है कोई रहबर! तो हाथ थामो ता-उम्र
मगर बता दें, अंधे हुए थे हम इश्क़ में-
छल्ला बना पहना आया
अपनी 'रूह' को उनकी ऊँगली पर
इस जिस्म में तो अब केवल
एक 'फूँक' रहती है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
जाए
दूसरों को नीचा हर दम दिखाते है
जो ख़ुद कि ना सोच पाए
वो हमारी सोच पर ऊँगली उठाते है
जिनको हम नहीं समझ आए
हम वक़्त पर उनको उनकी समझाते है-
शाख से पत्ते पतझड़ में झड़ जाते हैं,
किसी ईमानदार की ईमानदारी पर,
ऊँगली उठा दो और वो जीते जी मर जाते हैं...!-
रास्ते में जो थामी तूने मेरी उँगलियाँ
यही हक तो मंजिल थी मेरी।-
किसी कठपुतली के महीन धागे सी है ये ज़िन्दगी मेरी
तेरी उँगलियों की पोर इसे खिंचे जाती है और मैं नाचता जाता हूं
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तेरे कानों से, @love_ki_pathshala_
तेरी गर्दन तक...
मेरी उंगलियों का सफर
लफ्जों में लिख सके
इस व्हाट्सएप की
औकात नहीं...!!-
शब्दों में कहाँ घुलती है तेरी मेरी बात ,
अर्थ में नहीं समाती तेरी मेरी बात !
छलकती चांदनी में लगा के डुबकी ,
चंचल बन नहाती तेरी और मेरी बात !
आसमान में निःश्वास बन घूमती रहती ,
तन्हाई में खुद में सिमटती तेरी मेरी बात !
अतीत की ऊँगली कर थाम आँखो में ,
अपने ही आंसुओ में भीगती तेरी मेरी बात !
रेगिस्तान के खालीपन के साये तले अकेले ,
प्यासी मृगजल तलाशती तेरी मेरी बात !
आती जाती फिर भी आंगन दिल का खाली ,
सूनापन लिए दामन में गोते खाये तेरी मेरी बात !
रास्तो के जैसे काल समय भी कम हो गये ,
कहाँ जाकर सुकून पाये तेरी मेरी बात !-
पता नही तू हक़ किसे समझता है!
इतनी भी नासमझी ठीक नहीं।
तुम तक ही जो जाए रास्ता,
वही तो मेरी मंजिल है।
माना कि मुझे इज़हार ए मोहब्बत
करना नहीं आता है,
पर तेरी उंगलियों को जीवन भर
थामकर चलने की आरजू मेरी भी है।
सिर्फ तुझे ही अपने सुनी आँखों
के एहसासों को पढ़ने देती हूँ,
हक़ नहीं तो और क्या है ये!!-
सफ़ेद कागज पर काली स्याही का अनोखा संगम होगा
शब्दों की ऊँगली पकड़कर अब सपनों का विहंगम होगा
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