खिन्नता कभी-कभी
किसी दूसरे से नहीं,
अपने आप से हो जाती है।।
ये मन उलझ-सा जाता है,
विचारों के अंर्तद्वंद्व में।।
ऐसा लगता है,
सबकुछ समझकर भी ये हृदय
अनजान बनना चाहता है,
इस दुनिया की हर वस्तु
( जीव और निर्जीव )
से दूर किसी एकांत स्थान में
आंतरिक शान्ति की तलाश में
निकल जाना चाहता है।।
जहाँ ना कोई प्रश्न करे,
और ना ही कोई उत्तर देना पड़े।।-
मेरे एकांत से ऊपजी
हो मेरी ही अनुभूति
अंतर्मन से लेकर भाव मेरे
शब्दों से भरती हो उड़ान
कोई और नहीं तुम
मेरी कविता हो
मुझे सबसे प्रिय हो
सुख में संगिनी बनकर
दुख में सहचरी
नहीं छोड़ती कभी मेरा हाथ
देकर मेरे शब्दों को विस्तार
बन परछाई देती हो साथ
कोई और नहीं तुम
मेरी कविता हो
मुझे सबसे प्रिय हो...-
झाड़ ऊँचे और नीचे
चुप खड़े हैं आँख मींचे,
घास चुप है, काश चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है;
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें........-
जब भी होता हूँ एकान्त में,
घेर लेती है भीड़ मुझे,
मेरे ख़यालों की-
बोलो ना... अब भी होता है क्या इंतज़ार तुम्हें
मेरी याद दिलाता है क्या.. आईने में श्रृंगार तुम्हें,
आँख बंद कर पीछे-पीछे ज्यूँ बेमक़सद साया चलता है
प्रेम की उस छुटी डगर पे... क्या अब भी है एतबार तुम्हें,
बोलो ना...
सच्ची ...मुझे तो अब भी अंधेरों में स्वप्न तुम्हारे सताते हैं
क्या अब भी इन चाँद-तारे-जुगनुओं में... नज़र आता है प्यार तुम्हें,
तुम बोलो तो... विरह के साग़र की मैं कश्ती बन जाऊं "प्रिय"
पऱ क्या कोशिश करोगी तुम... ग़र दूँ... हाथों में पतवार तुम्हें,
...इस पार के तीर तो मुझसे बिछुड़ने को कब से राज़ी हैं "जानां"
पऱ क्या उस पार के किनारे भी कहते हैं ...चलने को इस पार तुम्हें,
बोलो ना... अब भी होता है क्या इंतज़ार तुम्हें!!-
लोगों की प्रवृत्ति भी कितनी असमानता दर्शाता है,
जहाँ एक ओर मनुष्य सारे सांसारिक बंधन छोड़,
कंदराओं में जा एकांत समाधि में लीन हो जाता है,
वही दूसरी ओर क्षणिक सुर्खियों में आने के लिए,
कोई दुर्दांत आतंकवादी बनने से बाज़ नहीं आता है।-
उस शोर होड़ के बाद
सांझ की खामोशी से हो तुम,
उस भीड़ भाड़ के बाद
एकांत की सरगोशी से हो तुम।
प्रिय मेरे...
उस चकाचौंध के बाद
एक अनुपम आरुषि से हो तुम।
सरगोशी: फुसफुसाहट।
आरुषि:भोर।
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मेरा एकांत उदासियों का समंदर है ,
मेरी रातें इसमें डुबकियां लगातीं हैं ।-
तलाश
अंधेरों में प्रकाश को तलाशना
कमरे में आकाश को तलाशना
दीवार बन दीवार से ही बोलना
सन्नाटे में आवाज़ को तलाशना
जल चुकी आशाओं को बटोरना
एक बुझी-सी आस को तलाशना
खूंटियों पर टंग रहे सामान के
अनकहे अहसास को तलाशना
वर्षों पुरानी मौज और मख़ौल के
खो चुके परिहास को तलाशना
बस यही कुछ आम बातें सोचना
उन आम में से ख़ास को तलाशना-