ना बिछड़ें गे कभी मिल कर
ग़र तेरा साथ हो.............
ना जाने कितने वक्त गुज़र गए
तन्हाइयों में......................
ख़ामोशी का ये शुरूर कब तक?
हृदय में शोर मचाएगा...........
कभी तो चल कर ये बात लफ्ज़ों
तक आयेगा.........................
इंतज़ार की घड़ी दो घड़ी
अब बहुत जी लिए.................
कब तक तन्हाइयों का बोझ ?
मैं तन्हां उठाऊंगा...................
कभी तो वें मौन ज़ुबां मुझपर भी,
तरस खायेगा........................-
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय सा... read more
प्रेम सदैव मौन की भाषा कहती हैं ,
यह भाव मात्र एक प्रेमी की हृदय ही जान सकता हैं।
इसे किसी माप तौल की आवश्यकता नहीं होती,
यह भाव प्रियतमा की हृदय भी जानती हैं।-
राजनेताओं की आपसी मतभेदों ने ,
न्याय की परिभाषा ही बदल डालें ।
तू – तू , मैं – मैं , दिन रात मचाते ।
आरोप प्रत्यारोप, एक दूजे पर यूं ही लगाते ।
जिस राज्य की मंत्रीया हो मौन सभी,
जनमत की नीजी सिंहासनों की खातिर ।
आरोपी विषैले शर्प की भांति नगर में,
यूं हीं बेख़ौफ़ टहलते मिल जाते हैं ।-
की तेरी घर की दहलीज़ पर हर ओं मुकाम हों,
जिसकी चाहत हों हर ओं लम्हा तुम्हारे साथ हों ।
फलक पे रह कर चांद सा इतरानें का हुनर हैं तुझमें,
ऐ मेरे प्यारे दोस्त , तुम हर वक्त मुस्कुराते रहना ।
खुशियां हर वक्त, हर छड़, हर घड़ी तुम्हारे साथ हों ।-
थोड़ी दूर तों सहीं, मगर तुम मेरे साथ चल दो।
माना हमसफ़र ना सही, बस क़दम दो क़दम
तुम साथ चल दो मेरे............................
सिलसिला चन्द लम्हों का ही सहीं,
ताउम्र सज़ा लेंगे हम।
हर रात के उपरांत सुबह उठ कर,
अधूरा सा ख़्वाब सज़ा लेंगे हम।
समझ कर बस इतना,
जो कभी पूरा ना हों सका ।
अक्सर रातों को हम तन्हां
तेरी याद में आंसू बहा लेंगे ।
थोड़ी दूर तो सही,
मगर तुम मेरे साथ चल दो।-
यूं तों रहते बहुत दूर हों ,
मगर बेहद इस दिल के पास हों ।
इस जहां की सारी खुशियां,
तुम्हारे पास हों ।-
ख़्वाहिशें, ख़ुद्दारी, ख़िलाफत से अब बात नहीं बनती ,
और तजुर्बा कहता हैं कि अब उनसे बग़ावत कर लूं ।-
घर की आँगन किलकारियों से अब भी गूंजती हैं ।
तेरी चहकने से माँ की मुस्कान पिता की शान बढ़ती हैं।
अपनी आन मान सम्मान और धर्म का मान रखना बहना,
तेरे होने से एक भाई का शीना चौड़ी,
तो बाजूओ में रक्त की प्रवाह होती हैं ।
खुश रहना हमेशा खुशियां तुम्हारी दास हैं,
जिस घर में बेटियां नहीं होती वे भाई अनाथ होते हैं।
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मन की चंचलता मन हीं न जानें ,
वन में भटकता मृग की भाती ।
व्याकुलता किस बात की ,
उम्मीदें रखें किस आश की ।
बस यह तों बहना जानें ,
समुंदर की लहरों के भाती ।
आशाओं और तृष्णा में जलना जानें,
रेगिस्तान की धूप में लौह सी तपना जानें।
मन की चंचलता मन हीं न जानें ,
वन में भटकता मृग की भाती ।-
उड़ चला, चल जा रि मनवा मेरे गाँव,
जहां पर नंदी जी करते हैं विश्राम!
महादेव का पाव पकड़ ,
वसुई नदी को कर प्रणाम।
जिसने भय से भयभीत नहीं होना,
निडरता हैं,तुम्हें सिखलाया ।
उल्टा–पुल्टा,अंदर–बाहर तैरना सिखलाया,
जिसने बाल्याकाल से नौजवानी को सिंचा,
उस मिट्टी को चूम , कर बारम बार प्रणाम ।
सहपाठी संघी साथी मित्रों से,
खेत खलिहान बाग बगीचों से कहना।
दूर कहीं शहरों में जो रहता हैं,
करता हैं सबको याद।
इस पूर्णिमा होलिका दहन में भी सम्मलित होना ।
उत्सव की तैयारी भी करना,
होलिका दहन की जय करे भी करना ।
भाई बंधु संग घुल मिल कर खेलना रंग गुलाल ।-