ये माथे पर बिंदिया, ये मुंह पर हल्का पल्लू,,,,
मेरे आखों को बेहद आकर्षित करता है,,,,
पल भर में ले जाता हैं तेरे पास मुझे और
तुझे देख देख कर मेरा जी ना भरता है,,,,-
सुबह सुबह जब में उठा तो चिड़ियों कि मधुर आवाज ने मुझे अपनी तरफ आकर्षित किया,
बहुत दिनों बाद वसंत के माहौल में मेंने चिड़ियों को गुनगुनाते सुना और मेरा दिल को हर्षित किया-
सुंदरता, चाहे तन की हो, या मन की या फिर लेखन की,
आकर्षित करती ही है।-
मुझे नहीं जाना मेले में, पापा!
मुझे डर लगता है ..
डर लगता है कि कहीं
तुम्हारी उंगली मुझे छूट न जाए
अभी छोटी हूं ना ! पकड़ कमजोर है
दुनिया भर की चकाचौंध लुभाती है
रंग बिरंगे गुब्बारे , रंगीन बत्तियां , खिलौने
अपनी ओर आकर्षित करते हैं
पापा ! मेरी उंगली छूटने मत देना
हो सकता है इस भीड़ में
मैं भटक जाऊ ,मुझे ढूंढ
मेरा हाथ थाम लेना
जो मेले की भीड़ में
कुछ आँखें घूरती रहती है ना !
मुझे बहुत भय लगता है उनसे
भीड़ की ओट में ,जो थपकी देते हैं ना
वह दुलार-सी नहीं लगती
मुझे भीड़ में अपनी गोदी में उठा
लिया करो पापा ,अपना हाथ
मत छूटने देना पापा
साथ मत छूटने देना , पापा ....-
लफ्ज़ सिर्फ कानों को आकर्षित करते हैं,
और अच्छे स्वभाव वाले धुंडने पर भी नहीं मिलते हैं,
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सुन्दरता तो केवल मन को आकर्षित करती है
किंतु एक अच्छा चरित्र दिल जीत लेता है ❣️-
फूल की सुन्दरता से
आकर्षित होकर उसे तोड़ना मोह है।
और मन्त्रमुग्ध होकर उसकी सुन्दरता को देखते-देखते
उसमें खो जाना एवं स्वयं को भूल जाना प्रेम है।-
सांसों को आकर्षित करती
तेरी ही मुस्कान है
जो तू मिली इश़्क होगा नसीब
तेरे सदके ही मेरी जान है
हो मुकम्मल मोहब्बत़ की रवानगी
बस अब यही अरमान है
तेरे होने से मैं कायनात़ में हूँ ख़ास
जो तू न हो तो गुमशुदा मेरी पहचान है
नशा तुझमें मानो जैसे साकी का जाम है
अदनी सी इस चाहत में, मेरी जिंदगी कुर्बान है
तेरी अदायगी, तेरे हुस्न की बदौलत ही तो
मेरी मोहब्बत़ का हर जर्रे में नाम है,
न होना जुदा कि मैं जीता हूँ तुझसे
तू ही तो मेरी सारी आवाम है
मिलकर मुझसे, दे जा मुझे वो मंजर,
तेरे तोहफ़े में ही तो, मेरी तकदीर का फ़रमान है।-
ये किसने फुलो का बाग लगाया?
मन मुग्ध कर आकर्षित कर लेती हमे,
ये किसने हमे, कैसा प्रेम स्नेह का जाल बिछाया ?-