एक सुखद याद
जो दुःख देगी सौ बार
एक बीता समर्पण
जो पछतावा बनकर लौटेगा
एक निश्छल उदारता
जो आत्मघात का रूप धरेगी
एक ऐसा जीवन
जिसमें जीवन के अलावा सब कुछ होगा
आप किससे माँगेंगे मुआफ़ी
और किसको कहेंगे शुक्रिया ?
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खुद की तलाश में
लिए है कागज और कलम
खुद को ही रचती वो लड़की✍️
लड़कियां अगर सही गलत की बातें करें तो
तो लोग उन्हें तेज कहते हैं
जबकि लड़कियां अपनी बातें रखते हुए समझदार हुई है
और सबसे ज्यादा आसान हुई हैं-
बहुत कुछ बचा है जीवन में,
अभी तक मैंने ताजमहल नहीं देखा,
उस नए कवि की किताब नहीं पढ़ी,
पहाड़ों की ओर नहीं गया,
समुन्दर को देख उसे आसमान से नहीं तौला,
हवाई जहाज से नीचे नहीं झांका,
बादलों को खा कर उनका स्वाद नहीं जाना
और तुम्हें नहीं बताया कि
मैं अबतलक तुम्हारे प्रेम में हूँ।
- अज्ञात
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वहीं सर्द सुबह
वहीं रोजमर्रा के संघर्ष
नया हैं कुछ हैं तो वो हैं
बदलाव के लिए ‘मन’ का संघर्ष...!-
“मुझे अवसाद और नाउम्मीदियों से बचना है
थकान और नैराश्य से भी, ईर्ष्या और अधैर्य से भी
मुझे अभिनय नहीं सच के साथ जीना है
जबकि यह दिन-ब-दिन मुश्किल होता जाएगा”
• अविनाश मिश्र
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आसान है करना प्रधानमंत्री की आलोचना
मुख्यमंत्री की करना उससे थोड़ा मुश्किल
विधायक की आलोचना में ख़तरा ज़रूर है
लेकिन ग्राम प्रधान के मामले में तो पिटाई होना तय है।
अमेज़न के वर्षा वनों की चिंता करना कूल है
हिमालय के ग्लेशियरों पर बहस खड़ी करना
थोड़ा मेहनत का काम
बड़े पावर प्लांट का विरोध करना
एक्टिविज्म तो है जिसमें पैसे भी बन सकते हैं
लेकिन पास की नदी से रेत-बजरी भरते हुए
ट्रैक्टर की शिकायत जानलेवा है।
स्थानीयता के सारे संघर्ष ख़तरनाक हैं
भले ही वे कविता में हों या जीवन में।
--- प्रदीप सैनी
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