मुर्शद तेरी महफिल में हम कभी कबार आते हैं,,,,
किसे फिर हम कुछ इस प्रकार दोहराते हैं,,,,
गया हुआ वक्त कभी लौट के नहीं आता,,,,
यह Raaz है साहब जो हर किसी को राश नहीं आता,,,,-
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मुर्शद कितना आसान होता हैं,,,,
सब कुछ क़िस्मत के भरोसे छोड़ देना,,,,
ज़रा उनसे पूछो जिनकी रातें
,,अक्सर,,
शुभा होने के इंतज़ार में बीती हो,,,,-
ਜਵਾਨੀਆਂ ਕਿੱਥੇ ਢਲਦੀਆ ਨੇ ਜਿੰਦਗੀ ਚੇ,,,,
ਏ ਗਰੀਬਿਆ,ਜ਼ਿੰਮੇਦਾਰੀਆਂ ਤੇ ਬਿਮਾਰੀਆ ਢਲਾ ਦਿੰਦਿਆ ਨੇ,,,,
ਬੰਦਾ ਕਿੱਥੇ ਮਰਦਾ ਜਵਾਨੀ ਚੇ,,,,
ਏ ਗਰੀਬੀਆ, ਜ਼ਿੰਮੇਦਾਰੀਆਂ,ਮਜਬੂਰੀਆ ਤੇ ਬਿਮਾਰੀਆ ਮਰਵਾ ਦਿੰਦਿਆ ਨੇ,,,,-
पहले दोस्ती हुईं,,,,
थोड़ा बिछड़े तो दर्द का अहसास हुआ,,,,
फ़िर धीरे धीरे प्यार हुआ,,,,-
मुर्शद
सफ़र दिलवालो के साथ अच्छा रहा,,,,
मंज़िल हमारी ही खत्म हुईं,,,,
उनका सफ़र चलता रहा,,,,-
खुद का सिक्का खोटा था,
परखने वाले को क्या दोष लगाते,,,,
बहुत समझाया था हमनें उनको,
उल्टा हमको ही दोषी ठहराते,,,,
अब आप ही बताओ यारों,
हम रोते हुए दिल से,
कैसे भरी हुई महिफिल में हस पाते,,,,-
उनकी धडकनों की आवाज़ कुछ इस तरह से आ रही थी,,,,
की लाख कोशिश की देर रात उनसे गुफ्तगू करने की,,,,
"पर"
धड़कने कातिल निकली हमें धक धक करके सुला दिया,,,,-
तुम मेरे बाहों में बाहें डालकर कुछ यूं चलो,,,,
जैसे नदिया किनारे के संग संग बहती हो,,,,-