अब नहीं मिलते...
पुराने यार आपस में....
न जाने कौन कहां दिल लगा कर बैठ गया...!!— % &-
अपमान का रंग....
आज भी याद है मुझे....!
वो भी क्या दिन थे पौष.....!!— % &-
बहुत तारीफ करता था तुम्हारी बिन्दी की
उफ़......!
शब्द कम पड़ गए जब तुम झुमके पहने ली...!!-
तारीफ़ करु मैं उसकी,
मेरी कविताओं मे इतना दम नहीं, बस इतना कहूँगा,
जनाब वो ही है सिर्फ इस दिल में,
उसके सिवा कोई और नहीं....!!-
बादामी रंग के शूट में.....
बिल्कुल गरम चाय जैसी लगती हो तुम।
अंधकार में.....
रोशनी बिखेरते हुये.....
चंद्रमा जैसी लगती हो तुम...!!-
कोशिश तो बहुत की उसे देखने की,
कम्बख्त नूर के आगे नजर ही नहीं टिकी।।-
मेरी कविताओं के हर शब्द में,
तुम जो यूं बस गयी हो।
क्या लगता है मेरा आदत है या तेरे इश्क़ का खुमार....
🤔-
जिस्म बदलने की आदत सी हो गयी थी,
अब उन्हें रूह से मोहब्बत नही होती।-
मै इस
खुली खिड़की से
दुनिया देख लेता हूं......
और वो दरवाज़े पर पहरा लगाए बैठीं है.....-
ख्वाहिश अगर जिस्म की ना हो....
तो Online वाला प्यार.......
कमाल की होती है!!-