सब की आंखों में ख़्वाब होने चाहिए
ज़िंदगी में कुछ इंक़लाब होने चाहिए
हम ग़ैरों से तो हरगिज़ परेशां नहीं
यहां बस अपने बे नक़ाब होने चाहिए-
नारा-ए-इंक़लाब में वो भी आवाज़ लगाया करते हैं,
जो पहले ख़ुद गद्दारों से हाथ मिलाया करते थे !!
نعرہ انقلاب میں وہ بھی آواز لگایا کرتے ہیں،
جو پہلے خود غداروں سے ہاتھ ملایا کرتے تھے!!-
जिस्म से निकलकर जाँ
बस हलक तक जा पहुँची;
तेरे आने की ख़बर ने,
क्या क्या इंक़लाब लाये!-
जब देखा नन्हीं - सी आँखों ने,
हत्याकांड जलियांवाला बाग का।
धधकी आग सीने में उसके,
छूटा ना कभी ऐसा अमिट छाप था।
जिसे इश्क था आजादी से,
जिसे न मोह था जिंदगानी से,
जिसका महबूब ही देश था,
जिसने प्रेम लिखा तो इंकलाब लिखा।
मरूंगा वतन के लिए,
शर्त मौत से लगाया था।
वो भगत सिंह थे जो,
आजादी के लिए मतवाला थे।
भगत सिंह जी की जयंती पर उन्हें शत् शत् नमन 🙏🙏-
इंक़लाब लफ़्ज़ 'आज़ादी-ए-कामिल' में लिखा "इंक़लाब-जिंदाबाद" नारा।
'शहीद-ए-आजम' भगतसिंह ने इसकी बुलंदी से ही अग्रेज़ों को ललकारा।।-
जब कोई टूटकर फिर से बनता ख्वाब है,
तो उस दिल में उठता है एक इंक़लाब है|-
इंक़लाब लाना है तो कर क़ौम को बेदार ।
मुर्दा दिलों में हरगिज़ हलचल भी नहीं होगी।-
Dedicated to all women who raise their voice against injustice
आंखो की खूबसूरती के माने ही बदल जाते है जब किसी औरत की आंखें ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ आक्रोश से भर जाती है!
खूबसूरती आंखों की ऐसी देखी नहीं कभी
दहशतगर्दों को घूरती है जब अफ़गानी लड़कियां..
कजरारी,शराबी ना क़ातिल है निगाहें
लहू आंखों से टपकाती है अब अफ़गानी लड़कियां..
चिंगारी किसी शबनम से भी भड़क जाती है कभी
हवा इंकलाब की फूंकती है जब अफ़गानी लड़कियां...
शेरनी है तो भेड़ियो से बेखौफ़ भिड़ जाएगी
नामर्दों को ललकारती है अब अफ़गानी लड़कियां...
.....©Disha 'Azal'-