यह हदे, यह सीमाएं है,
इंसान की खुद की।
जिसमें सिमटी है जिंदगी,
ओस की बूंद सी।
खुद की सीमाओं से मुक्त होकर,
जिंदगी खुद से खुद तक,
रास्ता है पूछती।
पंख खोलते है आशाओं के परिंदे,
इन दीवारों में जो आशाएं,
महफूज थी।-
मन में कई ख्याल है बिखरे,
उनसे कुछ पंक्तियां बना लूं जरा।
मेरे... read more
इंसान खिलौना है जिस माटी का,
रूह है उस माटी का जलता दिया।
यह मिट्टी भीगी है उस दरिया से,
ईश्वर की रहमो करम का जो बहता है दरिया।
समेटकर उस ईश्वर की छाया को,
उस दरिया किनारे बहती है जीवन की नैया।
इस माटी के खिलौने में चाबी भरी राम ने,
जीवन की नाव का जो है खिवैया।-
रात कभी तो लगता है,
जैसे हर रात अधजली अधबुझी चिंगारी है।
रोशनी जो जल ना पाई,
वो रोशनी रात से हारी है।
फिर चांद देखकर सुकून मिलता है दिल को,
चांदनी की जब करता चांद पहरदारी है।
जब भी सुलगती है वो रात की चिंगारी,
वो चिंगारी रात के अंधेरे पर पड़ती भारी है।-
खुद को सम्मान दो थोड़ा सा,
थोड़ा सा खुद पर रखो भरोसा।
खुद की पहचान उसने तलाशी है,
खुद से खुद तक जिसने रास्ता है खोजा।
खुद को सम्मान दो थोड़ा सा जरा सा,
हर दर्द फिर दूर होता है, जन्म लेती है नई आशा।
आईने में हर प्रतिबिंब पास नजर आता है,
खुद से खुद का संवाद करने की,
जिंदगी जब सीखती है भाषा।-
खुली है हवा वहां लहराता है खुला आसमान,
आकाश के रक्षक ने जहां पर भरी है उड़ान।
तिरंगे के रंग में जो आसमान है रंगा,
आसमान की दो एक उन्होंने नई पहचान।
एक साथ एक लय में लड़ते है ऐसे विमान,
अग्नि तीरों की जैसे वर्षा हो
प्रभु राम ने पकड़ा हो तीर कमान।
गोली की रफ्तार से जो दूरी तय करते है,
एयर फोर्स डे याद दिलाता है,
वायु सेना का हर कीर्तिमान।-
मिलकर बिछड़ना और बिछड़कर मिलना है,
मिलना बिछड़ना भी इश्क में एक सिलसिला है|
मिलकर बिछड़कर कोई अपनी राह तलाशता है,
और किसी को बस बिछड़कर दर्द मिला है|
अगर बिछ्ड़ कर इश्क में फिर से मिलना लिखा है,
तो फिर बिछड़ कर दिल क्यो करता गिला है|
बहार आने पर फिर से नए फूल खिल जाएगे,
फिर जो उजड़े है फूल वो फूल कब खिला है|
मिलकर बिछड़ना और बिछड़कर मिलना है,
बड़ी दूर चलता है यह ज़िंदगी का खाफीला है|
घरती आसमान की तरह मिलकर भी मिल न पाए,
पग पग पर घरती ने रंग बदला अपना,
पर यह अनंत आसमान की रंग आज भी नीला है|-
जो कदम रखे चंद्रयान ने चांद पर,
चांद के साउथ पोल पर
एक नया सूर्योदय हुआ है।
तस्वीर भेजी चंद्रयान ने चांद की,
तस्वीरों में उस चांद को छुआ है।
चांद तक नया रास्ता बनकर आज,
भारत दुनिया के लिए बना रहनुमा है।
यह सच है या फिर सपना,
या फिर रब की दुआ है।
चांद को रंग दिया तिरंगे में ऐसे,
दिल में छाई है हरियाली,
और चांद पर तिलक का रंग गेरुआ है।-
एक तरफ चांद पर
चंद्रयान ने पांव है जमाए,
दूसरी तरफ ग्रैंडमास्टर
प्रज्ञानंद ने चार चांद लगाए।
18 साल की आयु में
विश्व शतरंज प्रतियोगीता में,
द्वितीय स्थान पाकर
लिखा उसने एक नया अध्याय।
यह नई भोर है नया भारत है,
ग्रैंडमास्टर प्रज्ञानंद को
लाख शुभकामनाएं।-
ओ चंद्रयान तुमने आज चांद की जमीं नापी है,
जो ढूंढा था चंद्रयान 1 के साथ चांद पर नमी नापी है।
आज चांद के साउथ पोल पर लैंड किया तुमने,
जहां पर पहुंचनी सूरज की रोशनी बाकी है।
आज फिर जैसे फिर तू चांद पर उतरा है,
लगा जैसे हर घर पहुंचा चांद का वो एक टुकड़ा है।
चांद के जिस टुकड़े पर तिरंगा लहराया है,
अभी समेटना वो चांद की सरजमीं बाकी है।-
यह वक्त की अनदेखी है,
या फिर वक्त बेवफा है|
गुजरे जब वक़्त की गलियो से,
छूकर गई जब अतीत की हवा है|
वक़्त लौटकर कभी आया नहीं,
वक्त का यह रास्ता एक तरफा है|
देखकर भी अनदेखा किया वक्त ने,
जब इंसान से होता वक्त खफा है|
माना वक्त की अनदेखी करके,
इंसान बनता बेपरवाह है|
पर सही वक्त का इंतजार क्या करे,
पल दो पल में वक्त बदलता हर दफा है|-