एहतिराम के खातिर ,
कि उसे यकीन है उनका दिल ,
कभी - ना कभी ज़रूर भरेगा ,
मेरी मोहब्बत के एहसासों का ,
हर दम तोहफा पाकर ।
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