सत्यस्य वचनं श्रेयः सत्यादपि हितं वदेत्।
यद्भूतहितमत्यन्तं एतत् सत्यं मतं मम्।।
[ यद्यपि सत्य वचन बोलना श्रेयस्कर है तथापि उस सत्य को ही बोलना चाहिए जिससे सर्वजन का कल्याण हो। मेरे विचार से तो जो बात सभी का कल्याण करती है वही सत्य है। ]-
शीर्षक -- ।। विडंबना।।
मनुष्य'जात की विडंबना देखिए।
प्रेम की बातें तो खूब करता है, प्रेम के गीत भी गाता है, प्रेम के भजन भी करते हैं, पर वास्तव में उनके जीवन में प्रेम का कोई स्थान ही नहीं होता ।
अगर उनके अंदर झांकें तो प्रेम से ज्यादा असत्य , छल , मतलब दूसरा कोई और शब्द नहीं मिलेगा !!-
असत्य का ये जहां है
असत्य का ही दुकान है
असत्य यहाँ बिक रहा
असत्य खरीदा जा रहा
असत्य की खेती यहाँ
असत्य ही उगता यहाँ
असत्य बोया जा रहा
असत्य काटा जा रहा
असत्य फलता है यहाँ
असत्य फूलता है यहाँ
असत्य की भरमार है
असत्य ही स्वीकार्य है।।-
"सत्य कह देने से मन बड़ा हल्का हो जाता है
असत्य कहने वाले को डर कल का हो जाता है"-
जीवन के यथार्थ से परचित होने से
अब मेरा जीवन थोड़ा सहज हो गया है।
पहले तो बस सत्य से परचित थी,
अब तो असत्य से भी रूबरू हो गई है।
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चराग़ जलने को ढूँढता है अंधकार,
असत्य कितना ही ताकतवर क्यों न हो,
नहीं छिपा सकता,
सत्य की स्याही से लिखी किसी
क्रांतिमयी कविता की हुंकार।-
असत्य को सत्य मानकर
सत्य के रास्ते पर निकले थे
पर असत्य ने हमें
सत्य के रास्ते को चुनने नहीं दिया-
भरोसा रख
आएगा वो दिन भी
जब होगा तुम्हें
गलती का अहसास
की तुम्हारे जाने से
क़ाफिला रुकता नहीं।।
अभी जोर है हम में, इमान भी।
देने को तैयार है इम्तिहान भी।
रखते है भरोसा राम में।
है सत्य पथ पर अडिग।
धूर्त नहीं, कपटी नहीं, स्वार्थी नहीं,
सत्य है असत्य से भयभीत
मगर झुकता नहीं।।-